कहानियाँ लिखना सबके बस की बात नहीं है। उसके लिए ख़ूब पढ़ना होता है, दुनिया को उस नज़रिये से देखना होता है जैसा किसी दूसरे ने नहीं देखा। मन से आज़ाद आदमी ही लिख सकता है, बेफ़िकरों सा घूम सकता है, कहीं भी कभी भी। कई बार वो कहानियाँ हमारे ही सामने हकीक़त बनकर सामने आ जाती हैं। पूर्वोत्तर के ये रहस्य जानकर आपको भी कुछ ऐसा ही लगेगा। तो अगली बार जब आप भारत के पूर्वोत्तर के सुंदर नज़ारे देखने निकलें तो इन रहस्यो पर नज़र मारना ना भूलें।
1. बाबा हरभजन सिंह- जिनकी आत्मा बॉर्डर की रक्षा करती है
सिक्किम के पूर्वी छोर पर एक जवान हुआ करते थे, नाम था उनका हरभजन सिंह। सरकार ने उन्हें महावीर चक्र से भी नवाज़ा था। नाथू ला पास पर देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए हरभजन सिंह के सम्मान में एक मंदिर का निर्माण कराया गया। साथी जवान उन्हें 'नाथू ला का हीरो' बोलते थे।

जवान आज भी मानते हैं कि बाबा हरभजन सिंह की आत्मा उनको आने वाले ख़तरे के बारे में तीन दिन पहले ही बता देती है। यहाँ तक की चीन और भारत की नाथू ला में होने वाली मीटिंग में एक कुर्सी बाबा के नाम की छोड़ी जाती है। हर साल 11 सितम्बर को उनका सामान नज़दीकी रेलवे स्टेशन न्यू जलपाईगुड़ी ले जाया जाता है। ट्रेन कूका नाम के गाँव पर सामान उतारती है, फिर सामान कपूरथला ज़िले में उनके घर ले जाया जाता है।
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2. यहाँ का समाज महिलाप्रधान है
पूरी दुनिया पितृ प्रधान की ज़द में है और महिलाओं का वर्चस्व गायब है। बस कुछ गिनी चुनी जगहें हैं जिनका नाम महिला प्रधान होने से प्रसिद्ध हो गया है। उनमें से एक नाम ख़ासी प्रजाति का भी है, जहाँ महिलाएँ घर के बाहर ज़रूरती चीज़ें कमाती हैं। पुरुष घर पर रहकर बच्चे सँभालते हैं। लड़की पैदा होती है तो जश्न मनाया जाता है, वहीं लड़का होने पर ईश्वर का उपहार समझ सच्चे दिल से स्वीकार किया जाता है।
3. बिना दुकानदार की दुकान

अगर हमारे यहाँ दुकानदार ना हो तो एक दिन में पूरा राशन ख़त्म हो जाए। लोग चुरा चुरा कर अपने घर भर लें। लेकिन मिज़ोरम की राजधानी आइज़ॉल से 65 कि.मी. दूर नगह लउ दवर नाम के इस गाँव में लोग दुकान में सामान छोड़ कर घर चले जाते हैं। बस रख जाते हैं तो एक बोर्ड, जिस पर हर चीज़ का दाम लिखा होता है। लोग दुकान पर आकर चीज़ें उठाते हैं और उसके अनुसार पैसा एक डिब्बे में डालकर चले जाते हैं। भरोसा ही तो कहते हैं इसको। नहीं तो इसके अलावा क्या है ऐसा जो सारा सामान ऐसे ही खुला छोड़कर घर चला जाए।
4. इस मिर्च को खाने का रिस्क आख़िरी ग़लती हो सकती है

भूत जोलोकिया बोलते हैं इसे, वहीं कुछ इसे राजा मिर्च या किंग चिली के नाम से भी जानते हैं। नागालैंड और असम में मिलने वाली इस मिर्च को स्कोविल स्केल यानी तीखेपन के स्केल पर 1,001,300 नंबर मिलते हैं यानी यही सबसे तीखी मिर्च है। कुछ लोगों को तो यह मिर्च खाने के बाद अस्पताल तक में भर्ती कराना पड़ा। अगर आपने भी ट्राई करना है तो डॉक्टर से पहले ही अपॉइंटमेंट ले लेना, नहीं तो बाद में आप भी पूछोगे, कि कोई मरने की हालत में रहा तो फ़ॉर्म भरना ज़रूरी है क्या।
5. इस घर की सुरंगों से आप कभी नहीं निकल पाओगे
रोंगपुर, जिसे अभी सिब्सागर कहते हैं, यहाँ पर असम के अहोम राजाओं ने तलातल घर बनवाया था । इसका निर्माण एक आर्मी बेस कैंप के तौर पर कराया गया था। यहाँ पर दो छिपी हुई सुरंगें है और ज़मीन से नीचे तीन फ़्लोर हैं। इसके ये तीन फ़्लोर ही लड़ाई में बाहर निकलने में काम आते थे। अब इस घर की छिपी हुई सुरंगें आम जनता के लिए बन्द कर दी गई हैं। कहते हैं कि कुछ लोग जो इन सुरंगों में चले गए थे, आज तक बाहर ही नहीं निकल पाए। वो अन्दर ही खो गए। ऐसी गुफ़ाएँ, जो महज़ क़िस्से कहानियों में सुनी थीं, आज हकीक़त बनके सामने आ गई हैं।
6. यह गाँव एशिया का सबसे साफ़ गाँव है

मावल्यान्नॉंग, एशिया का सबसे साफ़ गाँव शिलॉन्ग से 100 कि.मी. दूर पड़ता है। उससे बड़ा कमाल तो ये है कि पूरे गाँव में महज़ 95 परिवार हैं और साक्षरता 100 प्रतिशत है। यह गाँव अपने हुनर से पूरे भारत के साथ पूरी दुनिया को टक्कर देता है । ऐसी जगहें हैं, जो सुदूर होने के बाद भी अपनी मेहनत के कारण हमारे लिए गर्व का प्रतीक हैं।
7. इम्फ़ाल का महिला बाज़ार

मणिपुर के इम्फ़ाल में एक बाज़ार है। सौ साल पहले किसी ने एक बाज़ार बनाया जिसमें सिर्फ़ महिलाएँ ही सामान बेच सकती थीं और धीरे धीरे करके ये जगह महिला बाज़ार के नाम से प्रसिद्ध हो गई। इस समय क़रीब 3500 महिलाएँ हर दिन यहाँ सामान बेचती हैं। इम्फ़ाल का हथकरघा उद्योग भी यहीं से फलता फूलता है। दुनिया के इस दौर में महिला बाज़ार होना अपने आप में एक अजूबा ही है।
8. स्थानीय जनजातियों की स्थानीय शराब
पूर्वोत्तर की कुछ जातियों को उनकी शराब के आधार पर भी जाना जाता है क्योंकि हर स्थानीय जाति की अपनी निजी शराब की पहचान है। जितनी जातियाँ हैं, उतनी ही प्रकार की शराब। बोडो जाति की शराब ज़ोउ, असम की ज़ाज़, मेघालय की कियाद प्रजाति और कई सारी प्रजातियाँ। सब जगह लोगों को उनके नाम से पहचानते हैं, शायद ये पहली जगह होगी, जिसे उसकी शराब से पहचान मिलती हो।
9. जोनबील मेला

15वीं सदी में शुरू हुआ जोनबील मेला अपनी विरासत के पाँच सौ साल पूरे कर चुका है। उस समय के गोभा और अहोम राजाओं ने अपने राजनीतिक हालात जनता तक पहुँचाने के लिए इस मेले का आयोजन शुरू किया था। आज भी विरासत कायम है और अब इसका मुख्य उद्देश्य व्यापार का हो गया है।
10. दुश्मन का सर काट कर सजाने वाली प्रजाति

नागालैंड में एक कान्याक प्रजाति हुआ करती थी जो युद्ध में जिस दुश्मन को ख़त्म कर देती थी, उसका सिर काट लेती थी और उस सिर को बतौर ट्रॉफी अपने पास रखती थी। जिसके पास जितने सिर होते थे, उसके चेहरे पर उतने ही टैटू बनाए जाते थे। कहा जाता है कि 1940 के दशक में ये प्रजाति ख़त्म हो गई, लेकिन उनके वंशज आज भी ज़िन्दा हैं।
11. उनाकोटि, त्रिपुरा की शिव विरासत
यहाँ भगवान शिव को बड़ी-बड़ी चट्टानों पर उकेरा गया है। आठवीं नवीं शताब्दी से ही यहाँ पर इन चट्टानों के होने के सबूत मिलते हैं। भगवान शिव की इतनी बड़ी प्रतिमा होने के बाद भी इस जगह को इतना नाम नहीं मिला जितने के यह योग्य थी।
और भी कई रहस्य समेटे है पूर्वोत्तर। कई कहानियाँ तो इतिहास में दफ़्न हो गईं, कुछ धीरे-धीरे समाज में आ रही हैं। अगर आपके पास भी पूर्वोत्तर को लेकर कुछ ख़ास है तो हमारे साथ कमेंट बॉक्स में साझा करें।