कोलकाता शहर आज भी बेहद खुशनुमा और रंगीन है। इतिहास से लेकर आधुनिकता के रंग से ये शहर सराबोर है। हावड़ा स्टेशन से लोग जब हुगली नदी पर बना पुल पार कर शहर में दाखिल होते हैं, एक खुशी उनके चेहरे पर तैर जाती है। ऐसे ही इसे 'सिटी ऑफ़ जॉय' नहीं कहा जाता है! विभिन्न शासकों ने शहर को अपने रंग में रंगने की कोशिश की है। लेकिन कोलकाता ने सबको खुद में समेटे अपना नया रंग बना लिया है। जीवन की आपाधापी में आज भी ये शहर आपको जीने के सही मायने बताता है।
शायद आपको भी पता होगा कि इसे सांस्कृतिक राजधानी के साथ ही 'महलों का नगर' भी कहा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस महानगर को 'ब्लैक सिटी ऑफ़ इंडिया' भी कहते हैं! हमने इसकी पड़ताल की तो इतिहास के उन पन्नों को टटोलना पड़ा जिन पर गहरी धूल जम चुकी है।
'ब्लैक सिटी ऑफ़ इंडिया' की कहानी
हुगली नदी के तट पर बसा ये शहर अपने बनने से पहले ही सुर्ख़ियों में रहा था। बात उन दिनों की है, जब अंग्रेज यहाँ अपना ठिकाना बनाने की कोशिश में थे। बंगाल का नवाब सिराजुद्दौला अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद में अमन-चैन से था लेकिन अंग्रेज़ी दखल उसे कतई पसंद नहीं था। लेकिन इसके बावजूद अंग्रेज़ों ने यहाँ अपना व्यापार और सैन्य बल जमाना शुरू कर दिया। अपने इस व्यापारिक ठिकाने को मजबूत और सुरक्षित करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने फोर्ट विलियम बनवाया। इसमें अपराधियों के लिए कमरे बनाए गए जिसमें सजा देने की व्यवस्था की गई थी। 14x18 फीट के इस कमरे को नाम दिया गया ‘ब्लैक होल’!
ब्लैक होल कमरा
इसी वक्त भारत पर फ्रांस के कब्ज़े की बातों को देखते हुए अंग्रेज अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने लगे जो कि नवाब सिराजुद्दौला को नागवार गुज़री। इसके खिलाफ उसने अपने हजारों सैनिकों के साथ फोर्ट विलियम पर हमला बोल दिया। अंग्रेज इस लड़ाई के लिए एकदम तैयार नहीं थे लिहाजा वे कुछ सैनिकों को छोड़कर नदी के रास्ते भाग निकले।
फोर्ट विलियम में महज 200 अंग्रेज सैनिक थे जिसे आराम से नवाब के सैनिकों ने घेरकर अपने कब्जे में कर लिया। उन्होंने अंग्रेज सैनिकों को कैद कर उसी ब्लैक होल कमरे कैद कर दिया जिसे अंग्रेजों ने अपराधियों के लिए बना रखे थे। इसमें दर्जनों अंग्रेज घुट-घुटकर मर गए। इस घटना से लंदन में हलचल मच गई। 'ब्लैक होल' कमरे की इस घटना से कलकत्ता का कनेक्शन 'ब्लैक' से हो गया। इसे 'ब्लैक सिटी ऑफ़ इंडिया' कहा जाने लगा।
कुछ और ब्लैक कनेक्शन
कोलकाता को काली क्षेत्र भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ बड़े पैमाने पर माँ काली की पूजा होती है। बताया जाता है कि जब भगवान शिव, माता सती के शव को लेकर तांडव कर रहे थे तो उनकी उंगली बंगाल के इसी इलाके में गिरी थी। लिहाज़ा कालीघाट में काली माँ की पूजा होती है। आप जानते ही होंगे कि माँ काली की प्रतिमा ब्लैक होती है। 'जय काली कलकत्ते वाली' स्लोगन से तो आप वाकिफ ही होंगे!
बंगाल का काला जादू
यूँ तो देश के कई हिस्सों में काला जादू का अभ्यास किया जाता रहा है। इसमें तंत्र-मंत्र से लोगों को वश में करने की बात की जाती है। एक समय में कोलकाता काले जादू को लेकर कुख्यात रहा है। हालांकि आज के समय में इसकी उतनी कोई मौजूदगी नहीं दिखती लेकिन तांत्रिक गतिविधियों की बात से नकारा नहीं जा सकता। 'ब्लैक मैजिक' को 'ब्लैक सिटी' से जोड़कर देखना कोई हैरत की बात नहीं होगी।