यूँ तो पूरा भारत ही श्रद्धालुओं के लिए पूजा का स्थल है लेकिन उत्तराखंड के बद्रीनाथ मंदिर की लोगों के मन में अलग ही आस्था है। मंदिर के कपाट खुलने से पहले ही हर साल लाखों श्रद्धालु अपने भगवान के दर्शन की आस लिए आते हैं।
उत्तराखंड की ठंडी वादियों में ख़ूबसूरती लपेटे बद्रीनाथ यात्रियों के लिए स्वर्ग जैसा है। इसलिए बद्रीनाथ धाम जाने का ख़्याल मन में आए तो ये किस्सा एक ही साँस में पढ़ डालें।
सच मानिए तो बद्रीनाथ में मंदिरों की संख्या इतनी है कि एक हफ़्ता कम पड़े। भोले बाबा के भक्त भी यहाँ बाबा का प्रसाद लिए मस्त मलंग रहते हैंं, लाखों श्रद्धालु भी बाबा का गुणगान करते मिल जाएँगे, नए़ नवेले शादीशुदा जोड़ों का हुजूम दिखेगा और इनके बीच दर्शन करते-करते आप भी बद्री के हो जाएँगे।
बद्रीनाथ धाम से जुड़ी कहानी
जैसा कि आप सब जानते हैं, भगवान की हर लीला और नाम के पीछे कोई विशेष कहानी छिपी हुई होती है, जिसका महत्त्व उसके नाम को और सार्थक करता है। बद्रीनाथ का नाम भी इससे अछूता नहीं है।
भगवान विष्णु को ये स्थान इतना प्यारा था कि वे हर साल तपस्या करने के लिए यहाँ आते रहते थे। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार एक बार भगवान तपस्या करते हुए इतने लीन हो गए कि उनको ठंड का एहसास न हुआ। उनका पूरा शरीर ठंड में जमने लगा। यह देखकर माता लक्ष्मी ने बद्री पेड़ बनकर भगवान विष्णु को ठंड से बचाया। तब से इस मंदिर का नाम बद्रीनाथ मंदिर पड़ गया।
बद्रीनाथ धाम को लेकर और भी कई कहानियाँ हैं। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार पहले यह मंदिर बौद्ध मठ हुआ करता था। गुरुओं के गुरू आद्य शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में यहाँ आकर इसे हिन्दू मंदिर बनाया। उन्होंने ही बद्रीनाथ को चार धाम यात्रा में जोड़ा। यूपीएससी वाला सवाल है याद कर लीजिए।
अपने अंतिम सफ़र पर पाण्डवों की मृत्यु भी इसी बदरीनाथ की चढ़ाई के दौरान ही हुई थी और युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग पहुँचे थे। आगे की कहानी आपको मालूम है।
बद्रीनाथ का इतिहास
यहाँ के इतिहास को लेकर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है कि यह कितना पुराना है। भगवान विष्णु के समय से इसका महत्त्व रहा है। 814 से 820 ईसवीं तक आद्य शंकराचार्य के यहाँ रहने के कारण यह फिर से अस्तित्त्व में आया।
1803 में एक ज़बरदस्त भूकंप आने से इसका बहुत हिस्सा बर्बाद हो गया था, और फिर जयपुर के राजा ने इसका पुनर्निमाण कराया था। कुंभ मेले के कारण बद्रीनाथ का नाम प्रसिद्ध हुआ और यह आम जनमानस में आया।
बद्रीनाथ दर्शन: कहाँ-कहाँ जाएँ
बद्रीनाथ के दर्शन के लिए सैलानी दूर-दूर से आते हैं लेकिन अधिकतर को बाबा बदरीनाथ के अलावा किसी घूमने लायक जगह का पता नहीं होता। इसलिए थोड़ा रीसर्च करके जाना बेहतर रहेगा।
बद्रीनाथ मंदिर- हिन्दू धर्म में सभी श्रद्धालुओं के लिए यह मंदिर सबसे धार्मिक स्थलों में से एक है। आप जब भी उत्तराखंड आएँ, बद्रीनाथ मंदिर के दर्शन ज़रूर करें। चमोली ज़िले में पड़ने वाला बद्रीनाथ मंदिर उत्तराखंड के स्वर्ग से कम नहीं है। आप लोगों की श्रद्धा का अंदाज़ा इस बात से लगा सकते हैं कि बद्रीनाथ यात्रा के पहले ही दिन करीब तीन लाख यात्रियों ने एक साथ इसके दर्शन किए।
नीलकंठ- उत्तराखंड के चमोली इलाक़े में 5,976 मीटर की ऊँचाई पर नीलकंठ के पहाड़ की चढ़ाई निश्चित रूप से आपके लिए नया अनुभव रहेगा। चढ़ती उतरती पहाड़ियों में आपका यह सफ़र और भी यादगार हो जाता है।
चरण पादुका- श्रद्धालुओं के मुख्य आकर्षण का केन्द्र चरण पादुका बद्रीनाथ मंदिर से केवल 2.4 कि.मी. की दूरी पर है। इसमें भगवान विष्णु के चरणों की छवि दिखाई देती है। सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर चरण पादुका के दर्शन करने आते हैं।
माता मूर्ति मंदिर- बद्रीनाथ पर्यटन स्थल की लिस्ट में बद्रीनाथ दर्शन के बाद माता मूर्ति मंदिर का भी नाम आता है। इसके दर्शन जितने पवित्र हैं, उसके आस-पास का नज़ारा एकदम ठेठ पहाड़ी है। माता मूर्ति मन्दिर आपकी मंज़िल से महज़ 3 कि.मी. की ही दूरी पर है। बद्रीनाथ के हर वीडियो में आपने इस जगह को ज़रूर देखा होगा।
भीम पुल- जैसा कि नाम से ही सुनने में आ रहा है, यह पुल आकार में भीम के जैसा ही विशालकाय है। यह पुल तिब्बत की सीमा से सटे माना नामक स्थान पर है। मंदिर से 3 कि.मी. की दूरी पर स्थित यह पुल सैकड़ों श्रद्धालुओं के लिए एक पर्यटन स्थल है।सच मानिए तो बद्रीनाथ में मंदिरों की संख्या इतनी है कि एक हफ़्ता कम पड़े। भोले बाबा के भक्त भी यहाँ बाबा का प्रसाद लिए मस्त मलंग रहते हैंं, लाखों श्रद्धालु भी बाबा का गुणगान करते मिल जाएँगे, नए़ नवेले शादीशुदा जोड़ों का हुजूम दिखेगा और इनके बीच दर्शन करते-करते आप भी बद्री के हो जाएँगे।
बद्रीनाथ दर्शन: जाने का सही समय
आपका पूरा प्लान बर्बाद हो सकता है अगर आपने अपनी टाइमिंग सही नहीं चुनी। बद्रीनाथ दर्शन का सबसे सही समय मई, जून, सितम्बर और अक्टूबर का है। मंदिर के कपाट खुलने की कोई विशेष तिथि तो नहीं है लेकिन अक्षय तृतीया के दो या तीन दिन के भीतर ही कपाट खोले जाते हैं। इसके अलावा दर्शन करने का प्लान बनाया गया तो कठिनाई तो होगी ही, साथ ही आपका सफ़र भी किफ़ायती नहीं रहेगा।
बद्रीनाथ यात्रा: कैसे पहुँचें
हवाई यात्रा: अगर आप फ्लाइट लेना चाहते हैं तो आप जॉली ग्रांट हवाई अड्डे पर आप पहुँच सकते हैं जो बद्रीनाथ से क़रीब 311 कि.मी. दूर होगा।
रेल यात्रा: ट्रेन आपको सबसे नज़दीक हरिद्वार स्टेशन पहुँचा सकती है जो बद्रीनाथ मंज़िल से 318 कि.मी. दूर है। इसलिए आपके लिए सबसे अच्छा तरीका अपनी गाड़ी लेकर चलने का है।
सड़क मार्ग: दिल्ली से निकलें तो नेशनल हाइवे 7 आपको मंज़िल तक पहुँचा देगा।
बद्रीनाथ की यात्रा: कहाँ ठहरें
बद्रीनाथ की पहाड़ियों के बीच श्रद्धालुओं का जत्था रोज़गार का बहुत बड़ा स्थल भी है। कम दामों में होटल भी आपके लिए मौजूद हैं। इसके साथ अगर आप जेब थोड़ी ढीली करना चाहते हैं, तो उसके अनुसार होटल आपकी ख़ातिरदारी के लिए तैयार हैं। ₹1000 से शुरू होकर ₹2000 के अन्दर आपको बहुत अच्छे होटल मिल जाएँगे जिससे आपकी जेब पर भी बहुत ज़्यादा भार नहीं पड़ेगा।
होटलों में जागीरदार गेस्ट हाउस, ब्लू बेल्स कॉटेज, नर नारायण गेस्ट हाउस, होटल चरण पादुका के साथ सैकड़ों होटल आप अपनी सुविधा व जगह की नज़दीकी के हिसाब से देख सकते हैं।
बद्रीनाथ की यात्रा: कहाँ खाएँ
बहुत ज़्यादा प्रसिद्ध जगहों पर खाने पीने में सेहत का ख़्याल नहीं रखा जाता। इसलिए आपको खाने की दुकानें तो सैकड़ों मिल जाएँगी, लेकिन खाने की क्वालिटी की कोई गैरंटी नहीं है। श्रद्धालु वसुन्धरा, सरदेश्वरी, साकेत रेस्तराँ, चन्द्रलोक, उपवन रेस्तराँ और ब्रह्म कमल नामक रेस्तराँ पर खाना खाना पसन्द करते हैं। यहाँ खाना और जगहों की तुलना में बेहतर है और आपकी सेहत के लिये भी ठीक है।
तो अब आपके पास बद्रीनाथ धाम जाने की सारी जानकारी मौजूद है, यानी अब आपको बस पैकिंग करनी शुरू करनी है! तो कब जा रहे हैं आप?