कहते हैं कि आप बनारस में कभी खो ही नहीं सकते क्योंकि यहाँ की छोटी- छोटी गलियों से गुज़रते हैं हुए आप घाटों तक पहुँचते हैं और इन्ही घाटों पर आप खुद को ढँढ लेते हैं।
वाराणसी का एक छोटा परिचय:
भीड़-भाड़ वाली जगहें , अलग-अलग तरह की दुकानें , सांस्कृतिक रूप में समृद्ध और रंगो के असंख्य खेलों को दिखाती यहाँ की संस्कृति कुछ ऐसी है कि आप वाराणसी को कभी नहीं भुला पाएँगे। और आप जिस शहर में यात्रा कर रहे है, वहाँ के असली अनुभवों और पूरे माहौल को देखना और कैप्चर करना चाहते हैं तो आपको वाराणसी के प्यार में पड़ने से कोई नहीं रोक सकता ।
यहाँ वाराणसी में मुफ्त में (लगभग) कुछ आकर्षक चीजों की लिस्ट दी गई है जिनके साथ आप कम बजट में वाराणसी का बेहतरीन अनुभव मिल सकता है-
1. अस्सी घाट से मणिकर्णिका घाट तक पैदल यात्रा के साथ जीवन-चक्र को देखें
यकीन मानिए इन घाटों की पैदल यात्रा पर जाकर आपको व्यक्ति के पूरे जीवन चक्र के बारे में पता लग जाएगा। ये हमारे देश के एक नए पहलू के बारे में बहुत कुछ जानने का मौका है। स्थानीय लोगों का मानना है कि जिनका यहाँ अंतिम संस्कार किया जाता है उन्हें मोक्ष मिलता है।
कैसे करें:
चाहे वो विदेशी हों, अघोरी हों या पूजा करने वाले श्रद्धालु हों, ये घाट हमेशा लोगों से भरे रहते हैं। आप उस घाट से शुरू करते हैं जहाँ एक नवजात बच्चे को अपना पहला स्नान करवाया जा रहा होता है और जब आप अपनी वॉक खत्म करते हैं तो आप उस घाट तक पहुँचते है जहाँ किसे के अंतिम संस्कार किया जा रहा होता है, इसी तरह ही हमारा जीवन चक्र भी पूरा होता है। आप हरिश्चंद्र घाट के ज़रिये नदी के तट तक भी जा सकते हैं। यह सबसे पुराना घाट है और इसे मणिकर्णिका घाट से भी पवित्र जाता है ।
ऐसे कई गाइडेड टूर हैं जो घाटों के पास आयोजित किए जाते हैं आप उनसे यहाँ की हर जगह से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातों को जान सकते हैं। अगर आप चाहें तो आप डोम राजा जो यहाँ 4000 साल से चलते आ रहे अंतिम संस्कार प्रथा के प्रभारी हैं से भी बात कर सकते है और यहाँ के रीति-रिवाज़ों के बारे में जान सकते है !
कहाँ: होटल गंगा व्यू के बाहर, अस्सी घाट से चलना शुरू करें।
यह पूरी तरह से फ्री है ।
2. जानिए कैसे बनाई जाती है बनारसी सिल्क साड़ीयाँ
सदियों से वाराणसी रेशम व्यापार का केंद्र रहा है। और बनारसी साड़ी तो हर भारतीय महिला अपनी शादी मे पहनना पसंद करती है । बनारसी साड़ी को गोल्डन या सिल्वर ज़री से बनाया जाता है जिस पर शानदार कढ़ाई होती है।
कैसे करें अनुभव:
आप यहाँ की लोकल वर्कशॉप्स मे साड़ी बनते हुए देख सकते है । बनारसी सिल्क की साड़ियों को आप दोनों तरह की मशीनों, हैंडलूम और पावर लूम मशीनों पर देख सकते हैं।
कहाँ: मुबारकपुर और लल्लापुर दो ऐसी जगहें हैं जो साड़ी बनाने के लिए मशीनों का इस्तेमाल करती हैं।
अगर आपको हाथ से बुनी साड़ी बनते देखने का अनुभव लेना है तो आपको बुनकरों के गाँव सराय मोहना जाना होगा जो बनारस शहर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर है।
खर्च- ये पूरी तरह से फ्री है ।
3. यहाँ के स्ट्रीट-फूड का मज़ा उठाएँ
कचौरी सब्जी और समोसे
कचौड़ी के दो अलग-अलग प्रकार हैं- बड़ी और छोटी कचौरी। बड़ी कचौरी का मसाला दाल की पीठी नामक मसलों के मिश्रण से बनता है और छोटी कचौरी मसालेदार आलू के मिश्रण से बनायी जाती है।
स्थानीय लोग कचौरी को सब्जी व गर्म देसी-घी की जलेबी के साथ खाना पसंद करते है ।
कहाँ: कचौरी गली, राम भंडार, ठठेरी बाजार लक्सा रोड, लंका मे चाची की दुकान। दशाश्वमेध घाट के पास समोसा गली में कई हैं छोटी-छोटी दुकाने भी जो ताजा और क्रिसपी समोसा बेचती है ।
समय: सुबह 7 बजे - शाम 7 बजे
लागत: चाची की दुकान पर सब्जी-कचौरी ₹20 में और बाकी की दुकानों पर कचोरी ₹25-35 में समोसे ₹5 मे मिलते है।
चाट
चाट के दीवानों के लिए तो वाराणसी एक स्वर्ग है, यहाँ उस तरह की चाट नहीं मिलती है जिसे हम आम-तौर पर खाया करते हैं । यकीन मानिए आप यहाँ के अलग-अलग मसालों और फ्लेवर्स से बने मीठे गोलगप्पे, दही चटनी गोल गप्पे, दही पापड़ी चाट, आलू टिक्की, पालक चाट और टमाटर चाट का स्वाद लंबे समय तक याद रखेंगे।
कहां: दीना चाट भंडार, गोल गंज और काशी चाट भंडार
समय: दीना चाट भंडार दोपहर 2 बजे और काशी 3 चाट भंडार बजे खुलता है, दोनों 10:30 बजे तक अपनी दुकान खोलते है । यह दुकाने यहाँ इतनी फेमस है की आप यहाँ ज़्यादातर भीड़ मिलेगी ।
लागत: दो लोगों के लिए ₹80।
लिट्टी चोखा या बाटी चोखा
कैसे: भरवा गेहूँ के आटे की गेंदों को भुने हुए चना दाल और मसालों के साथ भरा जाता है। इन भरवा गेंदों को लिट्टी कहते हैं और लकड़ी के कोयले पर भूना जाता है। लिट्टी मे देसी घी लगाया जाता है और चोखा जो की उबले हुए आलू, टमाटर और बैंगन के मसालेदार मिश्रण से बनता है, के साथ परोसा जाता है ।
कहाँ: पूरन दास रोड और सिरोही के पास भी।
समय: शाम 5 बजे से
लागत: दो लोगों के लिए ₹300
मलाइयो / निमिष और लस्सी
क्या: माखन मलाइओ या निमिष वाराणसी में सर्दियों के मौसम की एक लोकप्रिय मिठाई है। फारसी व्यंजनों से प्रभावित, मलाईयो को मलाईदार बनाने के लिए धीरे-धीरे दूध को मथ कर तैयार किया जाता है। इसे पुरवा या कुल्हड़ में खाने के लिए दिया जाता है। ये मलाईदार व्यंजन सचमुच आपके मुँह में जाते ही पिघल जाएगा और आपको आनंद से भर देगा।
कहाँ: 3 पहलवान लस्सी भंडार जिनकी तीन दुकानें बिलकुल पास-पास ही है और एक गुरु रविदास गेट के सामने है। वैसे आपको वाराणसी के लगभग हर नुक्कड़ और गली में लस्सी की दुकानें और मलाइयो बेचने वाले मिल सकते हैं।
समय: सुबह 7:00 से - 11:00 बजे
लागत: ₹20- ₹50
भांग भरी ठंडाई / लस्सी
निश्चित रूप से, अगर आप इसे ट्राय करना चाहे तो आप वाराणसी मे भांग मिली हुई लस्सी या ठंडाई का मज़ा उठा सकते है ।
क्या: यहाँ पर भांग लस्सी के साथ-साथ भांग ठंडाई भी परोसते हैं।
कहाँ: बाबा ठंडाई या बादल ठंडाई दोनों गौडोलिया चौक में हैं। आपको बनिया बाज़ार या चर्च के पास, दशाश्वमेध घाट के पास भी बहुत सारी दुकानें मिलेंगी।
लागत: एक गिलास के लिए ₹40- ₹50।
लेकिन ये भांग वाली लस्सी अपने रिस्क पर ही पिएँ। जो लोग पहली बार इसे खा रहे है तो उन्हे भांग की बहुत कम मात्र का ही इस्तेमाल करें।
5. अघोरियों के पीछे की कहानियाँ खोजें
कंकालों और खोपड़ियों से सुसज्जित, बाबा कीनाराम स्थल या बाबा कीनाराम स्थल-क्रीम कुंड एक विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक केंद्र और दुनिया भर में अघोरी संप्रदाय का मुख्यालय या तीर्थ है। मान जाता है कि ब्रह्मांड के निर्माण के बाद से ही ये धरती की सबसे पुरानी पवित्र जगहों में से एक है।
क्या: भक्तों, अनुसंधान विद्वानों, डॉक्यूमेंटरी निर्माताओं और आध्यात्मिक शिक्षकों के बीच ये वाराणसी के सबसे ज्यादा देखे जाने वाली जगहों में से एक है। इन लोगों के बारे में बहुत सारे मिथक हैं तो आप भारत के रहस्यवादी सुपर-शक्तिशाली अघोरी बाबाओं असली कहानी का भी पता लगा सकता है । ।
कहाँ: बाबा कीनाराम स्थल
खर्च- यह पूरी तरह से फ्री है ।
6. नौका विहार: गंगा पर नाव की सवारी करें।
चप्पू की आवाज़ और घंटियों की गड़गड़ाहट और उसके साथ आसपास कपूर की महक, जब आप यहाँ नाव की सवारी करने जाएँगे तो आपको ऐसे ही कई शानदार अनुभव होंगे ।
क्या: आप दिन के किसी भी समय गंगा के किनारे नाव की सवारी करना चुन सकते हैं, हालांकि सूर्योदय और सूर्यास्त के समय आपको सबसे शानदार नज़ारे देखने को मिलेंगे। आप नाव को बीच में रोककर वहाँ से घाट व उन पर हो रही आरती के शानदार नज़ारे देख सकते है ।
इसके अलावा, नाव चलाने वाले लोग आकर्षक लोककथाओं और पौराणिक कहानियों को बहुत चाव से सुनाते है ।
कहाँ: नाविक आपको राजेंद्र घाट या दशाश्वमेघ घाट से हरिश्चंद्र घाट और वापस जाने के लिए पर ले जाएँगे।
लागत: एक सवारी के लिए लगभग ₹200। (ये लोगों की संख्या पर भी निर्भर करता है)
7. दशाश्वमेघ घाट पर रात्रि आरती
वाराणसी में दशाश्वमेघ घाट पर गंगा आरती केवल देखने के लिए एक चीज़ ही नहीं है बल्कि यह एक असली एहसास है।
क्या: जैसे ही सूर्य नदी में अस्त होता है वैसे ही हज़ारों तैरते दिये अपनी चमक के साथ नदी में मानो जादू बिखेर देते हैं । हवा में पवित्र मंत्रों की आवाज़ इतनी तेज़ गूँजती है कि वो सीधे आपके दिल मे उतर जाती है । यह आरती गंगा नदी को धन्यवाद देने और उनकी पूजा करने के लिए की जाती है।
कहाँ: आरती की अवधि 45 मिनट है।
समय : आरती गर्मियों मे 7-7: 45 बजे, और सर्दियों मे 6-6: 45 बजे ठीक सूर्यास्त के समय शुरू होती है।
गंगा नदी पर वाराणसी में दशाश्वमेध घाट मुख्य और शानदार घाट है जो विश्वनाथ मंदिर के करीब स्थित है ।
खर्च- गतिविधि पूरी तरह से फ्री है ।
8. सारनाथ में इतिहास और अध्यात्म में गोता लगाएँ
वाराणसी मे पाए गए अवशेषों को देखकर आप निश्चित रूप से प्राचीन समय को याद करेंगे ।
क्या: यहाँ के संग्रहालय में बलुआ पत्थर से बने मौर्य स्तंभ के बहुत ही खास दुर्लभ अवशेष है जिस पर बने शेर व चक्र आज भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है । यहाँ वो पेड़ भी मौजूद है जहाँ बुद्धने मोक्ष प्राप्त किया था और आत्मज्ञान प्राप्त करने के बाद अपने 5 शिष्यों को पहला उपदेश दिया।
कहाँ: वाराणसी से लगभग 10 कि.मी. दूर भारतीय पुरातत्व सर्वे की सबसे पुरानी साइट और संग्रहालय है। खुदाई स्थल के ठीक बगल में स्थित, इस संग्रहालय में पाँच गैलरी और मूर्तियाँ हैं, कलाकृतियाँ तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर 12 वीं शताब्दी ईस्वी तक की हैं। मुख्य हॉल के ठीक सामने शाक्यसिंह गैलरी है।
समय: सुबह 9:00 से शाम 5.00 बजे (शुक्रवार को बंद)
लागत: भारतीय नागरिकों के लिए प्रति व्यक्ति ₹5।
9. 200 साल पुराने म्यूजिक कॉन्सर्ट मे हिस्सा लें
सारंगी, तबला, शहनाई, तानपुरा, सितार, सरोद, संतूर, और बांसुरी वाराणसी की विरासत का एक हिस्सा है, और शहर के प्रत्येक हिस्से में शास्त्रीय संगीत गूँज है। और भले ही वाराणसी की कुछ संगीत परंपराएँ पिछले कुछ वर्षों में थोड़ी फीकी हुई हैं पर आज भी कथक के कथाकार और कबीर पंथी अभी भी संगीतकारों के मोहल्ले में रहते हैं और सदियों पुरानी परंपराओं को जीवित रखे हैं।
कैसे: बनारस घराना शास्त्रीय भारतीय संगीत का एक बहुत ही महत्वपूर्ण भाग है और आपको यहाँ इसके कई संगीतकार मिल जाएँगे । हो सकता है कि आप यहाँ ऐसे ही घूमने के लिए जाएँ और बंद दरवाज़े या छतों से आते हुए भावपूर्ण संगीत मे डूब जाएँ ।
कहाँ: कबीर चौरा (पड़ोस में जहाँ संत कबीर ने प्रचार किया था), साथ ही पास के रामापुरा इलाके में, शानदार संगीतकारों की एक बड़ी संख्या है।
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