वृंदावन उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले का एक ऐतिहासिक शहर है। वृंदावन ब्रज भूमि क्षेत्र की एक प्रमुख जगहों में से एक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, वृंदावन में ही भगवान श्रीकृष्ण ने अपना बचपन बिताया था। वृंदावन मथुरा शहर से सिर्फ 10 किमी. की दूरी पर है। वृंदावन की यात्रा के बिना मथुरा को घूमना अधूरा माना ही जाएगा। वृंदावन के कण-कण में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएँ हैं। भगवान कृष्ण और राधा की इस पवित्र जगह को वृंदावन धाम के नाम से जाना जाता है। हाल ही में मैंने इस शानदार शहर की यात्रा की।
मथुरा के मंदिरों को देखने के बाद अगले दिन मैंने वृंदावन जाने का तय किया। मथुरा से वृंदावन लगभग 10 किमी. की दूरी पर है। मथुरा से वृंदावन जाने के लिए इलैक्ट्रिक बसें और ऑटो चलती है। मैं भी ऐसी ही किसी एक शेयरिंग ऑटो पर सुबह-सुबह सवार हो गया। मेरे दिमाग़ में वृंदावन की एक अलग कल्पना थी। वृंदावन किसी गाँव की तरह होगा लेकिन मैं भूल गया था आधुनिकता ने इस जगह को काफ़ी बदल दिया है। लगभग आधे घंटे बाद मैं वृंदावन पहुँच गया।
वृंदावन
वृंदावन पहुँचने के बाद अब मुझे सबसे पहले रहने का ठिकाना खोजना था। कुछ होटलों में बात की लेकिन मेरे बजट में बात नहीं मानी। इसके बाद एक आश्रम में गया तो 500 रुपए में एक छोटा-सा कमरा मिल गया। मैंने सामान रखा और वृंदावन को घूमने के लिए निकल गया। जिस आश्रम में मैं ठहरा था। वहाँ से बाँके बिहारी मंदिर पास में ही था। मैं पैदल-पैदल ही बाँके बिहारी मंदिर की तरफ़ चल पड़ा। मैं जैसे-जैसे पास जा रहा था, लोगों की भीड़ बढ़ रही थी। इसके बाद एक चौराहा आया, जहां निःशुल्क जूते-चप्पल रखने का स्टैंड था। मैंने जूते-चप्पल रखे और मंदिर की तरफ़ बढ़ चला।
इस गली में घुसते ही समझ आ गया कि यही मंदिर का रास्ता है। गलियाँ लोगों से गुलज़ार थीं और दुकानें भी बेहद सजी हुईं थीं। रास्ते में मिठाइयाँ और फूल वालों की भी बहुत सारी दुकानें थीं। हर मिठाई की दुकान पर एक वाक्य ज़रूर लिखा था, मंदिर के लिए प्रसाद यहीं से जाता है। इन शानदार गलियों से मैं बढ़ता जा रहा था। रास्ते में कई सारे बच्चों और महिलाओं के हाथ में तिलक लगाने की कटोरी थी जो राधे-राधे नाम का तिलक लगाते और फिर उसके बदले पैसे लेते। मैं बिना तिलक लगवाए ही आगे बढ़ता चला गया। कुछ देर बाद मैं मंदिर के अंदर था।
बाँके बिहारी मंदिर
बाँके बिहारी मंदिर सिर्फ वृंदावन का ही नहीं पूरे देश का सबसे प्रतिष्ठित मंदिर है। मंदिर काफ़ी विशाल और खूबसूरत हैं। मंदिर के अंदर फ़ोटो और वीडियो लेना मना है। राजस्थानी शैली में बने इस मंदिर में भगवान कृष्ण की बेहद सुंदर मूर्ति है। मंदिर को देखने के बाद मैं बाहर आ गया। मैं बाहर मंदिर को निहार की रहा था तभी एक बंदर एक महिला के चेहरे पर लगे चश्मे को निकालकर ऊपर बैठ गया। जब महिला ने बंदर की तरफ़ मिठाई उछाली तो उसने चश्मे को छोड़कर मिठाई को लपक लिया। इससे मैं एक बात समझ गया कि वृंदावन में बंदरों से बचकर रहना पड़ेगा।
इस्कॉन मंदिर
बाँके बिहारी मंदिर को देखने के बाद अब मुझे इस्कॉन मंदिर को देखना था। इस्कॉन मंदिर बाँके बिहारी मंदिर से 3-4 किमी. की दूरी पर है। मैं ई-रिक्शा से मंदिर की तरफ़ चल पड़ा। कुछ देर बाद मैं इस्कॉन मंदिर पहुँच गया। वृंदावन के इस्कॉन मंदिर को श्रीकृष्ण बलराम मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। सन 1975 में इस मंदिर को भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद के निर्देश पर बनवाया गया था। इस्कॉन मंदिर वृंदावन के भव्य मंदिरों में से एक है। मंदिर में एक संग्रहालय भी जिसे आप देख सकते हैं। संगमरमर से बना ये भव्य मंदिर वाक़ई में देखने लायक है।
इस्कॉन मंदिर के पास में ही प्रेम मंदिर है। पैदल-पैदल टहलते हुए मैं प्रेम मंदिर पहुँच गया। प्रेम मंदिर भी वृंदावन के सबसे शानदार मंदिरों में से एक है। प्रेम मंदिर का परिसर भी काफ़ी बड़ा है। इस मंदिर को 2001 में जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज ने बनवाया था। दो तल के इस मंदिर राधा कृष्ण और सीता राम की मूर्ति स्थापित है। मंदिर के परिसर के अंदर आप मोबाइल से फ़ोटो और वीडियो ले सकते हैं लेकिन मंदिर के अंदर किसी भी प्रकार की फ़ोटो और वीडियो लेना मना है।
मंदिरों की टाइमिंग
मथुरा और वृंदावन को घूमते हुए आपको टाइमिंग को ध्यान में रखना है। दोनों की जगह पर मंदिर सुबह-सुबह लोगों के लिए खुल जाते हैं और दोपहर में 12 बजे के आसपास सभी मंदिर बंद कर दिए जाते हैं। इसके बाद शाम में 4 बजे से मंदिर खुलने शुरू होते हैं और आरती के बाद रात में 8 बजे मंदिर बंद हो जाते हैं। आपको इस समय के बीच में मंदिर को देखना पड़ेगा। आपको वृंदावन में दिन में कोई भी मंदिर खुला नहीं मिलेगा।
यमुना घाट
वृंदावन में बाँके बिहारी मंदिर, इस्कॉन मंदिर और प्रेम मंदिर को मैंने देख लिया। दोपहर के 1 बजने की वजह से अब मैं और कोई मंदिर को तो देख नहीं पाऊँगा। इसलिए अब मेरे पास एक ही जगह पर जाने का विकल्प बचा, यमुना घाट। मथुरा की तरह वृंदावन भी यमुना के किनारे बसा हुआ है। रास्ते में मुझे एक मदन मोहन का एक मंदिर देखने को मिला। उस मंदिर को देखने के बाद मैं घाट की तरफ़ परिक्रमा मार्ग पर चलने लगा। रास्ते में मुझे सड़क किनारे नक़्क़ाशीदार चबूतरे दिखाई दिए। पहले तो मुझे समझ नहीं आया। फिर बाद में एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि ये यमुना नदी के घाट हैं। पहले यमुना नदी यहाँ तक हुआ करती थी लेकिन अब लोगों ने बीच में घर बना दिए तो यमुनाजी यहाँ तक नहीं आ पाती हैं।
मैं यमुना की तरफ़ गया तो देखा कि यहाँ तो ख़ाली उजाड़ वाला मामला चल रहा था। नदी के किनारे घाट जैसा कुछ नहीं था, बस मिट्टी और रेत दिखाई दे रही थी। पास में एक नाला नदी में मिल रहा था। मथुरा की तरह वृंदावन में भी यमुना नदी का हाल बेहाल था। यमुना नदी का रंग पूरा काला था। नदी किनारे नावें थीं और कुछ लोग नौका विहार का आनंद ले रहे थे। यमुना नदी की गंदगी देखकर बेहद दुख हुआ। मेरी वृंदावन की घुमक्कड़ी इतनी ही रही लेकिन कहते है ना कि जो एक बार राधे की नगरी में आता है, उसका आना-जाना लगा ही रहता है।
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