यहाँ गिरी थी देवी सती की कोहनी, आज है तांत्रिक परम्परा की सिद्धपीठ

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उज्जियनी के प्रमुख मंदिरों में हरसिद्धि मंदिर की गणना होती है। महालक्ष्मी और महासरस्वती की मूर्तियों के मध्य में अन्नपूर्णा की मूर्ति गहरे सिंदूरी रंग में प्रतिष्ठापित है। इस मंदिर में श्रीयन्त्र भी प्रतिष्ठित है। एक परम्परा के अनुसार वास्तव में वही हरसिद्धि हैं।

शिव पुराण की कथा के अनुसार, दक्ष प्रजापति के यज्ञ में सती को यज्ञ कुण्ड से उठाकर शिव ले जा रहे थे, तब सती की कोहनी इस स्थान पर गिरी थी। तान्त्रिक परम्परा में इस स्थान को सिद्धपीठ माना गया है। स्कन्द पुराण के अनुसार चण्ड-प्रचण्ड नामक दैत्यों का संहार करने के कारण देवी का नाम हरसिद्धि प्रसिद्ध हुआ। लोक परम्परा के अनुसार हरसिद्धि देवी सम्राट विक्रमादित्य की आराध्या देवी हैं।

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तेरहवीं शताब्दी के ग्रंथों में हरसिद्धि मंदिर का उल्लेख मिलता है, परंतु वर्तमान मंदिर मराठाकालीन है।

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मंदिर का पुनर्निर्माण मराठाकाल में हुआ और प्रांगण में दोनों दीप स्तम्भ विशिष्ट मराठा कृति के हैं। मंदिर के प्रांगण में एक प्राचीन बावड़ी और एक छोटा-सा मंदिर है जिसमें भगवती महामाया की प्रतिमा है। यहां वर्तमान बावड़ी के एक द्वार स्तम्भ पर संवत 1447 अंकित है। हरसिद्धि मंदिर परिसर में और अनेक देवी-देवताओं के मंदिर व स्थान हैं। चौरासी महादेव में से कर्कोटेश्वर महादेव का मंदिर भी प्रांगण में स्थित है। दोनों नवरात्रों में यहां विशेष पूजन और उत्सव होता है।

दीपस्तम्भ

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