उत्तर भारत में रहने वाले लोगों को साउथ की सॉलिड फिल्मों के साथ ही दक्षिण भारत में मौजूद अनगिनत भव्य हिन्दू मंदिर भी बहुत ज्यादा पसंद आते हैं। देश के यह दोनों हिस्से भाषाई आधार पर भले एक दूसरे से एकदम भिन्न हो, लेकिन इन दोनों हिस्सों में रहने वाले लोगों का भगवान तो एक ही है। इसलिए, जब मोक्ष प्राप्ति के लिए उत्तर भारत के लोगों को 4 धाम की यात्रा करनी होती है, तब वो रामेश्वरम तक जाते हैं और इस काम को पूरा करने के लिए दक्षिण भारत के लोग बद्रीनाथ धाम तक की यात्रा करते हैं। यानी कुल मिलाकर कहानी यह है कि सुदूर उत्तर और दक्षिण के बीच दूरी चाहे कितनी ही हो लेकिन दोनों ही जगह के लोग सनातन धर्म की अटूट डोर से बंधे हुए हैं।
इसी नेक नीयत के साथ आज हम अपने उत्तर भारत के साथियों को दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य के एक बेहद पवित्र टापू पर लेकर जाने वाले हैं। श्री रंगम नाम का यह टापू बेहद ही पावन माना जाता है, इतना कि इस भूमि का उल्लेख कई जगहों पर बैकुंठ भूमि के रूप में भी किया गया है। और ऐसी पावन भूमि पर ही मौजूद है श्री रंगनाथस्वामी मंदिर। जिसके नाम पर फिलहाल दुनिया में सबसे बड़े क्रियाशील हिन्दू मंदिर होने की मुहर लगी हुई है। करीब 156 एकड़ क्षेत्रफल और 4 किमी की परिधि में फैला श्री रंगनाथस्वामी मंदिर दुनिया का सबसे बड़ा क्रियाशील मंदिर होने का दावा इसलिए कर पाता है क्योंकि कंबोडिया का अंगकोरवाट मंदिर क्रियाशील नहीं है।
श्री रंगनाथस्वामी मंदिर भगवान विष्णु जी को समर्पित है। मंदिर में भगवान विष्णु आपको शेषनाग की शैय्या पर विराजमान मिल जाएंगे। मंदिर के अस्तित्व में आने को लेकर कई तरह की पौराणिक मान्यताएं मौजूद हैं। एक कहानी कहती है कि जब गंगा, जमुना, सरस्वती और कावेरी के बीच 'सबसे श्रेष्ठ कौन है?' यह सवाल उठा, तब भगवान विष्णु ने इसका जवाब गंगा कहकर दिया। क्योंकि गंगा जी के पक्ष में तर्क यह था कि वह भगवान विष्णु के चरणों में वास करती हैं। लेकिन फिर कावेरी ने नाखुश होकर भगवान विष्णु जी को ही खुश करने के लिए कड़ी तपस्या शुरू कर दी। जिससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने कावेरी को यह वरदान दिया कि वह एक ऐसी जगह स्थापित होंगे जहां पर कावेरी नदी उनके गले के हार की तरह बहकर उनकी शोभा बढ़ाएगी।
इसी कहानी को समर्थन और पूरा करने का काम एक दूसरी कहानी करती है। जिसके अनुसार, ब्रह्मा जी ने सबसे पहले विराज नदी के किनारे रंगमथस्वामी मंदिर का निर्माण कराया था। इसके बाद जब भगवान राम लंका पर विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटे, तो उन्होंने विभीषण के आग्रह पर रंगनाथस्वामी को लंका में स्थापित करने की अनुमति दे दी। अयोध्या से लंका लौटते वक्त विभीषण ने कावेरी नदी के किनारे पूजा अर्चना के लिए रंगनाथस्वामी को रख दिया। और फिर पूजा के बाद जब उन्होंने रंगनाथस्वामी को उठाने की कोशिश की तो वह टस से मस नहीं हुए। इसके बाद जैसे विभीषण ने व्याकुल होकर भगवान को याद दिया, तब वहां विष्णु जी प्रगट हुए और उन्होंने कावेरी को दिए गए वरदान की बात बताई। उस वरदान को पूरा करने के लिए उन्होंने विभीषण से वहीं बसने की इच्छा जताई।
अगर आपके लिए रंगनाथस्वामी स्वामी मंदिर जाने के उपर्युक्त धार्मिक कारण काफी नहीं है, तो फिर आपको रंगनाथस्वामी मंदिर का नाम सिर्फ एक बार गूगल पर सर्च भर कर लेना है। यकीन मानिए, इस विशाल मंदिर से जुड़ी तस्वीरों को देखकर आपको यहां तक आने के लिए दूसरे किसी और कारण या फिर मोटिवेशन की जरूरत नहीं पड़ेगी। तस्वीरों के जरिए ही आपको पता चल जाएगा कि सुदूर दक्षिण राज्य तमिलनाडु के मध्य में स्थित तिरुचिरापल्ली शहर के बीच से बहती कावेरी और उसकी सहायक नदी से घिरा एक बेहद खूबसूरत द्वीप है। धरती का बैकुंठ कहे जाने वाले 'श्री रंगम' नामक इसी द्वीप पर दुनिया का सबसे बड़ा संचालित हिन्दू मंदिर अपनी पूरी शानोशौकत के साथ मौजूद है।
156 एकड़ के क्षेत्रफल और 4 किमी की परिधि में फैले रंगनाथस्वामी मंदिर में कुल 21 गोपुरम बने हुए हैं। गोपुरम दरअसल मंदिर के प्रवेशद्वार होते है। इन पर आला दर्जे की कलाकारी की गई होती है। रंगनाथस्वामी मंदिर के मुख्य प्रवेशद्वार को राजा गोपुरम कहा जाता है। इसकी वजह यह है कि यह करीब 236 फीट ऊंचा है। इतना ऊंचा होने के चलते ही इसे पूरे एशिया के सबसे ऊंचे प्रवेशद्वार(मंदिर) का दर्जा हासिल है। एक मिथक तो यह भी है कि राजा गोपुरम के ऊपर से श्रीलंका के तट तक को देखा जा सकता है। साल 1987 में राजा गोपुरम को निर्माण कराया गया। इस पर तमाम देवी देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं। उन्हें ढेर सारे सुंदर रंगों के जरिए और ज्यादा सुंदर व सजीव बनाया गया है। यही कारण है कि कई बार लोगों को मंदिर से कहीं ज्यादा मंदिर के प्रवेशद्वार यानी गोपुरम आकर्षित कर लेते हैं।
द्रविड़ स्थापत्य कला का उत्तम उदाहरण रंगनाथस्वामी मंदिर का पूरा परिसर चारों तरफ से सात दीवारों की परत से घिरा हुआ है। और इन दीवारों की कुल लंबाई 10 किमी तक है। मंदिर परिसर इतना बड़ा है कि यहां मुख्य मंदिर के अलावा 50 अन्य मंदिर मौजूद हैं। मंदिर परिसर के भीतर ही कुल 39 मंडपम है। मंदिर के मुख्य मंडपम का नाम अयिरम काल मंडपम है, जो 1000 स्तंभों वाला एक बेहद विशाल हॉल है। इसके अतिरिक्त मंदिर में 9 पवित्र कुंड भी है। भगवान विष्णु के मुख्य मंदिर के दर्शन करने के बाद इन सभी 9 पवित्र कुंडों के जल से स्नान करने का सौभाग्य यहां वाला हर श्रद्धालु हासिल करता है। हर साल दिसंबर और जनवरी महीने में यहां जब 21 दिवसीय उत्सव का आयोजन किया जाता है, तब इस मंदिर में उत्सव के दौरान 10 लाख से भी ज्यादा लोग आते हैं।
इस मंदिर में लोगों तक खुद को खींच लाने का एक और आकर्षण है। और आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि यह आकर्षण का केंद्र दरअसल एक ममी है; जिसकी इस मंदिर में पूजा तक होती है। यह ममी वैष्णव संस्कृति के दार्शनिक गुरु रामानुजाचार्य की है। इतिहास के अनुसार, रामानुजाचार्य वृद्ध अवस्था में रंगनाथस्वामी मंदिर आ गए थे। यहां उन्होंने करीब 120 साल की वायु तक श्वास लिया। उन्होंने पहले भगवान श्री रंगनाथस्वामी से देह त्यागने की अनुमति ली। और फिर अपने शिष्यों के सामने शरीर छोड़ने का ऐलान कर दिया। उनकी आज्ञा की अनुसार उनके शिष्यों ने उनके शरीर पर विशेष लेप लगाकर उनके ममी को मंदिर में ही स्थापित कर दिया।
दुनिया के बाकी ममी भले सोने की अवस्था में मौजूद हो लेकिन रामानुजाचार्य की ममी बैठी हुई मुद्रा में ही रखी गई है। रंगनाथस्वामी मंदिर में रामानुजाचार्य की ममी को उनकी मूर्ति के ठीक पीछे रखा गया है। ममी को संरक्षित करने के लिए उस पर एक साल में सिर्फ दो बार चंदन, कपूर और केसर के मिश्रण का लेप लगाया जाता है। करीब एक हजार साल से लगाए जा रहे इस लेप के चलते रामानुजाचार्य के मृत शरीर का रंग केसरिया हो गया है। ममी के हाथ और पैरों के नाखूनों को देखकर आसानी से पता लग जाता है कि यह असल में किसी व्यक्ति का मृत शरीर ही है। वैसे सबसे अच्छी बात यह है कि रामानुजाचार्य की मूर्ति और ममी दोनों के लिए दर्शन भक्तों के लिए बहुत ही सुलभ है।
इतना सब जानने के बाद अब अगर आपके मन में भी दुनिया के सबसे बड़े क्रियाशील हिन्दू मंदिर जाने की ललक जाग गई है, तो चलिए अब यह भी जान लेते हैं कि यहां तक जाना कैसे है।
श्री रंगनाथस्वामी मंदिर के प्रांगण तक सड़क, रेल और हवाई तीनों की मार्गों के जरिए आसानी से पहुंचा जा सकता है। यदि आप समय बचाने के लिए हवाई मार्ग के जरिए आना चाह रहे हैं, तो फिर आपको तिरुचिरापल्ली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरना होगा। भारत के ज्यादातर प्रमुख शहरों से इस हवाई अड्डे तक के लिए सीधी उड़ान उपलब्ध है। हवाई अड्डे पर उतरने के बाद मंदिर तक का 9 किमी सफर आप ऑटो या फिर बस के जरिए आसानी से तय सकते हैं।
रेल यात्रा का आनंद उठाते हुए श्री रंगनाथस्वामी मंदिर तक आना चाह रहे हैं, तो इसके लिए देश के किसी भी कोने से आप तिरुचिरापल्ली रेलवे स्टेशन पहुंच सकते हैं। यहां से रंगनाथस्वामी मंदिर की दूर महज 6 किमी ही है। इसके अलावा आप श्री रंगम स्टेशन भी उतर सकते हैं। इस स्टेशन से मंदिर तक का महज 500 मीटर का फासला पैदल भी तय किया जा सकता है।
अगर आप अपनी सुविधानुसार सड़क मार्ग से आना चाह रहे हैं, तो इसके लिए भी आपके पास ढेर सारे विकल्प उपलब्ध है। अव्वल तो तिरुचिरापल्ली शहर के बीचों-बीच मौजूद होने के चलते राज्य के किसी भी कोने से मंदिर तक अपने निजी वाहन के जरिए आसानी से पहुंचा जा सकता है। दूसरा, आप चाहें तो तमिलनाडु राज्य परिवहन की बस के सहारे भी मंदिर तक का सफर तय कर सकते हैं।
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