यह पहली बार था, जब कोई दल दुर्गम नेलांग घाटी तक साइकिल से पहुंचा। इस दल ने अपनी सफल उपलब्धि से भविष्य में इस खूबसूरत घाटी में साइकिलिंग की संभावनाएं प्रबल कर दीं। इस कीर्तिमान की पूरी कहानी को मैंने अपने कैमरे में कैद किया, इस साहसी और रोमांचकारी यात्रा के अनेक अनुभवों ने इसे अविस्मरणीय बना दिया।
इसके अलावा जिला पर्यटन विभाग उत्तरकाशी ने भी इसे सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई।
अलग-अलग पृष्ठभूमि के 20 साइकिल यात्री इस दल का हिस्सा थे, जिसका नेतृत्व पटना की सविता महातो और सिक्किम की शांति राय ने किया। नेहरू माउंटेनियरिंग संस्थान से थिलेंस गेल्पो भी इस साहसिक कार्यक्रम के प्रमुख हिस्सा थे। दो 12 साल की बच्चियां प्रियल और मनुस्वी इस अभियान में आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी, और अपने साथियों के लिए प्रेरक का काम कर रहीं थी।
इस अभियान के प्रमुख पड़ाव इस प्रकार थे:
उत्तरकाशी - भुक्की - हर्षिल- भैंरोंघाटी- नेलांग
साइकिल दल भैरोंघाटी से गंगोत्री जाकर उसी दिन वापस लौटा था। नेलांग घाटी में कैंपिंग की इजाजत न मिलने के कारण इस दल को नेलांग घाटी से भी उसी दिन वापस भैरोंघाटी लौटना पड़ा था, क्योंकि इस समय चीन-भारत की सीमारेखा पर स्थिति संवेदनशील है। नेलांग घाटी को 'उत्तराखंड का लद्दाख' कहा जा सकता है, इसके भौगोलिक सौंदर्य में लद्दाख की झलक मिलती है।
नेलांग घाटी में बिना पूर्व इजाजत के प्रवेश नही कर सकते, वहा भारतीय सेना और जिला प्रशासन से आदेश की आवश्यकता होती है, वहां अपने वाहन से जाना पड़ता है।
अगर भविष्य की संभावनाओं की बात करें तो ये यात्रा मार्ग साहसिक पर्यटन और सीमांत पर्यटन का प्रमुख केन्द्र बन सकता है।
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