देवों की भूमि देवभूमि जहां अनेक देवी-देवताओं के मंदिर है जो अपने अदंर अनेक पौराणिक कथाओं को समेटे हुए है. उत्तराखंड के पौड़ी में भी पौड़ी-कोटद्वार मार्ग पर नयार नदी के तट पर स्थापित है एक ऐसा ही मंदिर जो मां दुर्गा को समर्पित है. यह एक सिद्धपीठ मंदिर है जहां एक अखंड ज्वाला सदियों से प्रज्वलित है. यह है मां ज्वाल्पा देवी सिद्धपीठ.
इस सिद्धपीठ में चैत्र और शारदीय नवरात्रों में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है. इस मौके पर देश-विदेश से बड़ी संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं. अगर आप सच्चे दिल से यहां मां से कुछ मांगते हैं तो आपकी मनोकमानाएं अवश्य पूर्ण होती है. आखिर इसे ज्वालपा देवी क्यों कहा जाता है इसके पीछे एक पौराणिक कथा है.
स्कंदपुराण के अनुसार, सतयुग में दैत्यराज पुलोम की पुत्री शची ने देवराज इंद्र को पति रूप में प्राप्त करने के लिए नयार नदी के किनारे ज्वाल्पा धाम में हिमालय की अधिष्ठात्री देवी मां पार्वती की तपस्या की थी. मां पार्वती ने शची की तपस्या पर प्रसन्न होकर उसे दीप्त ज्वालेश्वरी के रूप में दर्शन देते हुए उसकी मनोकामना पूर्ण की. ज्वाला रूप में दर्शन देने के कारण इस स्थान का नाम ज्वालपा पड़ा. देवी पार्वती के दीप्तिमान ज्वाला के रूप में प्रकट होने के प्रतीक स्वरूप अखंड दीपक निरंतर मंदिर में प्रज्ज्वलित रहता है.
सिद्धपीठ ज्वालपा मंदिर काफी सुगम स्थान पर स्थित है. यहां की प्राकृतिक सुंदरता आपका मन मोह लेगी. नयार नदी के तट पर बैठकर एक अलौकिक शांति का एहसास होता है. शहर से दूर कुछ देर यहां आकर बैठना आपके मन में चल रही तमाम उथल-पुथल को शांत कर देगा. किजिएं मां ज्वालपा के पिंडी स्वरूप और अखंड जोत के दर्शन इस लिंक पर क्लिक कर.
यहां पहुंचना बेहद आसाना है. आप दिल्ली से सड़क मार्ग और रेल मार्ग के जरिए यहां पहुंच सकते हैं. अगर आप रेल मार्ग से आ रहे हैं तो रेल कोटद्वार तक है उससे आगे जाने के लिए आपको टैक्सी करनी होगी जो आसानी से यहां मिल जाती है. वहीं अगर आप सड़क मार्ग से आ रहे हैं तो 8 घंटा लंबा सफर है. रास्ते में आप सतपुली और पार्टिसैंण में रूककर चाय-नाशता कर सकते हैं.