उत्तराखंड के 'कैलाश' के पास स्थित 'नाबी' गाँव जो कि हैं अधिकतर घुम्मकड़ों के लिए एकदम अनछुई जगह

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Photo of उत्तराखंड के 'कैलाश' के पास स्थित 'नाबी' गाँव जो कि हैं अधिकतर घुम्मकड़ों के लिए एकदम अनछुई जगह by Rishabh Bharawa

अगर आप पहाड़ों पर कुछ एकदम हटकर नई और शांत जगह ढूँढना चाह रहे हैं ,तो उत्तराखंड में धारचूला के आगे पड़ते 'नाबी ' गाँव में जाकर आपकी खोज पूरी हो जायेगी। अधिकतर लोगों ने तो इस गाँव का नाम भी पहली बार ही सुना होगा लेकिन इधर जाकर दुनिया से लगभग कटकर रहने में वाकई वो सुकून आपको मिलेगा जो हर एक घुम्मकड़ ढूंढता हैं।

यही जगह है आदि कैलाश और कैलाश मानसरोवर यात्रा का एक मुख्य पड़ाव :

नाबी गाँव से करीब 4 से 5 किमी पहले गुंजी नाम की एक जगह आती हैं। गुंजी से एक रास्ता जाता हैं ॐ पर्वत के दर्शन करवाते हुए लिपुलेख दर्रे से कैलाश मानसरोवर की तरफ। वही ,दूसरा रास्ता नाबी से होते हुए 'आदिकैलाश ' की ओर जाता हैं। विदेश मंत्रालय से कैलाश मानसरोवर यात्रा या आदि कैलाश यात्रा करने वाले हर यात्रियों का यह एक मुख्य पड़ाव होता हैं। कैलाश मानसरोवर यात्रियों के लिए तो यह जगह मुख्य रूट से हटकर पड़ती हैं ,फिर भी इसकी खूबसूरती की वजह से और यहाँ पर्यटन को बढ़ावा दिलवाने के लिए कैलाश मानसरोवर यात्रियों को भी इधर एक रात के लिए स्पेशली लाया जाता हैं। 2019 तक तो पिथौरागढ़ से नाबी तक पैदल चल कर आना होता था जिसमे करीब 4 से 5 दिन लगते थे।2018 में कैलाश यात्रा के दौरान हमारे जत्थे को भी यहाँ पैदल लाया गया। गाँव पहुंचने से करीब 500 मीटर पहले ही हमे लेने के लिए गाँव के लोग ढोल नगाड़े लेकर आये। हमारा फूल माला से भव्य स्वागत किया ,लोकल फूलों का रस पिलाया और नाचते गाते हमे नाबी ले जाया गया।

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यहाँ अब लगभग हर घर में होमस्टे शुरू कर दिया गया हैं।आप यहाँ आकर यहाँ के लोकल कार्यक्रम ,लाइव गायन ,नाच -गान आदि का लुत्फ़ उठा सकते हैं। यहाँ की पारम्परिक वेशभूषा में फोटो खिचवा सकते हैं। एप्पल के बगीचों में एप्पल तोड़ कर खा सकते हैं।लोकल डिश जैसे -फापड़ की रोटी ,नमल के सत्तू ,भांग के पत्तों की चटनी ,लोकल फूलों का रस का मजा ले सकते हैं।पहाडी मकानों /mud हाउस में रह सकते हैं।ॐ पर्वत के दर्शन ,आदि कैलाश दर्शन कर सकते हैं। इन सबके अलावा व्यास गुफा ,भीमखेती ,हाथी पर्वत ,ब्रम्ह पर्वत ,पार्वती मुकुट ,पांडव पर्वत आदि देख सकते हैं। और सबसे अच्छी चीज ,खुद मानसिक संतुष्टि प्राप्त करते हुए ,इनकी आजीविका चलाने में भी योगदान दे देते हैं।

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यहाँ मिलती हैं 12000 फ़ीट की ऊंचाई और पास ही लगती हैं दो देशों की बॉर्डर:

नाबी गाँव की सबसे बड़ी खासियत यह हैं कि यही पास में ही नेपाल की भी बॉर्डर लगती हैं और तिब्बत (चीन ) की भी। समुद्रतल से यहाँ की ऊंचाई करीब 12000 फ़ीट हैं। यहाँ कोई मोबाइल नेटवर्क नहीं आता हैं।करीब 500 लोगों की टोटल जनसंख्या यहाँ की हैं जिसमे से लगभग 200 लोग ही यहाँ रहते हैं,अन्य सब नौकरी/व्यवसाय के लिए अन्य राज्यों या जिलों में रहते हैं।यहाँ के लोगों की मुख्य आमदनी पर्यटन ही हैं। kmvn भी इन्हे अच्छा सपोर्ट करता हैं।

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सबसे ख़ास बात जो यहाँ के लोगों की हैं वो हैं यहाँ का सामूहिक होमस्टे का संचालन। गाँव के कई लोग मिलकर कॉमन होमस्टे का संचालन करते हैं जिनमे आदि कैलाश और कैलाश यात्रा के श्रद्धालु रुकते हैं। सभी के लिए शाम को करीब 3 घंटे का सांस्कृतिक नाच गान का कार्यक्रम भी सभी गाँव वाले मिलकर करते हैं। खाने में कई तरह के लोकल व्यंजन परोसे जाते हैं। 2018 की कैलाश यात्रा के दौरान ,हमारे बैच ने सबसे ज्यादा मजे ही यही किये थे। खाना भी पेटभर कर करीब 15 दिनों बाद हमने यही खाया था,शाम के कार्यक्रम में स्टेज पर हमने कई गाने गाये ,कविताएं कही ,नृत्य किये थे। यह सब चीजे अब यहाँ के होमस्टे में रहने वाले हर यात्री के लिए भी शुरू हो गयी हैं।

पर्यटन के अलावा खेती यहाँ आय का दूसरा साधन हैं। एप्पल के बगीचे यहाँ खूब मिलते है।सर्दी के दिनों में जब यहाँ बर्फ पड़ती हैं तो यहाँ के अधिकतर निवासी धारचूला चले जाते हैं ,कुछ लोग यही BRO के साथ सड़क निर्माण कार्य में मदद करके परिवार चलाते हैं।

Photo of उत्तराखंड के 'कैलाश' के पास स्थित 'नाबी' गाँव जो कि हैं अधिकतर घुम्मकड़ों के लिए एकदम अनछुई जगह by Rishabh Bharawa
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ऐसी हैं यहाँ जाने से पहले की प्रोसेस :

नाबी गाँव चाइना और नेपाल बॉर्डर के पास पड़ता हैं।नाबी के पास ही 'कालापानी' नाम की जगह पड़ती हैं जिसपर नेपाल अपना हक़ जताता रहता हैं और चीन से हमारे संबंध्न तो सबको पता ही हैं।इसीलिए यहाँ जाना इतना आसान नहीं हैं। हम लोग इधर विदेश मंत्रालय के द्वारा कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान गए थे और एक रात रुके थे।हम लोगों के साथ ITBP के जवान भी रहते थे ,और हमे कोई परमिट लेने की आवश्यकता नहीं थी और इधर कोई आता भी नहीं था। अब आदिकैलाश तक सड़क बनने से यहाँ काफी यात्री आने लग गए हैं। धारचूला से इसके लिए इनर लाइन परमिट लेनी होती हैं।पहले यहाँ पैदल ट्रेक करके आना होता था ,अब यहाँ सीधी सड़क आती हैं।

नजदीकी स्थल : ॐ पर्वत ,आदि कैलाश , कालापानी , लिपुलेख दर्रा(यहाँ शायद सामान्य यात्री नहीं जा सकते हैं ) ,अन्य छोटे-छोटे ट्रेक।

होमस्टे का सामान्य किराया : 1500 रूपये प्रति दिन प्रति व्यक्ति। जिसमे नाश्ता ,दोनों समय खाना,गर्म पानी आदि सुविधाएं भी मिल जाती हैं।

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कैसे जाए : दिल्ली से काठगोदाम ट्रैन से पहुंच कर ,लोकल साधन से 275 किमी दूर धारचूला तो आसानी से पंहुचा जा सकता हैं। धारचूला से SDM कार्यालय से परमिट बनने के बाद नाबी के लिए 4 x 4 गाड़ियां /पिकअप /बोलेरो मिल जाती हैं।

सबसे अच्छी बात इस गाँव के लोगों की यह हैं गाँव के सभी परिवार के लोग सामूहिक सहभागिता से कॉमन होमस्टे का संचलन करते हैं और अपना परिवार चलाते हैं। इतनी जटिल पहाड़ी लाइफ में इनकी एकता और लगन को देखकर कम से कम एक आर्टिकल से इस जगह के बारे में लोगों को जागरूक तो किया जा ही सकता हैं।तो अगर आपको भी यह लेख पसंद आये तो लाइक ,कमेंट या शेयर जरूर करियेगा ।यहाँ के पुराने मार्ग /पैदल मार्ग का वृत्तांत आप 'चलो चले कैलाश ' में पढ़ सकते हैं।इस गाँव के बारे में कोई जानकारी गूगल पर भी नहीं मिलेगी।

धन्यवाद।

-ऋषभ भरावा (लेखक - 'चलो चले कैलाश ')

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