घूमना एक नशा है जिसे सिर्फ घुमक्कड़ ही समझ सकते हैं। इस नशे में आप झूमते जरूर हैं लेकिन बेहोश नहीं होते। कई बार हमारे सफर में कुछ ऐसी अजनबी जगहें होती हैं जो रोमांच और सुकून देती हैं। वैसी ही जगह के लिए कई बार लंबे रास्तों पर चलना होता है। ऐसा ही कठिन, लंबा और सुंदरता की पनाहगार है, राचेला पास ट्रेक। नेओरा वैली नेशनल पार्क कई प्रकार की दुर्लभ वनस्पतियों का घर है। यहाँ चारों तरफ खूबसूरती ही खूबसूरती पसरी हुई है। हिमालय तो वैसे भी खूबसूरत है और हर मौसम में निखरता रहता है।
पहाड़ और जंगलों से होकर गुजरने वाला ये ट्रेक आपको कुदरत के सबसे बेहतरीन नमूनों से रूबरू कराता है। नेओरा नेशनल पार्क की सबसे ऊँची जगह है, राचेला पीक। यहाँ से दूर तलक देखने पर लगता है कि आसमान से हम जमीं देख रहे हैं। समुद्र तल से 3,152 मीट की ऊँचाई पर स्थित ये चोटी ऐसी जगह है जो तीन जगहों को एक प्रकार से बाॅर्ड है, बंगाल, भूटान और सिक्किम। भूटान और सिक्किम का व्यापार पहले इसी रास्ते से होता था।
राचेला ट्रेक हर किसी के लिए यादगार अनुभव होता है। ये ट्रेक मुल्खरका गाँव से शुरू होता है जो उत्तरी बंगाल में पड़ता है। इस ट्रेक में आपको देवदार और बांस के सुंदर-सुंदर जंगल भी मिलेंगे। इन घने जंगलों के बीच से चलना ही एक शानदार अनुभव होता है। जब आप लंबा सफर करने के बीच सबसे ऊँची जगह राचेला पीक पर पहुँचेंगे तो आपको आसपास रोडोडेंड्रोन के पेड़ दिखाई देंगे। इस जगह से आप जेलेप ला पास और नाथू ला दर्रा, सिंगालिला और चोल जैसी चोटियों को देख सकते हैं। वास्तव में नेओरा वैली नेशनल पार्क कुदरत का वो जड़ा हुआ हीरा है जो प्रकृति के करीब जाने का मौका देता है।
कैसे करें राचेला ट्रेक?
दिन 1
राचेला ट्रेक का बेस कैंप मुल्खरका गाँव में है। ये गाँव सिलीगुड़ी से लगभग 125 किमी. दूर है। इस गाँव तक पहुँचने के लिए आप सिलीगुड़ी से आप कार बुक करके पितम्चेन पहुँच सकते हैं। पितम्चेन से मुल्खरका गाँव ज्यादा दूर नहीं है। आप यहाँ से गाड़ी से भी जा सकते हैं या फिर खूबसूरत जंगलों से होकर ट्रेक करके भी जा सकते हैं। लगभग 5 किमीं. के ट्रेक में बीच में मल्खरका गाँव पड़ता है।
दिन 2
मुल्खरका से बड़ा रामिते तक, 14 किमी.
वास्तव में यही से इस ट्रेक की शुरूआत होती है। ट्रेक के पहले दिन सुबह जल्दी निकल जाना चाहिए। लगभग आधा घंटे की ट्रेकिंग के बाद आपकेा एक खूबसूरत झील मिलेगी, मुल्खरका लेक। गाँव से इस लेक तक खड़ी चढ़ाई है जो काफी थका देने वाली होती है। 8,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित इस झील का नजारा बेहद लुभावना होता है। जब लेक में आसपास के पहाड़ की छाया दिखाई देगी तो यकीन मानिए वो आपका मन मोह लेगी। इस लेक में पेड़ों की परछाई भी दिखाई देती है जिससे ये झील हरे रंग की लगती है। ऐसा लगता है किसी ने इसमें हरा रंग मिला दिया हो। ये झील यहाँ के स्थानीय लोगों के लिए बहुत पवित्र है। लेक के दूसरे तरफ एक छोटा-सा मंदिर भी है। अगर आपको सुकुन पसंद है तो ये जगह आपके लिए बिल्कुल सही है।
कुछ देर यहाँ ठहरने के बाद अपने सफर पर आगे बढ़ें। लगभग 1 घंटे तक खड़ी चढ़ाई करने के बाद मुल्खरका कैंप पहुँचेंगे। ये एक चेक पोस्ट है। यहाँ पर फाॅरेस्ट गाॅर्ड रात को आराम करते हैं। आपको ये भी पता होना चाहिए कि इस ट्रेकिंग में ये आखिरी जगह है जहाँ पानी मिलेगा। यहाँ से आगे आपको घने जंगल से होकर गुजरना होगा। कई बार जंगल इतने घने होंगे कि ऊपर देखने पर आसमान नहीं दिखाई देगा। लगभग 4 घंटे की ट्रेकिंग के बाद आप बड़ा रामिते पहुँचेंगे। जो आपका इस दिन का पड़ाव होगा। जहाँ आप रात में आराम करें।
दिन 3
बड़ा रामिते से राचेला टॉप, 7 किमी.
अगले दिन फिर से चढ़ने के लिए तैयार हो जाओ। यहाँ से आपको नेओरो नेशनल पार्क के घने जंगलों से गुजरना होगा। लगभग 2 घंटे की ट्रेकिंग करने के बाद आप चितरई पहुँचेंगे। इस जगह से आप पहली बार कंचनजंगा रेंज को देख सकेंगे। आप यहाँ पर कंचनजंगा के खूबसूरत और लुभावने नजारों का लुत्फ उठा सकते हैं। इसके अलावा आप यहाँ के घने जंगलों में टहल सकते हैं।
यहाँ से थोड़ा आगे बढ़ने पर एक ऐसी जगह आती है जहाँ से रास्ता दो तरफ मुड़ जाता है। दाईं तरफ का रास्ता अलुबरी जाता है और बाईं तरफ का रास्ता राचेला टाॅप ले जाता है। आपको राचेला टाॅप का रास्ता लेना है। यहाँ से रास्ते में मिलने वाले पेड़ों में बदलाव आना शुरू हो जाता है। यहाँ से आपको बांस और रोडोडेंड्रॉन के पेड़ मिलने शुरू हो जाते हैं। लगभग 1-2 घंटे के ट्रेक के बाद आप अपनी मंजिल पर पहुँच जाएँगे, राचेला पास। राचेला पास में अपना कैंप लगाइए और अगले दिन के लिए अच्छी नींद लीजिए।
राचेला टाॅप के पास एक झील है, जोरपोखरी लेक। जब आप रचेला टाॅप पर पहुँच जाएँ तो फिर उसके बाद जोरपोखरी लेक भी जा सकते हैं। आपको बता दें कि राचेला टाॅप दो देशों का बाॅर्डर है, भारत और भूटान। इसके अलावा ये दो भारतीय राज्यों का भी बाॅर्डर है, पश्चिम बंगाल और सिक्किम। यहाँ आप जोरपोखरी लेक में कुछ समय तक आनंद ले सकते हैं।
दिन 4
राचेला से जीरो पॉइंट, 14 किमी.
अगले दिन राॅचेला टाॅप से उगते हुए सूरज को देखने के लिए सुबह जल्दी उठें। अगर आसमान साफ हुआ तो आपको यहाँ से भूटान की पहाड़ियाँ, जेलेप ला और नाथू ला पास भी दिखाई देंगे। इसके बाद आप अलुबरी कैंप जाने के लिए तैयार हो जाएँ। राचेला टाॅप से अलुबरी कैंप पहुँचने में आपको सिर्फ 2 घंटे ही लगेंगे।
अलुबरी कैंप पर कुछ देर ठहरकर जीरो प्वाइंट के लिए निकल पड़िए। यहाँ से जीरो प्वाइंट तक पहुँचने में लगभग 4 घंटे लग सकते हैं। अलुबरी कैंप से आगे बढ़ने पर आधे घंटे बाद एक वाॅच टॉवर मिलेगा। ये टाॅवर नेओरा नदी के किनारे है। इस शांत जगह पर आपका मन खिल उठेगा। यहाँ से लगभग 2 से 3 घंटे चलने के बाद एक और वाॅच टाॅवर मिलेगा। इस वाॅच टॉवर से कुछ ही दूर जीरो प्वाइंट है। जीरो प्वाइंट पूरी तरह से मैदानी इलाका है। ये वो अंतिम जगह है जहाँ आप गाड़ी से पहुँच सकते हैं। जीरो प्वाइंट पर आकर आप रात में आराम करें।
दिन 5
जीरो पॉइंट से लावा, 12 किमी
ये ट्रेक का आखिरी दिन है। पगडंडियों से होकर गुजरने वाला रास्ता आपको कठिन लग सकता है। लगभग डेढ़ घंटे चलने के बाद चौधरी कैंप आता है। ये बेहद सुंदर जगह है। यहाँ पर रहने के लिए कुछ जगहें भी हैं। अगर आप जीरो प्वाइंट पर नहीं ठहरना चाहते तो रात यहाँ गुजार सकते हैं। जीरो प्वाइंट से चौधरी कैंप की दूरी लगभग 5 किमी. है। कलिम्पोंग में पड़ने वाला खूबसूरत पड़ाव लावा तक पहुँचने के लिए चौधरी कैंप से 7 किमी. का ट्रेक करना होता है। लावा से सिलीगुड़ी आप गाड़ी से जा सकते हैं।
कब जाएँ?
हिमालय की सबसे खास बात ये है कि अलग-अलग मौसम में अलग दिखाई देता है। हर मौसम में कुछ निखरा हुआ और खूबसूरत लगता है। गर्मियों में आप यहाँ हरियाली और फूल दिखाई देंगे तो सर्दियों में बर्फ की चादर से हिमालय ढंका रहता है। अगर आप सर्दियों में राचेला ट्रेक करते हैं तो आपको यहाँ बर्फ ही बर्फ मिलेगी। मेरा सुझाव मानें तो आपको ये ट्रेक मार्च से जून के बीच में करना चाहिए।
कैसे पहुँचें?
राचेला ट्रेक मुल्खरका गाँव से शुरू होता है। यहाँ से सबसे निकटतम एयरपोर्ट बागडोगरा में है। बागडोगरा से मुल्खरका की दूरी लगभग 200 किमी. है। मुल्खरका गाँव से नजदीकी रेलवे स्टेशन जलपाईगुड़ी है। मुल्खरका गाँव से सिलीगुड़ी 125 किमी. दूर है। यहाँ आने के लिए आप सिलगुड़ी से कार ले सकते हैं। जो आपको पिताम्चेन तक पहुँचा देगी। पिताम्चेन से मुल्खरका तक आप गाड़ी से भी आ सकते हैं या ट्रेक करके भी पहुँच सकते हैं।
क्या आपने कभी राचेला पास ट्रेक किया है? अपने सफर का अनुभव यहाँ लिखें।
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