भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में सबसे प्राचीन शहर के तौर पर जाना जाने वाला बनारस (वाराणसी) शहर धर्म और संस्कृति का केंद्र बिंदु भी बताया जाता है। काशी नाम से भी जानी जाने वाली यह नगरी यहाँ स्थित बाबा काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर, बनारसी साड़ी, अनेक पौराणिक और ऐतिहासिक स्थलों के साथ यहाँ के मणिकर्णिका घाट के लिए भी दुनिया भर में काफी प्रसिद्द है। बनारस में वैसे तो करीब 88 घाट हैं और इनमें से अधिकतर पर पूजा पाठ और गंगा स्नान इत्यादि किये जाते हैं लेकिन काशी के पंचतीर्थों में शामिल मणिकर्णिका घाट सृष्टि में सृजन और विध्वंश के प्रतीक के तौर भी पर जाना जाता है। आपको बता दें कि बनारस का यह घाट मुख्य तौर पर एक श्मशान स्थल या मुक्ति स्थल के तौर पर यहाँ स्थित है।
वैसे हिन्दू धर्म के रीति रिवाजों के अनुसार सिर्फ दिन के समय में ही दाह संस्कार किया जाता है लेकिन बताया जाता है कि काशी में स्थित मणिकर्णिका घाट भारत का एकमात्र ऐसा श्मशान स्थल है जहाँ 24 घंटे यहाँ आने वाले शवों का दाह संस्कार किया जाता है। इस घाट को महा श्मशान के नाम से भी जाना जाता है।
मणिकर्णिका घाट
जैसा कि हमने बताया कि वाराणसी के 80 से भी अधिक घाटों में से एक मणिकर्णिका घाट विशेष रूप से पवित्र और महत्वपूर्ण घाट है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने मणिकर्णिका घाट को अनंत शांति का वरदान दिया है और यह भी मान्यता है कि स्वयं भगवान शिव, माता पार्वती के साथ काशी में भी निवास करते थे। भगवान शिव के वरदान की वजह से ही सृष्टि के विनाश के समय में भी काशी नगरी नष्ट नहीं हुई थी। इस वजह से यह मान्यता भी है कि हिन्दू धर्म में काशी अंतिम संस्कार के लिए सबसे पवित्र स्थान है और यहाँ अंतिम संस्कार करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है अर्थात व्यक्ति को जीवन-मरण चक्र से मुक्ति मिल जाती है।
मणिकर्णिका घाट से जुड़ी एक और मान्यता है जिसके अनुसार यह वही स्थान है जहाँ माता सती की कान की बालियां गिरी थी और तभी से यह स्थान माता के शक्तिपीठ के तौर पर भी जाना जाता है। वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के पास ही स्थित विशालाक्षी मंदिर स्थित है जो की माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है। चूँकि कान की बाली को संस्कृत में मणिकर्ण कहते हैं इसलिए इस घाट का नाम मणिकर्णिका घाट पड़ा।
मणिकर्णिका घाट से जुड़ी अन्य खास बातें
चिता भस्म की होली
हमारे देश में होली एक ऐसा त्यौहार है जिसे हम अनेक रंगों और संगीत के आनंद के साथ बड़े हर्षोल्लास के साथ मानते हैं। हालाँकि होली मनाने का तरीका देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग हो सकता है लेकिन काशी की होली आपको एकदम अलग और अद्भुत लगने वाली है। बनारस के इसी मणिकर्णिका घाट पर शिवभक्त श्मशान घाट की राख से होली खेलते हैं जिसे देखना अपने आप में एक अनोखा अनुभव होता है।
नगर वधुएं जलती चिताओं के बीच करती है नृत्य
बताया जाता है कि चैत्र माह की अष्ठमी को नगरवधुएं इसी घाट पर नृत्य किया करती हैं और नृत्य करते वक़्त वे ईश्वर से प्रार्थना करती हैं कि अगले जन्म में उन्हें ऐसा जीवन न मिले। मान्यता है कि उनके यहाँ नृत्य करने से उन्हें अगले जन्म में नगरवधू का कलंक नहीं झेलना पड़ेगा।
सैंकड़ो सालों से टेढ़ा खड़ा है रत्नेश्वर महादेव मंदिर
आपको बता दें कि मणिकर्णिका घाट पर स्थित मणिकर्णिका कुंड को पार करने के बाद इसी घाट पर आप एक ऐसे मंदिर तक पहुँच जाते हैं जो साल में करीब 6 महीने पानी में डूबा रहता है फिर भी सैंकड़ों वर्षों से आज तक यह मंदिर टेढ़ा होकर भी जस का तस खड़ा है। इस मंदिर को रत्नेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।जानकारों के अनुसार रत्नेश्वर महादेव मंदिर की ऊंचाई करीब 74 मीटर बताई जाती है और 19वीं शताब्दी में बना यह मंदिर करीब 9 डिग्री झुका हुआ है। आपने इटली में स्थित पीसा की मीनार के बारे में जरूर सुना होगा जो सिर्फ 4 डिग्री झुका है और दुनिया के सात अजूबों में शामिल है लेकिन काशी में स्थित यह मंदिर 9 डिग्री झुका होने पर भी लगता है गुमनामी में ही कहीं खो गया है।
इस घाट पर हमारी यात्रा भी काशी की हमारी यात्रा में एक अद्भुत अनुभव जोड़ने वाली रही। काशी विश्वनाथ मंदिर से जब हम मणिकर्णिका घाट की तरफ जाते हैं तो दूर से ही हमें अनेकों चिताएं जलती हुई दिखाई देती है। वहां पहुँचने पर हमने देखा कि करीब हर 5 मिनट में एक शव यहाँ अंतिम संस्कार के लिए लाया जा रहा था। यहाँ लाने के बाद शव को गंगा किनारे लेकर जाया जाता है और गंगा जल से स्नान करवाया जाता है और फिर दाह संस्कार किया जाता है। घाट पर एक साथ अनेकों चिताओं को निरंतर एक साथ जलती हुई आप यहाँ देख सकते हैं और समझ सकते हैं कि मृत्यु ही अंतिम सत्य है। यहाँ हमने देखा कि बहुत से विदेशी पर्यटक भी इन जलती चिताओं के एकदम करीब होकर अपने टूर गाइड से इस परंपरा के बारे में बड़ी उत्सुकता से समझ रहे थे।
यहाँ कुछ समय बिताकर यह जरूर समझ में आ जाता है कि इस अंतिम सत्य का सामना किसको कब करना पड़ जाये ये किसी को नहीं पता और ये बात भी समझ आ गयी कि आखिर जन्म-मरण के बीच हम सभी के पास मृत्यु से पहले सिर्फ कुछ सीमित समय है लेकिन इस सीमित समय में क्या हम इस जीवन की अहमियत को समझकर इस अच्छे से जी रहे हैं? क्या हम रोज-रोज में मिलने वाले जीने के उन मौकों को वास्तव में उपयोग ले रहे हैं या फिर जीवन में व्यर्थ की दौड़ में लगने और मन को ईर्ष्या, जलन, क्रोध, तनाव जैसे नकारात्मक विचारों से उलझने में ही ये जीवन गँवा रहे हैं ?
मणिकर्णिका घाट कैसे पहुंचे?
आपको बता दें कि वैसे तो बनारस के किसी भी घाट से आसानी से नाव की सवारी करके मणिकर्णिका घाट तक पहुँच सकते हैं। बनारस में शेयरिंग बोट की भी सुविधा है जिसमें घाटों की दूरी के हिसाब से नाव की सवारी का प्रति व्यक्ति तय किराया देकर आप किसी भी घाट पर नाव के द्वारा पहुँच सकते हैं।
इसके अलावा आप किसी भी घाट से पैदल चलकर भी मणिकर्णिका घाट तक पहुँच सकते हैं क्योंकि काशी के लगभग सभी घाट एक दूसरे से जुड़े हैं हालाँकि अगर आप अस्सी घाट के पास हैं तो मणिकर्णिका घाट तक पैदल पहुँचने में काफी समय लग जायेगा। इसके अलावा अगर आप काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन करने जा रहे हैं तो मुख्य द्वार संख्या-4 के पास ही मणिकर्णिका द्वार स्थित है जहाँ से आप सीधा मणिकर्णिका घाट की तरफ जा सकते हैं।
तो अगर आप काशी नगरी की यात्रा का प्लान कर रहे हैं तो इस पवित्र घाट पर जरूर जाएँ। इससे जुड़ी जितनी भी जानकारी हमारे पास थी हमने आपसे इस लेख के माध्यम से साझा करने की कोशिश की है। अगर आपको ये जानकारी अच्छी लगी तो कृपया इस आर्टिकल को लाइक जरूर करें और साथ ही ऐसी ही अन्य जानकारियों के लिए आप हमें फॉलो भी कर सकते हैं
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