हेमकुंड साहिब-तुंगनाथ-देवरिया: उत्तराखंड में एकल यात्रा का मज़ा!

Tripoto

धर्म के नज़रिए से देखा जाए तो उत्तराखंड को देवभूमि कहते हैं | मगर तीर्थों के अलावा यहाँ कई बेहद खूबसूरत ट्रेक भी हैं | हर साल कई सोलो ट्रेवलर उत्तराखंड के हसीन नज़ारों को देखने यहाँ आते हैं | आप पूछेंगे कि सोलो ट्रेवलिंग क्यों ? सोलो ट्रेवलिंग से इंसान को अपने आप को समझने का मौका मिलता है | आज़ादी का एहसास होता है | अकेले सफ़र करते हुए ही आपको अपनी पसंद नापसंद का पता चलता है | आप नए दोस्त बनाते हो | बस इसलिए मैं भी उत्तराखंंड की पहाड़ियों में अकेले ट्रेक करने निकल पड़ा।

Photo of हेमकुंड साहिब-तुंगनाथ-देवरिया: उत्तराखंड में एकल यात्रा का मज़ा! 1/2 by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

इस ट्रिप की प्लानिंग मैंने दो महीने पहले ही कर ली थी | बजट से लेकर ट्रेक तक सबकुछ सोच रखा था | अपनी इस सोलो ट्रिप के दौरान मैं 2 ट्रेक और 4 कस्बों में घूमने वाला था |

सोलो ट्रैवल के लिए ज़रूरी

अकेले सफ़र करने के दौरान आपको 3 चीज़ों का ध्यान रखना होता है :

1. रात को कहाँ ठहरना है

2. खाने का बंदोबस्त कैसे करना है

3. दिन में कहाँ घूमेंगे और ठहरने वाली जगह से घूमने वाली जगह तक कैसे पहुँचेंगे

इसके अलावा बैग में क्या रखना है, इस बात पर गौर करना भी ज़रूरी है, क्योंकि अगर फालतू सामान भर लिया तो ट्रेक पर चढ़ते हुए थक जाओगे और सोलो ट्रिप का मज़ा नही ले पाओगे | मैंने बैग में अपने कैमरे के अलावा कई कपड़े भी डाल लिए थे, जिसकी वजह से बैग का वजन 12 किलो हो गया | ट्रेक चढ़ते समय मेरी पीठ और कंधे दोनों दुखने लगे |

ट्रेकिंग के दौरान अगर आपका कैंपिंग करने का मन है तो स्लीपिंग बैग, पॉंचो, गर्म कपड़े, बीम टॉर्च, दवाइयाँ, पानी की बोतल, दस्ताने, टोपी और जैकेट भी रख लें | एंकल सपोर्ट वाले बढ़िया जूते होना भी बहुत ज़रूरी है | मैं अपने रनिंग शूज़ पहन गया था जिससे देवरिया ताल से नीचे उतरते वक्त मेरे पाँव में मोच आ गयी | अगर आप ऐसी मुश्किल में पड़ जाएँ तो घबराएँ नहीं। थोड़ा रुक कर सोचें | मैं भी कुछ देर सुस्ताने के बाद कछुए की रफ़्तार से नीचे उतरने लगा था, हर कदम संभाल के रख रहा था |

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अगर आप पहली बार ट्रेक करने जा रहे हैं तो पहले ट्रेक के बारे में पढ़ लें | ट्रेक भी कई श्रेणियों में बंटे होते हैं जैसे आसान, औसत और मुश्किल | अकेले किसी नए शहर में घूमना और पहली बार नए ट्रेक पर चढ़ने में काफ़ी फ़र्क होता है | अपने साथ एक टॉर्च, चाकू, और एक्स्ट्रा फ़ोन भी रख लें | बस अब मैं आपको अपनी सोलो ट्रिप के बारे में बताता हूँ :

पहला दिन

Photo of हरिद्वार, Uttarakhand, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

10 जून को मैं बड़ौदा से सीधा हरिद्वार पहुँचा | शाम के 4 बजे 40 डिग्री तापमान हो रहा था | पहुँचते ही मुझे ठहरने की जगह देख लेनी चाहिए थी, लेकिन चूँकि रास्ते में मैंने घर से लाया नाश्ता ही किया था, इसलिए पहले मैंने भरपेट खाना खाया | स्टेशन से उतरते ही आपको खाने की कई जगहें दिखेंगी, मगर सफ़र के दौरान साफ जगह से ही खाएँ | खाना खाने के बाद मैं शहर में घूमने निकल पड़ा | पतली पतली गलियों से होता मैं गंगा घाट तक पहुँच गया, जहाँ मैंने शाम को आरती के दर्शन किए |

दूसरा दिन

श्रेय: बिबेक राज

Photo of जोशीमठ, Uttarakhand, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

दूसरे दिन मैं हरिद्वार से 300 कि.मी. उत्तर की ओर जोशीमठ की ओर निकल पड़ा, जहाँ पहुँचने में मुझे 12 घंटे लगे | यहाँ आचार्य शंकराचार्य के स्थापित किए हुए चार मठों में से एक ज्योतिर्मठ है और नरसिम्हा का मंदिर भी है | सर्दियों में यहाँ की सड़कें बर्फ से ढक जाती है | औली भी घूमने लायक जगह है | अगर आप बद्रीनाथ या हेमकुंड साहिब की ओर जा रहे हैं तो रास्ते में औली आएगा |

तीसरा दिन

घगंरिया

अगले दिन मैं घांगरिया की ओर निकल पड़ा| अगर आप वैली ऑफ फ्लावर या हेमकुंड साहिब की ओर जा रहे हैं तो रास्ते में घांगरिया ज़रूर आएगा | पहले मैं बस से गोविंदघाट गया जो जोशी मठ से 18 कि.मी. दूर है | गोविंदघाट, अलकनंदा नदी के किनारे पर बसा छोटा सा कस्बा है | यहाँ से गांगरिया जाने के लिए 13 कि.मी. का ट्रेक करना पड़ता है | रास्ता पत्थरों से बना है | अगर आपको बिल्कुल भी पसीना नहीं बहाना तो आप घोड़े पर बैठकर भी चढ़ाई कर सकते हैं |

Photo of हेमकुंड साहिब-तुंगनाथ-देवरिया: उत्तराखंड में एकल यात्रा का मज़ा! by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

घांगरिया 3050 मीटर की ऊँचाई पर बसा हुआ है जहाँ से नज़ारे देख कर मन खुश हो जाता है | गाँव से एक सड़क गुज़रती है, जिसके आस पास सारे होटल, और रेस्टोरेंट बने हुए हैं | हैरानी की बात तो ये थी कि कोई भी एक अकेले इंसान को ठहरने के लिए कमरा नहीं दे रहा था | खूब पूछताछ करने के बाद मैंने गुरुद्वारे में रुकने का सोचा | वैसे तो मैंने कई डॉक्यूमेंटरियों में लोगों को गुरुद्वारे में रुकते देखा है, मगर मैं ये पहली बार करने वाला था | गुरुद्वारे में आपको खाना और छत दोनों मिलेंगी | अगर आप सेवा देना चाहते हैं तो रसोई में हाथ बँटा सकते हैं | यहाँ का अनुशासन और साफ सफाई क़ाबिले तारीफ़ थी |

चौथा दिन

Photo of हेमकुंट साहिब, Uttarakhand, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

अगले दिन मैं सुबह पाँच बजे हेमकुंड साहिब के ट्रेक पर निकल पड़ा | 7 कि.मी. के ट्रेक को चढ़ने में मुझे 3 घंटे लग गए | 4600 मीटर की ऊँचाई पर बना हेमकुंड साहिब एक गुरुद्वारा है जहाँ से आस पास बर्फ़ीले पहाड़ों का ज़बरदस्त नज़ारा देखने को मिलता है | झील के पास बैठकर चाय की चुस्कियाँ लेते हुए मुझे सुनने में आया कि सुबह सुबह झील पर बर्फ की परत ज़मीं थी | कुछ देर झील के पास बैठने के बाद मैं नीचे घांगरिया उतर आया, जहाँ से मुझे वैली ऑफ फ्लावर्स की ओर जाना था, जो नहीं हो पाया क्योंकि वैली बंद थी |

पाँचवाँ दिन

Photo of बद्रीनाथ, Uttarakhand, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

अगले दिन में गोविंदघाट उतार आया, और वहाँ से मैं 25 कि.मी. दूर बद्रीनाथ (हिंदू धर्म के चार धामों में से एक) के दर्शन करने निकल पड़ा | ये मंदिर अलकनंदा नदी के किनारे बना है | मुझे लगा कि मंदिर में खूब भीड़ होगी, मगर इस खूबसूरत मंदिर में ज़्यादा लोग थे ही नहीं | यहाँ से मैं जोशीमठ उतर आया |

छठा दिन

Photo of तुंगनाथ मंदिर, Chopta, Uttarakhand, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

चलिए आगे बढ़ते हैं | छठे दिन मैं सुबह जल्दी ही जोशीमठ से चोपटा की ओर निकल गया क्योंकि मुझे रास्ते में कई बसें बदलनी थी | पहले मैं जोशीमठ से 50 कि.मी. दूर चमोली पहुँचा, मगर जैसे ही मैं बस से उतरा, मुझे एक पुलिस वाले ने अपने पास बुला लिया | पहले तो मुझे अजीब लगा, मगर जब उसने मुझसे टूरिस्ट होने के नाते अपने अनुभवों के बारे में पूछना शुरू किया तो मुझे बहुत अच्छा लगा | खाने पीने, घूमने और सुरक्षा के नज़रिए से उसने मुझसे कई सवाल किए | लगा कि अब शायद भारत में भी आम आदमी के मुद्दों पर गौर किया जाने लगा है |

Photo of हेमकुंड साहिब-तुंगनाथ-देवरिया: उत्तराखंड में एकल यात्रा का मज़ा! by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

इसके बाद मैं गोपेश्वर की बस पकड़ के 50 कि.मी. दूर चोपटा पहुँच गया | सच कहूँ तो ये 50 कि.मी. का रास्ता जन्नत से कम नहीं था | सड़क के एक ओर घना जंगल फैला था और दूसरी ओर घाटी थी | मेरे कानों में कोल्ड्प्ले का पैरडाइस बज रहा था, और सामने जो था वो भी पैरडाइस के कम नहीं था | दोपहर में मैं चोपटा पहुँच गया और वहाँ से मैंने तुंगनाथ की ओर 3 कि.मी. की चढ़ाई करनी शुरू कर दी | ट्रेक की खूबसूरती को मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता। रास्ते में बारिश शुरू हो गयी तो मैं एक मंदिर में ठहर गया |

तुंगनाथ दुनिया का सबसे ऊँचाई पर बना शिव मंदिर है | सर्दियों में यहाँ 2 मीटर तक बर्फ गिरती है इसलिए शिवलिंग को "मक्‍कुमठ" नाम के गाँव में ले जाया जाता है | यहाँ घूमते वक़्त मैनें कुछ लोगों को कैंपिंग का सामान लेकर मंदिर की ओर आते देखा | मैं हमेशा से कैंपिंग करना चाहता था, मगर अकेले कैंपिंग करने में ख़तरा है | इस बार मेरे पास मेरा स्लीपिंग बैग भी था, तो मैंने इन लोगों से पूछ ही लिया कि क्या मैं इनके साथ कैंपिंग कर सकता हूँ | ये लोग दिल्ली के बाइकर थे और खुद को नून (नमक) गैंग बुलाते थे | हमने साथ में दो दिन कैंपिंग की | बड़ा मज़ा आया | फिर हम 4000 मीटर की ऊँचाई पर चंद्रशिला पीक की ओर चल पड़े | रात को जंगली जानवरों का ख़तरा तो था, मगर एक पालतू कुत्ता रात भर हमारे साथ था|

आठवाँ दिन

अगले दिन मैं लिफ्ट लेता हुआ चोपटा से 25 कि.मी. आगे देवरिया ताल की ओर चल दिया, क्योंकि बाइकर्स अपनी मोटरसाइकल से आगे निकल चुके थे | लिफ्ट लेता और पैदल चलता मैं सारी गाँव तक पहुँच गया, जहाँ से 3 कि.मी. ऊपर देवरिया ताल है | ताल पहुँचकर कर आस पास देखा तो पाया कि ऐसा शानदार नज़ारा आज तक नहीं देखा था | पहाड़ों को छू कर गुज़रते बादल और काँच के जैसी साफ झील | रात को जमकर बारिश भी हुई | दो दिन तक हम यहीं रहे और आस पास की जगहें घूमी | 'स्काइ फुल ऑफ स्टार्स' गाना चलाकर रात को हम तारों को देखते हुए सो जाते थे |

दसवाँ दिन

Photo of ऋषिकेश, Uttarakhand, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

अगले दिन मैं नून गैंग को अलविदा कहकर अपने रास्ते निकल पड़ा | सारी गाँव से रुद्रप्रयाग और वहाँ से मैं बस पकड़कर ऋषिकेश की पहुँच गया | जब ऋषिकेश पहुँचा तो भयानक बारिश हो रही थी | राजस्थान हाउस पर भरपेट खाने के बाद मैं घाट पर आरती देखने पहुँच गया | ऋषिकेश आए हो तो राफ्टिंग ज़रूर करना | बारिश के मौसम में पानी काफ़ी ऊपर चढ़ जाता है, मगर मेरे साथ एक 10 साल का बच्चा भी बोट में बैठा था, तो डरने की कोई बात नहीं है | ऋषिकेश में बहुत से फिरंगी शांति और योग के साथ प्रयोग करने आते हैं | यहाँ मैं एक दिन से ज़्यादा नहीं रुका | पर मज़ा बहुत आया |

ग्यारहवाँ दिन

Photo of देहरादून, Uttarakhand, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

आख़िर मैं अपनी ट्रिप के आख़िरी पड़ाव पर पहुँच ही गया | घाटियों का शहर- देहरादून, जो अपने स्कूलों, ताज़ी हवा और खूबसूरत वादियों के कारण जाना जाता है | तीन दिन रुकने के दौरान मैंने यहाँ का स्ट्रीट फूड खाया, बढ़िया कॉफ़ी पी, रॉबर्स केव और फोरेस्ट रीसर्च इंस्टीट्यूट घूमा |

तो ये था मेरा 10 दिन का उत्तराखंड में घूमने का सफरनामा | घूमने के दौरान मैं नए लोगों से मिला, नई चीज़ें सीखी, नई सभ्यता से रूबरू हुआ, बढ़िया खाना खाया और ज़िंदगी भर की यादें बना ली | तो आप भी घूमने निकल जाइए | कुछ कहना है तो कमेंट्स सेक्शन में कह दीजिए | अब जाइए, घूमिए |

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