तो भईया बात अप्रैल 2011 की है, बीटेक का आखिरी सेमेस्टर चल रहा था लोगो का प्लेसमेंट हो रहा था पर मेरा और मेरे दोस्त मनीष का कुछ नही हो पा रहा था क्योकि भगवान की कृपा से हम दोनो हिंदी मीडियम और सेकेंड डिवीजन वाले थे। उसी समय हमे एक आशा की किरण दिखी हमे जयपुर से एचसीएल कंपनी के लिए इंटरव्यू काल आया, वैसे तो हम दोनो तब तक लखनऊ से कही बाहर गये नही थे, और यहा बात तो दूसरे राज्य मे जाने की थी। पर इसी आस मे कि हो सकता है कही नौकरी मिल जाए हम दोनो ने फैसला किया जाऐंगे। किसी तरह घर वालो को मनाया और लखनऊ से पकड ली मरूधर एक्सप्रेस।
तब हमारे पास उतने पैसे नही थे तो जनरल का टिकट लिया और चढ गए ट्रेन मे, किसी तरह एक जगह कोने मे बैठने की जगह मिली।
फिर क्या उसमे 2 आदमी मिले जो कि मनीष के गाॅव से तो उन लोगो से बात करते करते मनीष ने हम दोनो के लेटने की भी व्यवस्था कर ली। किसी तरह रात का सफर कटा सुबह सुबह ट्रेन आगरा मे कही रूकी वहा से गुम्बद जैसा दिख रहा था लोग चाय पी रहे थे तभी मनीष ने कहा लगता है ताजमहल है, हालाॅकी वह ताजमहल नही था पर हमने कौन सा पहले देखा था, पर मजे की बात तो यह थी की उसमे से पता नही कितनो ने मान भी लिया हा वह ताजमहल ही है। सब फोटो खीचने लगे तब हमारे पास भी कैमरे वाला चायनीज फोन था हमने भी खीची। फिर ट्रेन चली और दोपहर मे हम दोनो जयपुर उतर गये। जब हम स्टेशन पर उतरे उस वक्त होटल दिलाने वालो की लाईन लगी थी, पर उनके द्वारा बताए जा रही कीमत हमारे लिए बहुत ज्यादा थी। पर हम दोनो भी लखनऊ से पूछताछ कर के निकले थे और हमे हमारी मंजिल पता थी " पंचायती धर्मशाला" वहा 80 रू मे कमरा मिलता था। अब का रेट नही पता।
वहा कमरा लिया और सोचा थोडा फ्रेस होकर घूमने चलते है। फ्रेस होने के बाद हम दोनो ने रेलवे स्टेशन के पास ही एक ढाबे पर खाना खाया और फिर एक रिक्शा पकड कर हवा महल और सिटी पैलेस घूमने निकल गए। हवा महल और सिटी पैलेस की नक्कासी तो जग जाहीर है बताने की जरूरत नही , घूमने के बाद हम दोनो फिर कमरे पर वापस आ गए, शाम का वक्त बस घर वालो को कहा कहा घूमा यह बताने मे चला गया,फिर रात मे हम ढाबे पर खाना खाकर पास के ही माॅल मे घूमने चले गए और वहा से वापस आकर सो गए।
अगली सुबह परीक्षा की सुबह थी , "इंटरव्यू डे" , अब हम दोनो सुबह जल्दी उठकर तैयार होकर सिटी बस पकड कर इंटरव्यू वाली जगह पर पहुचे, और वहा पहुच के पता चला कि यह तो फ्राड है, हम दोनो थोडा गमगीन हो गए पर फिर सोचा कि अब घर वालो को क्या बोलेंगे तो मैने कहा सच बोल देते है कम से कम टेंशन तो नही रहेगी और ना ही झूठ बोलना पडेगा। मैने अपने पापा को फोन किया, और सच सच बता दिया ,मुझे तो लगा था वो परेशान होंगे पर उन्होने बोला पैसे है तो मैने कहा हा, फिर पापा ने बोला तब उतनी दूर तक गये हो तो जयपुर घूम लो। हम दोनो की खुशी का ठीकाना नही रहा।
फिर क्या निकल दिए आमेर किला की तरफ सिटी बस पकड कर हमने आमेर किला घूमा फिर नाहरगढ किला घूमा और वापस बस स्टेशन आ गए लखनऊ वापस जाने के लिए। वही बस स्टेशन पर खाना खाकर गलत आगरा की बस मे बैठ कर सो गए आधे रास्ते पर पता चला हम आगरा जा रहे। फिर क्या रात 3बजे हम लोग आगरा उतरे , अब इतनी रात मे जाते कहा वहा से लखनऊ के लिए कोई बस नही दिख रही थी तो फिर हम लोग वही एक चाय की दुकान पर सुबह तक चाय पीते रहे। जब सुबह हो गयी तो सोचा ताजमहल भी देख ही लेते है, फिर क्या सवारी पहुच गयी ताजमहल, थोडी देर ताजमहल घूमने के बाद हम वहा से निकलकर आगरा का पेठा खरीदकर कानपुर की बस मे चढ गए ,कानपुर पहुचते हमे शाम हो गयी थी तो हम लोगो ने सोचा जल्दी से लखनऊ की बस पकडे पर तभी पता चला की लोकल ट्रेन पकड लो फ्री मे पहुच जाओगे , फिर क्या लग गयी दौड पकड ली लोकल किसी तरह धक्के खाते लखनऊ पहुच कर हमारी यात्रा समाप्त हुई।
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