तेलंगाना राज्य की राजधानी हैदराबाद से 160 किलोमीटर दूर एक ईतिहासिक शहर है वारंगल | वारंगल शहर ककातीय राज्य की राजधानी था जो किसी समय में दक्षिण भारत का प्रसिद्ध राज्य था| ककातीय राजाओं ने वारंगल शहर में खूबसूरत किले, महल, भवन और मंदिर बनाए जो देखने लायक है | मैं दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़ कर अगले दिन सुबह वारंगल रेलवे स्टेशन पहुँच गया| होटल में रुम लेकर तैयार होकर मैं बाईक किराये पर लेकर वारंगल शहर घूमने निकल गया | सबसे पहले ककातीय राज्य के बारे में थोड़ा जानते हैं| ईतिहास बताता है कि बाहरवीं शताब्दी में ककातीय राजाओं ने वारंगल किले का निर्माण किया| जो उस समय में अपनी कला का मासटर पीस था उस क्षेत्र में| कुछ सूत्र बताते हैं कि वारंगल को आठवीं शताब्दी में यादव राजाओं ने बसाया और बाहरवीं शताब्दी में ककातीय राजाओं ने वारंगल पर अपना अधिकार कर लिया| ककातीय राजाओं का शासन काल 1175 ईसवीं से लेकर 1324 ईसवीं तक रहा| ककातीय राज्य में रुद्रदेव, गणपति देव, रुद्रमा देवी और प्रताप रुद्रा आदि प्रसिद्ध राजा हुए है| ककातीय राज्य के पहले राजा रुद्र देव थे उनकी राजधानी हनमकोंडा थी जो वारंगल शहर का ही हिस्सा है| उनके पुत्र गणपति देवा ने यहाँ पर राज्य किया| गणपति देवा ने ही किले का निर्माण किया| जिसको बाद में उनकी पुत्री और अगली शाशक महारानी रुद्रा देवी ने पूरा किया| वारंगल शब्द का अर्थ होता है एक शिला| 1324 ईसवीं में प्रताप रुद्रा दूसरे के समय में दिल्ली सल्तनत के मुहम्मद बिन तुगलक ने वारंगल पर हमला कर दिया| ककातीय राज्य के जनरल सीतापति ने गद्दारी की ओर वारंगल किले का दरवाजा अंदर से खोल दिया जिससे तुगलक की सेना किले में प्रवेश कर गई| इस तरह ककातीय राज्य का अंत हो गया|
वारंगल शहर की शान है वारंगल का किला | सबसे पहले मैं बाईक लेकर वारंगल किले में ही गया| यह किला अब काफी टूट चुका है| टिकट लेकर मैंने वारंगल किले में प्रवेश किया | इस किले का निर्माण तेहरवीं शताब्दी में ककातीय राजाओं द्वारा किया गया था| ऐसा कहा जाता है एक किले में ही सात अलग अलग किले बनाए गए थे जैसे मिट्टी का किला, जल दुर्ग, पत्थर का किला, ईटों का किला| जिसमें से अब पत्थर और मिट्टी का किला ही बचा है उसके भी अवशेष ही है| इस शानदार किले में 360 मंदिर और 360 कुएं का निर्माण किया गया था उन लोगों के लिए जो किले के अंदर रहते थे| वारंगल किले का मुख्य आकर्षण वारंगल के तोरण (गेट) है| इनको वारंगल गेट भी कहा जाता है| यहाँ अलग अलग चारों दिशाओं में एक एक तोरण बना हुआ है| इनकी भव्यता कमाल की है| इनको वारंगल गेट के नाम से भी जाना जाता है| वारंगल गेट की तसवीर तेलंगाना राज्य के लोगो पर हैदराबाद के चार मीनार के साथ लगी हुई है| वारंगल गेट बहुत आकर्षित करते हैं मुझे भी इनकी कलाकारी ही पंजाब से वारंगल तेलंगाना तक खींच लाई | मैंने इन वारंगल गेट की बहुत सारी तसवीरें खींच ली | इसके अलावा वारंगल किले में और भी बहुत सारी मूर्तियों को रखा गया है| मैंने सारे किले को बहुत आराम से बारीकी से देखा और घूमा | वारंगल किले के पास ही एक शिला हिल बनी हुई है जिसके पास एक पार्क बना हुआ है| कुछ सीढ़ियों को चढ़कर मैं एक शिला हिल पर चढ़ गया| वहाँ से वारंगल का खूबसूरत दृश्य दिखाई देता है| यहाँ से फिर मैं खुश महल पहुँच गया| खुश महल को पुरातत्व विभाग एक संग्रहालय के रूप में ईसतमाल कर रहा है | खुश महल की ईमारत काफी विशाल है और उसके अंदर भी मूर्तियों को रखा गया है| शाम को वारंगल किले में एक लाईट एंड साऊंड शो दिखाया जाता है जिसमें वारंगल के पूरे ईतिहास को दिखाया जाता है|
1000 सतंभों वाला मंदिर - यह मंदिर वारंगल का प्रसिद्ध मंदिर है| किला देखने के बाद मैं इस मंदिर के दर्शन करने के लिए पहुँच गया| इस मंदिर का निर्माण 1048 ईसवीं में शुरू हुआ और 1163 ईसवीं में पूरा हुआ| इस मंदिर को एक हजार सतंभों से जोड़कर इसके मंडप और कलयाण मंडप को बनाया गया| यह मंदिर सूर्य, विष्णु और शिव को समर्पित था | अभी इस मंदिर में शिवलिंग की पूजा की जाती है| मंदिर के सामने एक पत्थर से नंदी को बनाया गया है| मैंने इस मंदिर में दर्शन किए और मंदिर की खूबसूरती देखकर मैं आनंदित हो गया|
कैसे पहुंचे- वारंगल हैदराबाद से 160 किमी दूर है| वारंगल दिल्ली- चेन्नई रेलमार्ग पर रेलवे स्टेशन है| रेलमार्ग से वारंगल देश के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है| नजदीकी एयरपोर्ट हैदराबाद है|