मुन्सियारी: उत्तराखंड की गहराइयों में छिपी जन्नत

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श्रेय- सचिन चौसालीhttps://www.tripoto.com/profile/sachinchausali

Photo of मुन्सियारी: उत्तराखंड की गहराइयों में छिपी जन्नत by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

उत्तराखंड अपने आप में लाजवाब है। बढ़िया सड़कें बनी हैं, राज्य के अंदर कस्बों तक रेल की पटरियाँ बिछी हैं, और कई हवाई अड्डे हैं। इतनी बढ़िया व्यवस्था होने से ही उत्तराखंड के कई ऐसे शहर हैं, जहाँ हर साल लाखों सैलानी घूमने जाते हैं। नैनीताल, मसूरी, ऋषिकेश, कौसानी का नाम तो आपने सुना ही होगा।

मगर मैं ऐसी जगहों पर घूमने जाता हूँ, जो थोड़ी हटकर हों। तो इस बार हम साथ चलते हैं, उत्तराखंड के मुंसियारी गाँव में, जिसे यहाँ के लोग हिमनगरी भी कहते हैं।

पिछले साल फोटोग्राफी के लिए किसी नयी जगह की तलाश करते हुए मुझे मुंसियारी के बारे में पता चला। विचार आया और मैनें प्लान बनाया। चटपट प्लान बना के टिकट बनवायी और आ गए हम मुंसियारी। दिल्ली से 300 किलोमीटर दूर उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में 200 मीटर यानी 7200 फ़ीट ऊँचा मुंसियारी से कई ट्रेक शुरू होते हैं।

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मुंसियारी पहुँचना बड़ा ही आसान

दिल्ली से हल्द्वानी तक बस और ट्रेन दोनों आती है। पिथौरागढ़ तक के लिए सीधी बस भी चलती हैं, जहाँ से आगे के लिए आप ₹250 की एबीएस टिकट खरीदिये और बस 5 घंटे में मुंसियारी।

मुंसियारी तक के नज़ारे बड़े सुहाने लगे। बस की खिड़की से पंचाचूली पर्वतमाला साफ़ दिखती है। मीडिया में पढ़ाई करने की वजह से मैं अपने कैमरे और अनोखे दृष्टिकोण को काम में लेकर दिलचस्प जगहों की कहानियाँ बयान करता रहता हूँ।

आस-पास के लोगों ने बताया कि मुंसियारी के बारे में 1947 में देश की आज़ादी के समय से लेकर 1992 में आर्थिक आज़ादी तक का इतहास अगर कोई जानता है तो वो हैं यहाँ के इतिहास विषय के रिटायर्ड प्रोफेसर शेर सिंह पंगतें। इन्होनें ही शहर से 2 कि.मी. दूर "ट्राइबल हेरिटेज म्यूजियम" की स्थापना की। प्रोफेसर साहब से मुलाक़ात हो, इसलिए मैं म्यूजियम पहुँचा और सिंह साहब से खूब बातें की।

पुराने समय का मुंसियारी

Day 1

ट्राइबल हेरिटेज म्यूजियम

म्यूजियम क्यों बनाया, ये कहानी बड़ी दिलचस्प है। ईस्ट इंडिया कंपनी के भी पहले से सेंधा नमक, गुड़, कपास, ऊन, एल्युमीनियम, मोटरसाइकिल्स का व्यापार मुंसियारी से होते हुए नेपाल और तिब्बत में किया जाता है। व्यापारिक दृष्टि से मुंसियारी का महत्त्व देखते हुए ईस्ट इंडिया कंपनी ने दो ज़रूरी काम किये :

१. यहाँ के बच्चों को शिक्षित किया।

२. मुंसियारी से नेपाल और तिब्बत तक जाने वाली सड़कें बनायी

मगर फिर सन 1962 में चीन ने तिब्बत पर कब्ज़ा करके भारत-तिब्बत के व्यापार पर रोक लगा दी। व्यापार ना होने से गाँव के लोगों को रोज़गार मुहैया करवाने के लिए भारत सरकार ने मुंसियारी के लोगों को आरक्षण देना शुरू किया। इससे लोगों को काम तो मिला, मगर काम करने के लिए लोग गाँव छोड़-छोड़ कर जाने लगे। प्रोफेसर शेर सिंह ने इस पलायन को देखा और यहाँ की कला-संस्कृति को बचाने के लिए ये म्यूजियम स्थापित किया।

प्रोफेसर साहब ने बताया कि मुंसियारी में ऐसी-ऐसी सुन्दर जगहें बिना सरकारी मदद के विकसित हुई हैं, कि अब यहाँ देश भर से हमारे जैसे सैलानी घूमने आते हैं। आपने ही मुझे मुंसियारी की कई जानी-मानी खूबसूरत जगहें भी बतायी।

खूबसूरत जगहें जो हमनें देखीं

Day 2

मुंसियारी से 2 कि.मी. दूर पहाड़ पर ट्रेकिंग करने पर नंदा देवी मंदिर आता है, जहाँ देवी की पूजा करने पूरा उत्तराखंड तो आता ही है, साथ ही भारत के कोने-कोने से हमारे जैसे लोग यहाँ पिकनिक मनाने भी आते हैं।

श्रेय- सचिन चौसाली

Photo of नंदा देवी मंदिर, Kafol Bunga, Uttarakhand, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

पहाड़ चढ़कर जब मैं मंदिर तक पहुँचा तो ही समझ पाया कि यहाँ क्यों इतने लोग पिकनिक मनाने आते हैं। मेरे सामने हरे-भरे जंगलों से ढके ऊँचे-ऊँचे पहाड़ थे और उनके भी पीछे बड़े भाइयों की तरह सफ़ेद बर्फ से ढके शिखर थे। भारतीय सेना से रिटायर्ड श्रीमान देव सिंह पापरा यहाँ पुजारी के रूप में सेवा देते हैं। हम इस जगह के बारे में गहराई से बाते करने लगे। बातचीत से मुझे समझ आया कि इस मंदिर का इतिहास कुछ अलग है। इसे बनाने और संरक्षित करने में कई लोगों का योगदान है।

सन 1857 में यहीं के पुजारी ने अपने दम पर इस मंदिर को बनवाया था। फिर इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पेट्रोलिंग के जवान श्री बच्ची राम जी ने मंदिर निर्माण का काम पूरा करवाया। धीरे-धीरे लोग यहाँ दर्शन करने कम और पिकनिक मनाने ज़्यादा आने लगे। समय और लोगों की आवाजाही से मंदिर की दशा वैसी नहीं रही, जैसी बच्चा राम जी ने छोड़ी थी। फिर मंदिर के वर्तमान पुजारी श्री देव सिंह जी ने यहाँ का बीड़ा उठाया। नियम से देवी की पूजा-आरती होने लगी और यहाँ का आध्यात्मिक महत्त्व फिर से बढ़ गया।

Day 3

सफ़ेद रूई जैसे बादलों का अक्स शीशे जैसी साफ़ थरमई कुंड में दिखता है। ज़रा नज़रें ऊँची की और आपको पंचाचुली पर्वतों के दर्शन हो जाते हैं।

श्रेय- सचिन चौसाली

Photo of थमरी कुंद हिके ट्रेल, Almora-Bageshwar-Munsyari Road, Uttarakhand, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

इस कुंड का नाम एक देवी के नाम पर रखा गया है और कहते हैं कि यहाँ कूड़ा फैलाने से मुंसियारी में बादल खूब बरसते हैं। एक कहावत ये भी है कि अगर आपको यहाँ हंसों का एक जोड़ा तैरता दिखता है तो आपकी किस्मत बहुत अच्छी है।

कुछ तस्वीरें लेने के बाद मैं अपने होटल की तरफ चल दिया।

Day 4

मुंसियारी से 18 कि.मी. दूर बलती बंद से खलियान के लिए ट्रेक शुरू होता है और पाँच घंटे में आप ट्रेक पूरा कर लेते हैं। समुद्र तल से 22500 फ़ीट ऊपर खलियान पहुँचकर आप अपने नीचे झाँक कर चीड़ और देवदार के पेड़ों के जंगल देखते हैं। गर्दन थोड़ा ऊपर घुमाते हैं तो पहाड़ ही पहाड़।

श्रेय- सचिन चौसाली

Photo of खलियान, Uttarakhand, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

ज़रा शाम होते ही आसमान में करोड़ों तारे टिमटिमाते दिखते हैं। यहाँ कई एस्ट्रो-फोटोग्राफर तारों की तस्वीरें लेने आते हैं। आप भी लीजिये। खलियान से कई तरह के ट्रेक्स जैसी लिलम, रिलम, और नंदा देवी की शुरुआत होती है।

Day 5

400 फ़ीट ऊँचा ये झरना मुंसियारी और पिथौरागढ़ के बीच में, मुख्य शहर से 22 किलोमीटर दूर है। मुंसियारी के सबसे ऊँचे कालमुनि टॉप पर जैसे ही आप इस झरने के पास जाते हैं, आपको मिट्टी की सौंधी-सौंधी महक आने लगती है। झरना आगे चलकर गौर-गंगा नदी में मिलता है। आपको ऐसे सुन्दर नज़ारे दिखते हैं कि आप अपना कैमरा निकाले बिना नहीं रह सकते।

श्रेय- सचिन चौसाली

Photo of बिर्थी वॉटर फॉल, Munsyari Road, Uttarakhand, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

बर्थी फॉल्स से लौटते हुए आप कुछ देर ठहरते हैं और पंचचूली पर्वतों को सूर्यास्त के समय सफ़ेद से नारंगी और फिर लाल होते हुए देखते हैं।

श्रेय- सचिन चौसाली

Photo of पंचचूली पर्वत, Uttarakhand by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

जैसा प्यारा ये नज़ारा था, वैसी ही शानदार इन पाँचों पर्वतों की कहानी भी है। पंचचूली शब्द पंच यानी 'पाँच' और छुली यानी 'खाना पकाने का बर्तन' से बना है। कहते हैं कि स्वर्ग जाने से पहले पांडवों ने इन पॉंचों पर आखिरी बार खाना पकाया था।

मगर मुंसियारी गाँव वाले ऐसी ही कई और कहानियाँ भी सुनाते हैं। कोई कहता है कि पाँचों पांडव इन पॉंच पर्वतों में बदल गए और उनकी पत्नी पांचाली भी बर्फ के रूप में इनसे लिपट गयी। कई कहते हैं कि अभी द्वापर युग का अंत नहीं हुआ है, और द्वापर युग के अंत में पर्वत बने ये पांडव फिर से अपने मनुष्य रूप में आ जायेंगे।

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क्या आप भी कभी मुन्सियारी घूमने गए हैं? अपना अनुभव यहाँ लिखें।

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