हिमाचल में रहने वाले लोग अपनी स्थानीय भाषा के साथ-साथ थोड़ी-बहुत हिब्रू समझते हैं, जैसे शलोम (नमस्ते), स्टिचा (क्षमा करें) और श्नीतज़ल (बिना हड्डी का माँस) | यहाँ के लोग बिना किसी भेदभाव के, यहाँ आए जवान इज़राइलियों को अपने घर में पनाह भी देते हैं और गरमा-गरम खाना भी परोसते हैं।
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ऐसी दोस्ती सिर्फ प्यार ही नहीं, बल्कि आपसी फायदे पर भी टिकी है। पहाड़ों को अपने घर बनााने की एवज में ये विदेशी स्थानिय लोगों की जेब डॉलरों से भर देते हैं।
इजरायल की सबसे बड़ी ट्रैवल एजेंसी, इजरायल स्टूडेंट ट्रैवल एसोसिएशन के हिसाब से 30,000 इज़राइली हर साल एशिया और दक्षिण अमेरिका घूमने जाते हैं | ये सैलानी ज्यादातर 20 से 24 साल के जवान लोग हैं जिन्होंने इजरायली रक्षा बलों में अनिवार्य सैन्य सेवा पूरी कर ली है।
इन जवान पुरुषों और महिलाओं के दुनिया फ़तह करने के जज़्बे को मैं हमेशा से सराहता रहा हूँ | हाल ही में मेरी हिमाचल यात्रा के दौरान मैं इनके अपना घर छोड़ कर कहीं और दुनिया घूमने के कारणों से वाकिफ़ हुआ हूँ | अंदाज़ा लगाने से अच्छा है कि आप इन कारणों को पढ़ लें :
परंपरा बन गई है
तीन साल सेना में बूट ठोकने से कोई भी ऊब जाएगा | जेरूसलम के हिब्रू विश्वविद्यालय के एक छात्र डैनियल बार्नेया ने बताया कि एक बार जब वे सेना में सेवा दे रहे थे तो उनके सामने आई एक अजीब दुविधा ने उनके पसीने छुड़ा दिए " क़ानून तोड़ने पर मैंने एक पैलेस्तिनी आदमी को हिरासत में लिया ही था कि तभी आस-पास की इमारतों के लोगों ने मेरी टुकड़ी पर पत्थर बरसाने शुरू कर दिए | स्थिति काफ़ी हद तक हाथ से निकल गयी और मुझे गालियों और गोलियों में से एक चुनना पड़ा|
घूमने फिरने से सैन्य जीवन के बाद नागरिक जीवन में फिर से ढलना काफ़ी आसान हो जाता है | इससे जवान लोगों को आज़ाद महसूस होता है और वो आराम कर सकते हैं | डैनियल ने भारत, नेपाल और कज़ाकस्तान में एक साल तक ट्रैकिंग करने के बाद अपने देश लौटकर आगे की पढ़ाई पूरी की |
मुझे ये सुनकर काफ़ी हैरानी हुई कि काफ़ी इज़राइली घूमने को लेकर जुनूनी ना होते हुए भी घूमते हैं | बोवाज़, मेरा एक दोस्त जिसने मेरे साथ धर्मशाला के पास त्रियुंड की चढ़ाई की थी, कहता है "आज के समय में घूमना काफ़ी आम बात हो गयी है | चाहे किसी को पसंद हो या ना हो, मगर सैन्य सेवा देने के बाद , किसी परंपरा की तरह हर कोई घूमने निकल जाता है |
मज़ेदार ज़िंदगी
ये लोग भारत में आते ही ताजमहल देखने नहीं भागते हैं | इन्हें हिमाचल के छोटे गाँव, गोवा के आस-पास तटवर्ती गाँव और दक्षिण भारत के शांत इलाक़ों में रहना पसंद है | ये लोग इन गाँवों को अपना लेते हैं | अगर आपको कहीं एक इज़राइली दिखा है तो आपको वहाँ काफ़ी इज़राइली मिलेंगे |
भारत में आराम करने आते इन लोगों को हिमाचल बहुत पसंद है, खासकर पार्वती वैली | शांत माहौल में नशे का सामान आसानी से मिल जाता है और रेव पार्टियाँ भी होती हैं, जिसके चलते काफ़ी विदेशी पहाड़ों में आते हैं | कुछ करना हो या बस आराम फरमाना हो इसकी पूरी आज़ादी इन्हीं के पास होती है |
"हममें से कई लोग दोपहर में उठते हैं, भरपेट नाश्ता करने के बाद नेट चला लेते हैं और इसी में आधा दिन निकल जाता है | इसके बाद फिर से खाने का समय हो जाता है | " आइला रेशे, एक अमेरिकी यहूदी कलाकार बताती हैं |
कसोल के बाजार के छोर पर इज़राइली समुदाय के लिए एक शबत (प्रार्थना स्थल) भी है। यहाँ सभी समुदायों के लोग आ सकते हैं और इसकी देखभाल एक पुजारी करता है | इन्होंने इस जगह को अपने घर की तरह सजाया है और आसपास के माहौल में काफ़ी सहज महसूस करते हैं।
सस्ता है
पहाड़ों में खर्चा कम होता है और मनी एक्सचेंज रेट को देखें तो पास पड़ा पैसा काफी होता है | दिन का औसत खर्चा लगभग 25 डॉलर आता है जो लगभग 1250 रुपये है | इसमें रहना शामिल है | इसलिए इज़राइलियों को 6 महीने, एक साल के लिए घूमने में कोई परेशानी नहीं होती और कई लोग तो यहाँ ज़िंदगी भर के लिए बस जाते हैं |
पड़ोसियों से दुश्मनी
उत्तर प्रदेश का एक तिहाई भूभाग जितना इज़राइल, काफ़ी छोटा देश है और आस-पास के देश इसके दुश्मन हैं | इसलिए ये लोग सुरक्षित रूप से घूमने के लिए पूर्व की ओर रुख़ करते हैं | भारत में इन्हें काफ़ी सुरक्षित महसूस होता है क्योंकि यहाँ यहूदियों के साथ भेदभाव नहीं किया जाता | योग और आध्यात्म की ओर झुकाव के चलते भारत इन्हें और भी ज़्यादा रास आता है |
ये हैं इसराइलियों के भारत आने के कुछ कारण | इन्हें यहाँ इतना मज़ा आता है कि ये यहीं बस जाते हैं | इनमें से कुछ रास्ता भटक कर ड्रग्स के शिकंजे में फँस जाते हैं | कई इज़राइलियों से मेरी जान पहचान हुई और इनमें से कुछ तो मेरे दोस्त भी बन गए हैं | एक चीज़ तो है: चाहे आप इन्हें पसंद करे या नापसंद, मगर इन्हें अनदेखा करना मुश्किल है |
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