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सफर लखनऊ से शुरू हुआ था और ट्रेन समय से तीन घंटे देर से आई। बीते तीन घंटे की शुरुआत हम तीन यारों ने बात व घर से लाए खाने को खा कर किया। भोर का वक्त था तो खाने के बाद नींद भी लिए हम सब।
ट्रेन आई हम सब उस पर बैठे और सफर की शुरुआत हो चली। शाम के वक्त ट्रेन हरिद्वार पहुँच गई और फिर क्या था सपने जो हम देखे थे वो मन मे आने शुरू हो गए और मन उन सब बातों को वहाँ की वादियों मे खोजने लगा। शहर में नए होने की वजह से काफी भटकना पड़ा लेकिन रात होते होते हम लोग अपने आशियाने पहुँचे ही गए।
हरिद्वार की पावन धरती पर 2 अगस्त की सुबह घर से अपनी बाइक द्वारा हरिद्वार के प्रसिद्ध 'हर की पौड़ी' के स्नान घाट पर सूर्य नमस्कार कर स्नान का आनंद लिया गया। इसका भावार्थ है "हरि यानी नारायण के चरण"।
हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार समुंद्र मंथन के बाद जब विश्वकर्मा जी अमृत को देव-दानवों से लड़कर बचा रहे थे तब अमृत की कुछ बूँदें पृथ्वी के हरिद्वार भाग पर आ गिरी थी और आज उस स्थान को हम सब हरिद्वार के पावन स्नान घाट हर की पौड़ी के नाम से जानते है। माना जाता है कि हर की पौड़ी में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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घाट से कुछ दूर ऊँचाई पर 'विष की देवी' के रूप में पूजी जाने वाली 'मनसा देवी' के दर्शन का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। माता का मंदिर हिमालय की सबसे दक्षिणी पर्वत श्रृंखला, शिवालिक पहाड़ियों पर बिल्व पर्वत के ऊपर स्थित है।
माता के मंदिर को बिल्वा तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है, हरिद्वार के भीतर पंच तीर्थ (पाँच तीर्थ) में से एक है।
मंदिर की ऊँचाई पर पहुचने के लिए रोपवे का भी विकल्प है। जिसके द्वारा यात्री आसानी से मंदिर तक पहुँच सकते है।
सफर में आगे का सफर 'चंडी देवी मंदिर' की तरफ रहा। जो भक्तों द्वारा एक सिद्ध पीठ के रूप में अत्यधिक पूजनीय है, जहाँ मनोकामना पूरी होती है। यह मंदिर हिमालय की सबसे दक्षिणी पर्वत श्रृंखला, शिवालिक पहाड़ियों के पूर्वी शिखर पर नील पर्वत के ऊपर स्थित है।
इस मंदिर को 'नील पर्वत तीर्थ' के रूप में भी जाना जाता है, जो हरिद्वार के भीतर स्थित पंच तीर्थ (पाँच तीर्थ) में से एक है।
यह मंदिर 2,900 मीटर (9,500 फीट) की ऊँचाई पर स्थित हैं। मंदिर तक रोपवे से असानी से पहुँचा जा सकता है। रोपवे मार्ग की कुल लंबाई लगभग 740 मीटर (2,430 फीट) और ऊँचाई 208 मीटर (682 फीट) है।
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शाम का वक्त हरिद्वार के हर हर की पौड़ी पर शाम के वक्त।की पौड़ी से कुछ मनमोहक यादें। उस वक्त भारी बारिश होने के नाते आप तस्वीर मे देख पाएँगे नदी की तेज बहाव। मंदिरों पर लगी लाइटें मंदिरों की शोभा मे चार चाँद लगा रही थी। हर की पौड़ी के स्नान घाट पर के दूसरे तरफ आप एक घड़ी के टावर को देख सकते है जोकि ठीक आप की घड़ी से मिलता समय बताएँगी।
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सफर में अब अगली मंज़िल थी देहरादून, जिस जगह से हमे काफी उम्मीदें थी। हरिद्वार के मुख्य रेलवे स्टेशन के ट्रेन से देहरादून तकरीबन एक घंटे मे हम पहुँच गए। आप की सुविधा के लिए बता की देहरादून रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन एक दम पास पास में स्थित हैं। यही सब कुछ महत्वपूर्ण वजह थी जो हम एक अनजान सी जगह पर आसानी से अपना पन का अहसास दिलाती रही।
हमारा सफर देहरादून रेलवे स्टेशन से तकरीबन 8 कि.मी. की दूरी पर स्थित प्रसिद्ध 'राॅबर्स केव' की दूरी आटो से तय किया हुई। देहरादून में सहस्रधारा के पास स्थित रॉबर की गुफा, स्थानीय रूप से गुफा 'गुच्छूपानी' के रूप में जानी जाती है। गुफा लगभग 600 मीटर लंबी है, जिसे दो मुख्य भागों में विभाजित किया गया है। गुफा में लगभग 10 मीटर की उच्चतम गिरावट है।
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गुफा के अन्दर प्रवेश करने के लिए दो अंकों के पैसे का टिकट लगता है। जिसे आप खुशी से अदा कर सकते है।
जैसा की आप ने सभी फोटो मे देखा, गुफा ठीक उसी प्रकार से आप को सामने से देखने मे लगेगी। एक फोटो मे आप वहाँ पर आऐ विदेशी सैलानियों को देख पा रहे होंगे जिन्हें वहाँ पर सुन कर उनकी खुशी का अन्दाजा गया जा सकता था। गुफा की खास बात यह भी देखने को मिला की वहाँ पर किसी भी प्रकार के पानी के जानवर नहीं थे, जिस से किसी भी सैलानियों को कोई दिक्कत हो सके। पानी ठंडा होने के बाद भी हम सबको उस पानी से मानो प्यार सा हो गया था।
अगर आप ने फोटो पर ध्यान दिया होगा तो आप हमारे बदले कपड़ो को देख सकते है। आप की जानकारी के लिए बता दे अगर आप उस गुफा को बिना किसी अन्य कपड़ो को लिए बिना गये है तो कोई चिंता का विषय नही है। गुफा के बाहर उपस्थित कुछ दुकानों पर आप को अपने अनुसार नहाने लायक कपड़े कुछ ही पैसों पर मिल जाऐंगे। कपड़ो के साथ साथ आपको वहाँ पर अपनी अनुसार के चप्पलें भी मिल जाएँगी, जिससे आपको पानी के नीचे मौजूद छोटे छोटे पत्थरों से होने वाले दिक्कतों से दूर रखेगा।
सफर का चौथा दिन था। हमारा सफर हरिद्वार के मुख्य रेलवे स्टेशन से ट्रेन के माध्यम से लगभग 30 मिनट का सफर तय कर ऋषिकेश पहुँचना हुआ।
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फोटो में आप देख सकते है की उस वक्त का नज़ारा किस प्रकार से ऋषिकेश रेलवे स्टेशन के खूबसूरती की तरफ सबका ध्यान आकर्षित कर रहा था। बादलों को देख कर मानो यह लग रहा था की यह बादल हम से बात करने को नीचे आना चाह रहे है।
रेलवे स्टेशन से आटो से होते हुए ऋषिकेश शहर से 3 कि.मी. (1.9 मील) उत्तर-पूर्व में गंगा नदी के पार राम झूला पुल तक सफर तय हुआ। पुल ने दो जिलें टिहरी गढ़वाल व पौड़ी गढ़वाल को जोड़े रखा है।
टिहरी गढ़वाल जिले में मुनि की रेती के शिवानंद नगर क्षेत्र को पश्चिम से पूर्व की ओर पौड़ी गढ़वाल जिले में स्वर्गाश्रम से जोड़ता है। वर्ष 1986 में निर्मित यह पुल ऋषिकेश के प्रतिष्ठित स्थलों में से एक है।
यह पुल गंगा के दोनों किनारों पर स्थित शिवानंद आश्रमलोक से गीता भवन, परमार्थ निकेतन और स्वर्गाश्रम में स्थित अन्य मंदिरों के बीच एक संपर्क पुल है। राम झूला पुल नदी की धारा से 2 किलोमीटर (1.2 मील) ऊपर है। पुल की लम्बाई 750 फीट (230 मीटर) है।
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राम झूले के शुरूआती तरफ जिले टिहरी गढ़वाल के बाजार वा घाट की सुन्दरता को यादों में बसाते हुए आगे का सफर शुरू हुआ। पुल के दूसरी तरफ जिले पौड़ी गढ़वाल के सफर में परमार्थ आश्रम आ पहुँचे।
परमार्थ आश्रम ऋषिकेश का सबसे बड़ा आश्रम है। इसमें 1000 से भी अधिक कक्ष हैं। यह हिमालय की गोद में गंगा के किनारे स्थित है।आश्रम में भगवान शिव जी की 14 फुट ऊँची प्रतिमा स्थापित है। आश्रम के प्रांगण में 'कल्पवृक्ष' भी है जिसे 'हिमालय वाहिनी' के विजयपाल बघेल ने रोपा था।
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परमार्थ आश्रम की खूबसूरती को यादों मे सजाते हुए आगे का सफर पूरा करने को पेट पूजा का नम्बर आया। परमार्थ आश्रम के बाजार मे उपस्थित शुद्ध सादे खाने के रैस्टोरेंट में सभी एक साथ जा पहुँचे। फिर क्या था सब ने मन का खाना देख मन को शांत किया। खाने की शुद्धता आप को एक भी वक्त के लिए घर की याद नहीं आने देगा। कुछ फोटो मे आप रैस्टोरेंट के मेन्यू को देख सकते है जिसमें आप को वहाँ पर उपलब्ध शुद्ध खाने की जानकारी मिल सकती है।
ऋषिकेश की पावन धरती से सभी प्यारी यादों के साथ हम निकल लिए। अब हम उस ऐतिहासिक पल को देखने के निकल पड़े थे जहाँ हम पिछले दिनों तमाम कोशिशों के बाद नही पहुँच पाऐ थे, वह थी हर की पौड़ी पर शाम की पवित्र गंगा आरती।
हरिद्वार के पावन स्नान घाट हर की पौड़ी की पवित्र आरती मे शामिल होने का एक अगल ही एहसास था। आरती की काफी विशेषताएँ है। यह आरती दिन मे दो बार, 21 लोगो के हाथों से होती है।
शाम की आरती के शुरू होने का वक्त 7 बजे होता है। हम सबकी कुछ दिनों की कोशिश इस क़दर पुरी हुई थी की हम सब आरती को देखने के लिए घाट पर 5 बजे ही पहुँच गए थे और फिर पूरे 2 घंटे अपनी ग्रहण किए गए स्थान पर काफी धक्का मुक्का सहने के बाद भी डटे रहे।
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इन्हीं कुछ यादों के साथ सफर का आखिरी वक्त भी आ गया। अब हम सब अपनी यादो के साथ अपने घर को लौट रहे थे। हरिद्वार के मुख्य स्टेशन पर पहुँचने के बाद काफी तेज़ बारिश शुरू हो गई और ट्रेन समय से ना होने की वजह से हरिद्वार की धरती पर कुछ और भी वक्त बिताने को मिला। 5 अगस्त की शाम ट्रेन में सवार होने के बाद ठीक अगली सुबह लखनऊ मे ही उतरा।
इस छोटे से लेख को अपना प्यार जरूर दे, धन्यवाद!
एकांश सिहं
अकबरपुर अम्बेडकरनगर (निकट- अयोध्या) उत्तर प्रदेश