सुपरस्टार रजनीकांत हर साल करते हैं उत्तराखंड का यह ट्रेक,जानिए कम बजट में आपके लिए यहाँ क्या ख़ास हैं

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Photo of सुपरस्टार रजनीकांत हर साल करते हैं उत्तराखंड का यह ट्रेक,जानिए कम बजट में आपके लिए यहाँ क्या ख़ास हैं by Rishabh Bharawa

अल्मोड़ा के द्वाराहाट से करीब 25 किमी दूर स्थित हैं यहाँ का एक प्रसिद्द तीर्थ स्थान -दुनागिरी मंदिर। दुनागिरी से कुछ ही दूरी से घने जंगलों के बीच में से होकर एक ट्रेक हैं -स्वर्गपुरी पांडवखोली। जब आप इस ट्रेक को शुरू करने के लिए पहले पड़ाव पर जाते हैं और वहाँ के किसी भी लोकल से रास्ते वगैरह की बात करते हैं तो वो लोग बताएँगे आपको खुद के फोटोज ,वो भी रजनीकांत और अन्य बड़ी हस्तियों के साथ और बताएँगे कि वो हर साल कई बड़ी हस्तियों से यहाँ इसी जगह मिलते भी हैं। अब आपकी जिज्ञासा बढ़ेगी कि ऐसा क्या अनोखा हैं ऊपर कि इस छोटी सी जगह पर बड़े बड़े सेलेब्रिटी ,व्यापारी और राजनेता आते रहते हैं वो भी हर साल ,बार -बार।

असल मे ,इस जगह को काफी कम लोग ही जानते हैं एवं बाकी पर्यटन क्षेत्रों से थोड़ा हटकर अलग दूर स्थापित होने के कारण एवं आध्यात्मिक कारणों से इस स्थान पर हर साल देश की कई बड़ी हस्तियां आती हैं ,ट्रेक करके ऊपर जाती हैं और कुछ दिन भीड़ से दूर शान्ति से गुज़ारती हैं।जिनमे से सुपरस्टार रजनीकांत तो यहाँ हर साल आते हैं ,सामान्य लोगों की तरह ही ट्रेक करके ,ऊपर बने आश्रम में कुछ दिन गुजारते हैं।लेकिन ऐसी अनछुई जगहे और भी तो हैं कई राज्यों मे तो फिर ये जगह ही क्यों ?

तो चलो जानते हैं एवं शुरू करते हैं इस यात्रा को -

इस जगह को पहुंचने का सबसे नजदीकी लैंडमार्क जो हैं वो हैं दुनागिरी मंदिर। दुनागिरी मंदिर, माँ दुर्गा का एक प्रसिद्द तीर्थ स्थान हैं। काठगोदाम रेलवे स्टेशन से करीब 120 किमी स्थित यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना हैं। इस मंदिर में प्रवेश के लिए 365 पक्की सीढिया बनी हुई हैं जिनके दोनों ओर पक्की दिवार एवं ऊपर टीन के छज्जे लगे हैं ताकि यात्रियों को वन्य जीव एवं बारिश से कोई समस्या ना हो। यह चढ़ाई करीब 800 मीटर तक हैं एवं इसमें बीच बीच में जगह जगह विश्राम स्थल बना रखे हैं। इस पूरे रास्ते पर छज्जे से कई घंटियां बंधी हुई हैं।बीच में एक जगह भंडारा स्थल एवं कुछ दुकाने भी आती हैं। कुछ और चढ़ाई चढ़ते ही ,मंदिर तक पहुंचते ही आप अपने आपको चारो तरफ से घने वृक्षों से गिरे पहाड़ पर पाओगे। यहाँ सबसे पहले गोलू देवता एवं हनुमान मंदिर में दर्शन के बाद आप मंदिर तक पहुंचते हैं। इस मंदिर में कोई मूर्ति स्थापित नहीं हैं बल्कि यहाँ दुर्गा माँ की पूजा पिण्डियों के रूप में होती हैं।भंडारा स्थल पर आप भंडारे के सात्विक एवं स्वादिष्ट भोजन का आनंद ले सकते हैं।

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यहाँ से कुछ ही घंटों मे फ्री होकर अब आप निकल सकते हैं स्वर्गपुरी पाण्डुखोली के ट्रेक के लिए निकल सकते हैं जो कि दुनागिरि मंदिर के पास कुछ ही दूरी पर से ही शुरू होता हैं।यह 5 किमी का पैदल ट्रेक ज्यादा जोखिम भरा नहीं हैं। इसीलिए कोई फभी र्स्ट टाइम ट्रेक्कर भी इसे आसानी से कर लेगा। हालाँकि कुछ जगह थोड़ी तकलीफ तो आएगी ही।यह पूरा रास्ता इतने घने वृक्षों से घिरा हुआ हैं कि कई जगह तो सूर्य की रौशनी भी निचे नहीं पहुंच पाती हैं और जंगल में अँधेरा सा दिखाई देता हैं। पुरे ट्रेक पर कोई पक्का रास्ता नहीं हैं। आपको बस पहाड़ों की छोटी छोटी पगडंडियों से किसी भी तरह होकर आगे बढ़ते रहना होता हैं। कई जगह टूटी हुई पगडंडियाँ मिलने पर आपको चट्टानों पर से होकर जाना होता हैं। सबसे बड़ा चेलेंज यहाँ बारिश के मौसम में रहता हैं क्योकि पुरे रास्ते मे फिसलन होती हैं,गड्ढ़ो मे पानी भर जाता हैं , तो आपको सम्भल सम्भल कर चलना पड़ता हैं।याद रखे इस ट्रेक पर आपके साथ हमेशा पानी की कुछ बोतले ,रेनकोट ,छाता एवं खाने को कुछ नमकीन बिस्किट आदि होने चाहिए। रास्ता पूरा जंगली ही हैं एवं कोई दूकान वगैरह बीच मे नहीं हैं। शाम को ज्यादा अँधेरा होने पर जंगली जानवरों का खतरा भी यहाँ रहता हैं और एक और बात , इस जगह को बहुत कम लोग जानते हैं तो पुरे ट्रेक मे कुछेक लोकल ग्रामीण कभी मिल जाए तो मिल जाए बाकि पूरा ट्रेक सुना ही रहता हैं।इतने सूनेपन और शान्ति की वजह से ही यहाँ कई सेलेब्रिटी आते है।

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यहाँ आपका स्वागत करता हैं एक विशाल घास का मैदान :

जैसे ही आप अपने लक्ष्य तक पहुंचने लगते हैं ,सबसे पहले आपक स्वागत एक विशाल घास का मैदान करता हैं। उसी मैदान के साथ इस पहाड़ी पर आपको दिखायी देती हैं आपको एक दो इमारतें। 8300 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित यह इमारतें असल मे एक आश्रम तथा ध्यान एवं योग केंद्र हैं जहाँ कई देशों के लोग आकर महीनो तक ध्यान एवं योग करते हैं। यह जगह कई संतों की तपोभूमि एवं इसका पौराणिक महत्त्व होने के कारण ही यहाँ योग केंद्र बनाया गया। स्व. बाबा बलवंत गिरी ने इस आश्रम एवं योग केंद्र की स्थापना की थी।

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यहाँ आपके लिए कई सारी ये चीजें मौजूद हैं :

अगर आप पौराणिक जगहों पर जाना पसंद करते हैं तो इस जगह को महाभारत और रामायण काल से भी जुडी हुई माना जाता हैं।पाण्डुखोली को द्रोणागिरी पर्वत श्रेणी का हिस्सा माना जाता हैं। यहाँ से आप सनसेट ,सनराइज एवं हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों के विहंगम दृश्य का आनंद ले सकते हैं।इसके अलावा अगर आपको ध्यान एवं योग मे रूचि हैं तो आप यहाँ रह भी सकते हैं। यहाँ ऊपर काफी उचित दर मे रहने की व्यवस्था भी हैं। आप इतनी ऊंचाई पर कई नए लोगों और विदेशियों के साथ इन एक्टिविटी मे भाग ले सकते हैं। यही मधुमक्खी पालन ,गायपालन (गौशाला ) एवं आर्गेनिक कृषि भी की जाती हैं तो यहाँ रह कर इन चीजों को भी आप काफी बारीकी एवं करीब से समझ सकते हैं।इसके अलावा यहाँ कई मंदिर ,द्रोपदी विहार ,महावतार बाबा गुफा ,भीम की गुदड़ी जैसी जगहे देखने को मिलेगी।यहाँ आसपास कई गुफाएं भी हैं जहाँ कई संतो ने तप किया था आप उनके दर्शन केवल बहार से कर सकते हैं। आश्रम के कमरे भी अपने आप में जमीं के निचे स्थित कोई गुफा का हीअहसास दिलाएंगे।अगर आपको वनस्पति से सम्बन्धी जानकारी चाहिए तो मैं आपको बता दू कि माना जाता हैं इन जंगलों मे बहुमूल्य ओषधियाँ एवं वनस्पति हैं।यह जगह द्वाराहाट क्षेत्र का अंतिम इलाका भी हैं तो ऊपर एक दुकान मिलेगी जिसपर लगे एक बोर्ड पर लिखा होगा -द्वाराहाट ब्लॉक की अंतिम दूकान। और सबसे अंत अगर आपको उत्तराखंड मे कोई सुकून ,शान्तिं से भरी अनछुई जगह की तलाश हैं तो यह जगह सबसे बढियाँ आपको लगेगी जहाँ लोग लगभग ना के बराबर ही मिलते हैं।

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संजीवनी बूटी और पांडवों से हैं यहाँ का सम्बन्ध :

कहते हैं कि यहाँ पौराणिक काल से ही इस पहाड़ी में अधिक अनदेखी गुफाएं हैं क्योंकि जैसे ही धरती पर पैर मारते हैं तो कोई भी खोखले ड्रम की भांति ध्वनि सुन सकता है। हालाँकि ,इस बात का मुझे उस समय पता नहीं था जब मे यहाँ गया था। पाण्डवखोली के नाम से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यह जगह महाभारत काल से जुडी हुई हैं। पांडवखोली शब्द में खोली का मतलब होता हैं 'शरण ' अथवा इसी से मिलता जुलता अर्थ। तो पांडवखोली नाम से यह इंगित करता हैं कि यहाँ अज्ञातवास के समय पांडवों ने अपना काफी समय गुजारा था। छिपी जगह होने के कारण कौरव उन्हें यहाँ ढूंढ नहीं पाए थे। यह भी माना जाता हैं कि यहाँ संजीवनी बूटी के कुछ अंश गिरे थे ,इसीलिए यहाँ बहुमूल्य औषधियां मौजूद हैं।इनके अलावा इस जगह को कई पौराणिक कथाओं से जोड़ा जाता हैं।

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हर साल दिसंबर में यहाँ एक बड़ें भंडारें का आयोजन किया जाता हैं।उत्तराखंड सरकार का ध्यान इस जगह पर लाने के लिए यहाँ का विभाग कई प्रयत्न कर रहा हैं जैसे यहाँ एक रोपवे लगाने का भी एक प्रस्ताव पर चर्चा हुई थी। लेकिन यह जगह जब तक अनछुई हैं तब तक आप यहाँ नयनाभिराम प्राकृतिक दृश्यों को देखने ,आध्यात्मिक चेतना के विकास एवं मानसिक शान्ति के लिए यहाँ कुछ वक्त गुजार सकते हैं।

कैसे पहुंचे :दिल्ली से काठगोदाम आप ट्रैन या सड़क मार्ग से आ सकते हैं। यहाँ से सड़क मार्ग से रानीखेत होते हुए आप दुनागिरी और पाण्डुखोली पहुंच सकते हैं।इस ट्रेक को करने के दो रास्ते हैं एक तो दूनागिरी मंदिर के नजदीक से पांडूखोली 5 किलोमीटर की ट्रेकिंग करके पहुंचा जा सकता है। दूसरा ,कुक्कुचीना से भी यह शुरू की जा सकती है, जहां से यह सड़क से 4-5 किलोमीटर की ट्रेकिंग दूरी पर है।

नजदीकी अन्य पर्यटन स्थल :रानीखेत ,सोमेश्वर ,सुखदेवी मंदिर।

सुझावित होटल/गेस्ट हाउस : पांडवखोली आश्रम या वापस ट्रेक से निचे आकर KMVN द्वाराहाट मे रुका जा सकता हैं।

धन्यवाद्

-ऋषभ भरावा (लेखक :पुस्तक 'चलो चले कैलाश' )

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