केदारनाथ !!!
नाम सुनते ही हिमालय के बर्फिले शिखरो के बीच बसा हुआ शिवजी का धाम याद आ जाए ओर आंखो मे श्रद्धा से छलकता हुआ पानी.
भगवान शिव का दिव्य प्रकाश के रूप मे वास ऐसा लिंग यानि कि ज्योतिर्लिंग. बारह ज्योतिर्लिंग में सबसे ऊंचे स्थान ( ११,७४६ फीट ) पर जो बिराजित है वह है उत्तराखंड में बसा हुआ केदारनाथ. यह केदारेश्वर या केदारांचल के नाम से भी जाना जाता है. यमनोत्री, गंगोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ की चारधाम यात्रा वाला एक धाम है और साथ ही में एक सौंदर्यधाम भी है. चौखंबा हिमसरिता से निकली हुई मंदाकिनी नदी, बर्फ के कपड़े पहने हुए पहाड़, जबरजस्त ठंडी, धीमी बारिश, हिमवर्षा, कभी सूरज दिखे कभी बादलों के पीछे छुप जाए, इसके चलते हुए शिवभक्तों के साथ प्रकृतिप्रेमी भी केदरनाथ की तरफ़ खींचे चले आते है.
केदारनाथ पहुंचने का मार्ग थोड़ा कठिन है क्योंकि वहा कोई मोटरवाहन नहीं पहुंच सकता. मोटरवाहन के लिए आखिर का स्टेशन गौरीकुंड है जहा से केदारनाथ तक पैदलयात्रा करनी पड़ती है. इससे पहले आपको हरिद्वार आना पड़ेगा. हरिद्वार से बस या टैक्सी या प्राइवेट वाहन से सोनप्रयाग और वहा से गौरीकुंड. सोनप्रयाग से गौरीकुंड ६ किलोमीटर है. यही वो जगह है जहा देवी पार्वतीजी मंदाकिनी नदी के किनारे ध्यान करती थी.
बस ! गौरीकुंड से केदारनाथ का नाम लेके आप पैदल निकल जाइए शिवजी के दर्शन के लिए. अगर आप पहाड़ों के रास्ते पैदल नहीं जा सकते है तो घोड़े पे बैठ कर या पालकी में भी यात्रा कर सकते है. सोनप्रयाग में बायोमैट्रिक्स रजिस्ट्रेशन कराना पड़ेगा. वहा से जो आधारपत्र मिलेगा उसे पूरी यात्रा में साथ रखना पड़ेगा क्योंकि उसी से १८ किलोमीटर ट्रेक में शिवभक्तो को भोजन, आगे की मंजूरी और उतारे की व्यवस्था मिलेगी.
गौरीकुंड के बाद धीरे धीरे चढ़ान शुरू होती है जो भीमबली से आगे रामवाडा पहुंचने तक काफी तेज हो जाती है. खास तौर से रामवाडा से लिन्चोली तक काफी थकान महसूस हो सकती है जिसका कारण हवा में ऑक्सीजन की कमी है. इसी वजह से काफी यात्री को चक्कर आना, वॉमिट होना, सांस लेने में दिक्कत जैसी समस्या होती है जिसे ' एक्यूट माउंटेन सिकनेस ' भी कहते है.
लिन्चोली से ३ किलोमीटर आगे जाते ही आप केदारनाथ बेसकैंप पहुंच जाते है. वहा पर यात्रिओ के लिए टैंट्स बनाएं है जहा मुफ़्त भोजन और रहने की व्यवस्था की गई है. सामने ही हिमालय के शिखर और साथ में दिखते हैं भगवान केदारनाथ, जिसे देखते ही शरीरकी एनर्जी बढ़ जाती है.
केदारनाथ की स्थापना पांडवोने की थी ?
मंदिरका इतिहास और उसके भीतर
हर धार्मिक स्थल के साथ एक पौराणिक कथा जुड़ी होती है. महाभारत युद्ध में कौरवो के सामने विजयी होने के बाद पांडवो को अफसोस हो रहा था तो उस पाप को प्रायश्चित करने के लिए हिमालय में बसे शिवजी के दर्शनको निकल पडे. पांच पांडव और साथ द्रौपदी दिनो तक घूमते घूमते गुप्तकाशी आए जहा उनको एक दैवी बैल दिखा. यही बैल भगवान शिवजी का अवतार है जानकर पांडव उनका पीछा करने लगे. यह देख बैल जमीन में चला जाने लगा पर उसकी पीठ का थोड़ा भाग बाहर रह गया जिसे शक्तिशाली भीम ने पकड़ लिया. दोनो के बीच युद्ध होने के बाद बैल के मुख का शीर्ष भाग जहा निकला वो नेपाल का पशुपतिनाथ. और उभार बाहर निकली हुई थी वो है आज का केदारनाथ.
उसके बाद केदारनाथ काफी बार पुनःनिर्माण हुआ. कहा जाता है कि अभी का केदारनाथ ८ सदी में आदि शंकराचार्यने कराया था. मंदिरके बाहर नंदी की बड़ी प्रतिमा है तो भीतर रिद्धि सिद्धि के साथ गणेश, मां पार्वती, विष्णु और लक्ष्मीजी, श्रीकृष्ण, कुंती, द्रौपदी, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव की मूर्तियां हैं. यहा पे वीरभद्रकी मूर्ति है और बीच में ज्योतिर्लिंग जिसपे भक्तगण घी बिलीपत्र गंगाजल दूध चढ़ाते है.
आदि शंकराचार्य की समाधि :
मंदिर के बराबर पीछे आदि शंकराचार्य की समाधि आई हुई है जिन्होंने ३२ साल में महाप्रयाण किया था.
हंसकुंड : पितृतर्पण और पिंडदान विधि हंसकुंड में पुरोहितों द्वारा की जाति है.
उदककुंड : ज्योतिर्लिंग से दक्षिण मे ५० मीटर दूर पवित्र उदककुंड आया है जहा पर ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाया गया पानी इकठ्ठा होता है जो भक्तजन अपनी बॉटल में भर के ले जाते है.
वासुकी ताल : केदारनाथ से ७ किलोमीटर दूर १४,२०० फीट पर वासुकी ताल तालाब है जहा पहुंचने के लिए ट्रेकिंग करना पड़ता है.
पंचकेदार यात्रा
चोराबाड़ी या गांधी सरोवर : मंदिर से ४ किलोमीटर दूर एक सुंदर तालाब है जहा गांधीजी की अस्थियां पधरायी गई थी इसी वजह से इसको गांधी सरोवर कहा जाता है.
पंचकेदार यात्रा केदारनाथ क्षेत्र में ओर चार शिवमंदिर बसे हुए हैं जो मध्यमहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और कल्पनाथ है. अगर एक हफ्ते का समय हो तो आप यह पंचकेदार की यात्रा भी कर सकते है.
१. मध्यमहेश्वर : रुद्रप्रयाग से वाया गुप्तकाशी हो के कालीमठ तक बस या टैक्सी में जा सकते है जहा से २३ किलोमीटरकी पैदल यात्रा शुरू होती है. यह मंदिर १०,८९९ फीट की उंचाई पर बसा है जो काफी सुंदर है.
२. तुंगनाथ : उखीमठ से ३१ किलोमीटर और चोपता बस स्टैंड से ३ किलोमीटर दूर तुंगनाथ मंदिर बसा हुआ है जो कला की दृष्टि से अदभुत है. यह शिवमंदिर १२,०७३ फीट उंचाई पर आया है.
३. रुद्रनाथ : चोपता से ३० किलोमीटर दूर सागर गांव तक मोटर यात्रा और फिर वहा से २० किलोमीटर पैदल यात्रा करके रुद्रनाथ पहुंच सकते है. कुदरती गुफा में शिवजी की मूर्ति बेहद सुंदर है. जुलाई और सितंबर के बीच यहा रंगबिरंगी फूलो की चादर छा जाती है.
४. कल्पनाथ : बद्रीनाथ मार्ग पर चमोली से ३४ किलोमीटर दूर हेलंगचट्टी तक मोटर और फिर वहा से १० किलोमीटर पैदल यात्रा करके कल्पनाथ पहुंच सकते है. यहाँ पे काफी घने जंगल है जहा शिवमंदिर गुफाकी अंदर है.
यह धाम साल में ६ महीने खुला रहता है. बाकी के ६ महीने यह बर्फ से ढका हुआ रहता है. हर साल अखात्रीज के आसपास मई महीने में मंदिर के कपाट खुलते हे और अक्टूबर नवंबर भाईबीज के दिन मंदिर के कपाट बंद होते है. यहा से शिवजी की मूर्ति को धामधुम से उखीमठ में आए हुए ओंकारेश्वर मंदिर में लाया जाता है जहा पर बाकी के महीने पूजा होती है.
वैसे तो हिमालय में साहसयात्रा के कई विकल्प है पर साहसयात्रा के साथ साथ अध्यात्म जिसमे मिला हुआ है वह सिर्फ एक ही है " केदारनाथ "
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