प्रयाग का अर्थ होता है संगम |जहाँ दो नदियों का संगम होता है उसे प्रयाग कहा जाता है| उतराखंड अलकनंदा नदी के साथ अलग अलग नदियों के संगम पर पवित्र पांच प्रयाग बने हुए हैं| जैसे देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग और विष्णु प्रयाग| इस पोस्ट में हम उतराखंड के पांच प्रयाग के बारे में जानेंगे|
1. देवप्रयाग- ऋषिकेश से 71 किलोमीटर दूर बद्रीनाथ मार्ग पर उतराखंड के पांच प्रयागों में से एक है देवप्रयाग | यहाँ पर ही भागीरथी और अलकनंदा का संगम होता है जहाँ से आगे नदी का नाम गंगा हो जाता है | यह बहुत पवित्र और खूबसूरत जगह है | समुद्र तल से देवप्रयाग की ऊंचाई 618 मीटर है | देवप्रयाग पहाड़ियों पर दो नदियों के बीच बसा हुआ है| यह जगह प्राचीन काल से ही तपस्थली रही है| ऐसा कहा जाता है कि यहाँ पर देव शर्मा नामक ब्राह्मण ने तपस्या की थी जिसके नाम पर ही इस जगह का नाम देवप्रयाग हो गया| प्रयाग शब्द का अर्थ है संगम | उत्तराखंड के पांच प्रयागों में भी अलग अलग नदियों का संगम होता है| इन पांच प्रयागों के नाम इस प्रकार है देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग और विष्णुप्रयाग| देवप्रयाग में भगवान राम ने भी तपस्या की थी| आदिगुरु शंकराचार्य भी नौंवी सदी में देवप्रयाग आए थे| उनके काफी शिष्य देवप्रयाग में ही बस गए| देवप्रयाग में निवास करने वाले जयादातर लोग भगवान बद्रीनाथ के पुरोहित भी है| देवप्रयाग में अलकनंदा पर वशिष्ठ कुंड बना हुआ है और भागीरथी पर ब्रह्मकुंड बना हुआ है| देवप्रयाग के संगम स्नान करने के लिए पूरा वर्ष यात्री आते रहते हैं| देवप्रयाग में संगम के ईलावा रघुनाथ मंदिर भी दर्शनीय है| देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनंदा नदी का संगम बहुत मनोरम दृश्य पेश करता है| बद्रीनाथ मार्ग पर देवप्रयाग से पहले दूर ऊंचाई से देखने पर भागीरथी और अलकनंदा का संगम आलौकिक लगता है| बद्रीनाथ और केदारनाथ जाने वाले यात्री इस जगह पर रुक कर इस संगम को देखकर ही आगे बढ़ते हैं|
देवप्रयाग पहुंचना- नवंबर 2021 में बद्रीनाथ धाम की यात्रा से लौटते समय हमने देवप्रयाग की यात्रा की थी| सुबह में बद्रीनाथ से चलकर गुरुद्वारा गोबिंद घाट के दर्शन करते हुए जोशीमठ से औली रोपवे का आनंद लेते हुए हम चार दोस्त अपनी गाड़ी से रात को गढ़वाल मण्डल विकास निगम के रुद्रप्रयाग होटल में रुके थे| अगले दिन सुबह हम रुद्रप्रयाग से चलकर देवप्रयाग पहुँच गए| सुबह 9 बजे का समय था और हमें भूख भी बहुत लगी हुई थी| सबसे पहले हमने देवप्रयाग पहुँच कर गाड़ी को पार्क करने के बाद एक छोटे से ढाबे को देखा | ढाबे वाले भाई को हमने आलू के परांठों का आर्डर दे दिया| सबजी और चटनी के साथ गरमागरम आलू के परांठों का आनंद लेने के बाद हम सभी दोस्त देवप्रयाग घूमने के लिए निकल पड़े| ढाबे के साथ ही एक छोटी सी गली में उतरते हुए चलते चलते भागीरथी पर बने हुए खूबसूरत पुल को पार करते हुए सीढ़ियों को उतरते हुए देवप्रयाग संगम पर पहुँच जाते हैं| जहाँ एक तरफ से भागीरथी आ रही है दूसरी तरफ से अलकनंदा आ रही है और बिलकुल सामने दिखाई दे रहा था दो पवित्र नदियों का संगम| हम काफी देर तक इस संगम को देखते रहे| भागीरथी नदी का बहाव काफी तेज था और अलकनंदा कुछ शांत लग रही थी | भागीरथी का जल भी हलका हरे रंग का दिखाई दे रहा था और अलकनंदा का जल कुछ गहरे हरे रंग जैसा प्रतीत हो रहा था| यहाँ पर बिताए हुए पल ऐसे लग रहे थे जैसे कुछ पलों के लिए जिंदगी यही पर रुक गई है| दुनियादारी, मोह माया और चिंता से दूर बस कुदरत की गोद में दो नदियों का संगम और बहते हुए जल का शोर | बहुत आलौकिक लग रहे थे यह पल और जिंदगी | फिर हम संगम को देखने के बाद कुछ सीढ़ियों को चढ़कर रघुनाथ मंदिर के दर्शन करने के लिए जाते हैं| ऐसा कहा जाता है रावण का वध करने से भगवान राम पर ब्रहम हत्या का दोष लग गया था| इसको दूर करने के लिए भगवान राम ने यहाँ पर तपस्या की थी| यह खूबसूरत मंदिर देवप्रयाग के बीच में 70 फीट ऊंचा बना हुआ है| इस मंदिर में 6 फीट ऊंची रघुनाथ जी की मूर्ति है| हमने रघुनाथ मंदिर के दर्शन किए और फिर हम वापस सीढ़ियों को उतरते हुए भागीरथी नदी पर बने पुल को पार करने के बाद हाईवे पर पहुँच जाते है जहाँ हमने गाड़ी पार्क की थी| यहाँ से आगे दो किमी दूर देवप्रयाग के बाहर हम एक जगह पर रुकते है जहाँ भागीरथी नदी और अलकनंदा का संगम दिखाई देता है| यहाँ पर हम थोड़ी फोटोग्राफी करते हैं और फिर ऋषिकेश के लिए आगे बढ़ जाते हैं|
कैसे पहुंचे- देवप्रयाग ऋषिकेश से 71 किमी दूर है बद्रीनाथ मार्ग पर| आपको ऋषिकेश से बहुत सारी बसें, टैकसी आदि मिल जाऐगी देवप्रयाग के लिए|
कहाँ ठहरें- देवप्रयाग में रहने के लिए बहुत सारे होटल है | इसके अलावा आप काली कमली धर्मशाला, गढ़वाल मण्डल विकास निगम के आवास गृह में भी रुक सकते हैं| खाने के लिए आपको लोकल होटल और ढाबे मिल जाऐगे जहाँ पर आप पहाड़ी खाने का आनंद ले सकते हो|
2. रुद्रप्रयाग- समुद्र तल से 610 मीटर की ऊंचाई पर बसा रुद्रप्रयाग केदारनाथ और बद्रीनाथ मार्ग पर मुख्य पड़ाव है| रद्रप्रयाग पंच प्रयाग में आता है| यहाँ पर अलकनंदा नदी का मंदाकिनी नदी से संगम होता है| यहाँ पर भगवान रुद्रनाथ का पुराना मंदिर बना हुआ है| महाभारत काल में इस जगह का नाम रुद्रावत था| सड़क से सीढ़ियों को उतर कर आप संगम तक पहुँच सकते हो| जहाँ आप भगवान रुद्रनाथ मंदिर के दर्शन कर सकते हो| रुद्रप्रयाग से चार किलोमीटर दूर अलकनंदा नदी के किनारे पर कोटेश्वर मंदिर भी दर्शनीय है| रुद्रप्रयाग में रात्रि विश्राम के लिए आपको हर बजट के होटल और धर्मशाला आदि मिल जाऐंगे|
3. कर्णप्रयाग - महारथी कर्ण की नगरी कर्णप्रयाग में पिंडारी गलेशियर से आती पिंडर नदी और अलकनंदा नदी का खूबसूरत संगम होता हैं। ऐसा माना जाता है कि महारथी कर्ण ने यहाँ पर तप किया था| कर्णप्रयाग में उमा देवी का भी मंदिर बना हुआ है| रहने के लिए कर्णप्रयाग में हर बजट के होटल मिल जाऐंगे| गढ़वाल मण्डल विकास निगम का होटल भी कर्णप्रयाग में बना हुआ है| पिंडर नदी को कर्ण गंगा भी कहा जाता है|
4. नंदप्रयाग - नंदप्रयाग उत्तराखंड राज्य में एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल एवं हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध पर्वतीय तीर्थों में से एक है। नंदप्रयाग अलकनंदा और नंदाकिनी नदियों के संगम पर स्थित है
नंदप्रयाग को कण्व आश्रम कहा गया है जहाँ दुष्यंत एवं शकुंतला की कहानी गढ़ी गयी। इसका नाम इसलिये बदल गया क्योंकि यहाँ नंद बाबा ने वर्षों तक तप किया था।
समुद्रतल से 914 मीटर की ऊंचाई पर अलकनंदा एवं नंदाकिनी नदी के संगम पर बसा नंदप्रयाग धार्मिक पंच प्रयागों में से एक है।नंदप्रयाग में पवित्र संगम स्थल, चंडिका मंदिर, गोपाल जी मंदिर एवं शिव मंदिर आदि दर्शनीय स्थल है|रहने के लिए आपको नंदप्रयाग में होटल आदि मिल जाऐंगे|
5. विष्णु प्रयाग- यहां पर अलकनंदा और धौलीगंगा नदियों का संगम होता हैं। विष्णु प्रयाग जोशीमठ से 12 किमी दूर है| यहाँ भगवान विष्णु का मंदिर बना हुआ है| विष्णु प्रयाग से 8 किमी दूर गोबिंद घाट है जहाँ पर गुरुद्वारा बना हुआ है|