मैंने फर्रुखाबाद के पास स्थित नीम करोरी बाबा के आश्रम के बारे में बहुत सुन रखा था। मेरा कई बार वहां जाने का मन किया पर जा नहीं पाया।
शनिवार को मेरे एकंमित्र से इस बारे में बात हो रही थी। तो मैंने प्लान किया अकेले जाने का । रविवार की सुबह 5:00 बजे कानपुर से फर्रुखाबाद की ट्रेन पकड़ ली। अमूमन ट्रेन फर्रुखाबाद लगभग 9:30 बजे पहुंचती है पर उस दिन वो ट्रेन 8:45 बजे ही पहुंच गई । समय से कुछ पहले। मैं सीधा मामा के घर गया ,मेरा ननिहाल फर्रूखाबाद ही है ।वहां से चाय नाश्ता किया, मामा के लड़के से बात की और हम दोनों पल्सर से निकल पड़े बाबा नीम करोली आश्रम के लिए। फर्रुखाबाद से बाबा नीम करोली आश्रम के लिए मोहम्मदाबाद होकर जाना पड़ता है ,फर्रुखाबाद से मोहम्मदाबाद है 20 किलोमीटर और मोहम्मदाबाद से नीम करोली बाबा आश्रम या लक्ष्मण दास पुरी की दूरी लगभग 7 किलोमीटर है । कुल 27 किलोमीटर का सफर है और हमने पूरा किया 45 मिनट में ।
रास्ते में सड़क थोड़ी सी खराब थी । बाकी बहुत अच्छी है । मोहम्दाबाद तक बस स्टैंड से बस मिल जाएगी और उससे आगे आपको किसी अन्य माध्यम से नीम करोली आश्रम तक जाना पड़ेगा। सबसे अच्छा है अगर आपके पास कार है या दो पहिया वाहन है तो आप स्वयं की सवारी से आराम से चले जाएंगे । वहां 11:00 बजे पहुंचे मंदिर बहुत विशाल है ,मंदिर बहुत बड़ा है ।
गणेश जी की मूर्ति से शुरू होकर, राम दरबार ,राधा-कृष्ण, दुर्गा मां बाबा हनुमान और उसके बाद वह तखत आता है जहां पर बाबा नीमकरोरी बैठा करते थे । उसके बाद विष्णु जी का मंदिर बना हुआ है ।और विष्णु जी के पास ही बाबा जी का मंदिर बना हुआ है ।जहां पर बाबा जी की मूर्ति स्थापित है। कहते है बाबा यहां कई वर्ष तक रहे । बाबा का नाम तो लक्ष्मण दास था परंतु यहीं पर मंदिर के समीप वह बैठकर ध्यान योग करते थे और नीम की पत्ती जिसको फर्रुखाबाद की भाषा में नीव कहा जाता है उससे जमीन खोदा करते थे, फर्रुखाबाद में खोदने को करोर कहा जाता है।
इसकी वजह से उनका नाम नीम करोरी पड़ गया । यहां पर वही गुफा है जिसको नीम के पत्तों से बाबा ने करोरी करके खोदा था। मंदिर के ठीक दाहिने तरफ बाबा द्वारा खोदी गई तीनो गुफाएं हैं हालांकि उसके बाहर मंदिर प्रशासन ने गेट बनाकर उस पर ताला लगा रखा है। ताकि उसको खराब होने से बचाया जा सके । गुफाओं के दर्शन आसानी से हो जाते हैं । हालांकि कुछ स्थानीय लोग उसकी दीवारों पर सिक्के चिपकाने का असफल प्रयास कर रहे थे। मान्यता बता रहे थे कि जिसका सिक्का चिपक जाए, उसकी मुराद पूरी हो जाती है। वहां दर्शन करने के बाद हमने मंदिर में प्रसाद ग्रहण किया। हालाँकि उस दिन भीड़ बिल्कुल भी नहीं थी। लेकिन लोग बताते हैं ,शनिवार और मंगलवार को वहां जबरदस्त भीड़ होती है ,पैर रखने की जगह नहीं होती। ये स्थान फर्रुखाबाद से जरूर 27 किलोमीटर दूर एक गांव है ।
फिर हमने तय किया कि यहाँ से आगे हम संकिसा जाएंगे।
भगवान बुद्ध की स्थल संकिसा यहाँ से 10 km दूर है। संकिसा के बारे में कहा जाता है कि भगवान बुद्ध जब स्वर्ग से सीधे यही अवतरित हुए थे, पृथ्वी पर सबसे पहले संकिसा में ही उतरे थे। दलाई लामा भी यहाँ दो बार आ चुके है। बहुत छोटी सी जगह है। तो हम वहां से 10 किलोमीटर आगे संकिसा पहुंचे। बिल्कुल शांत जगह है कोई भीड़ भाड़ नहीं थी । कुछ लोग जरूर लड़की लड़के का रिश्ता तय करने बैठे थे।।मुश्किल से 4 आदमी थे ,मंदिर परिसर में। हम ऊपर उस जगह पर पहुंचे,जो एक टीले पर है लेकिन उसके नीचे कहा जाता है कि एक महल है एसआई का पूरा कब्ज़ा है वहां भगवान बुद्ध के कई अन्य मठ भी है। हमने आसपास के चीजों को देखा बहुत सारे बहुत स्तंभ है ,उन सब को देखा और वहां से हम वापस चल दिये फर्रुखाबाद के लिए। लौटकर सीधे गए पंडा बाग स्थित शिव मंदिर। जब हम छोटे में नानी के घर रहते थे तो ये जगह घूमने के लिए एकलौती थी। और यही मेरी यादों में आजतक है। और उसके बाद फर्रुखाबाद की मशहूर "पपड़ियां" खाई पेट भरकर। और खरीद लिया कपूरकन्द का डिब्बा। और उसके बाद 2:35 पर कानपुर के लिए ट्रेन मिल गई । ये ट्रैन सामान्यतः 5:35 पर कानपुर आती है। लेकिन उस दिन भी ये ट्रैन समय से आधे घंटे पहले 5:00 बजे ही कानपुर पहुंच गई ।
ट्रैन के बारे में जरूर कहूंगा कि रिजर्वेशन मिल जाये तो करवा के जाए अन्यथा जनरल डिब्बे बहुत छोटे है, भीड़ बहुत होती है। लौटते समय बैठने की जगह भी नही मिली। 3 घण्टे खड़े खड़े आना पड़ा। फर्रुखाबाद जाते समय बैठने की जगह तो मिल गयी थी पर वहाँ रोज सफर करने वाले लोग चार की जगह 8 लोगो के बैठने की जिद्द करते है और बैठ भी जाते है। अन्यथा लड़ाई पर उतारू हो जाते है। रविवार होने के बाद भी भीड़ कम नही होतीं अन्य दिनों में तो काफी होती है।