किसी जन्नत से कम नहीं है उत्तराखंड की यह घाटी, पांडवों के स्वर्ग जाने से भी रहा है इसका कनेक्शन

Tripoto
20th Oct 2022
Photo of किसी जन्नत से कम नहीं है उत्तराखंड की यह घाटी, पांडवों के स्वर्ग जाने से भी रहा है इसका कनेक्शन by Hitendra Gupta

आमतौर पर पृथ्वी पर किसी स्वर्ग की बात करने पर जेहन में स्विटजरलैंड या कश्मीर का ही ख्याल आता है। लेकिन आप यह जानकर चौंक जाएंगे कि भारत में एक और जगह है जो किसी स्वर्ग की तरह ही बेहद खूबसूरत है और उसका नाम है दारमा घाटी। दारमा घाटी उत्तराखंड की सबसे खूबसूरत घाटियों में से एक है। यहां की खूबसूरती को देखकर तो एकबारगी आप कश्मीर को भूल जाएंगे। हिमालय पर्वतश्रृंखला में सफेद चोटियों और हरियाली के बीच दारमा घाटी आपको एक स्वप्न लोक की यात्री कराती है। कुछ दिन पहले तक दुर्गम इलाका होने के कारण यहां काफी कम पर्यटक आते थे, लेकिन नरेन्द्र मोदी सरकार के इंफ्रास्ट्रक्चर पर जोर देने के बाद यहां घुम्मकड़ों की तादाद बढ़ी है और दुनिया भर के लोगों को इसके बारे में जानने की उत्सुकता जगी है।

दारमा घाटी

फोटो सौजन्य- उत्तराखंड टूरिज्म

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उत्तराखंड के पूर्वी इलाके में स्थित दारमा घाटी के उत्तर में तिब्बत यानी चीन और पूर्व में नेपाल है। पंचाचूली यानी पांच चूली (चोटी) की सफेद पांच चोटियों के बीच बसी यह घाटी हर किसी का मन मोह लेती है। पंचाचूली की पांच चोटियां 6,334 मीटर से लेकर 6,904 मीटर तक ऊंची हैं। इन पांच चोटियों को लेकर कहा जाता है कि महाभारत युद्ध खत्म होने पर राजपाट का सुख भोगने के बाद पांडवों ने हिमालय के रास्ते स्वर्ग जाने से पहले अपना आखिरी चूल्हा यहीं चलाया था यानी अपना आखिरी खाना यहीं पकाकर खाया था। इन पांचों चोटियों पर पांडवों के पांच चूल्हे बनाने के कारण इन्हें पंचाचूली के नाम से पहचाना जाने लगा। यहां के लोगों का यह भी मानना है कि पंचाचूली के ये पांचों शिखर युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव के प्रतीक हैं।

फोटो सौजन्य- उत्तराखंड टूरिज्म

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पंचाचूली के आगोश में बसे दारमा घाटी से धौलीगंगा नदी गुजरती है। इसे पहले दारमा नदी के नाम से भी जाना जाता था। आप नदी किनारे बैठ घंटों कल- कल बहते निर्मल पानी को देखते रह सकते हैं। घाटी में भोजपत्र के पेड़, बुरांश के फूल के पौधे के साथ हरियाली से भरा बुग्याल किसी भी पर्यटक का मन मोहने के लिए काफी है। दारमा घाटी में बिखरा प्राकृतिक सौंदर्य मन को एक अलग ही अलौकिक आनंद देता है। कभी-कभी लगता है कि जैसे हम दारमा नहीं फूलों की घाटी में आ गए हैं। हरियाली और सफेद चोटियों के बीच झर-झर बहते झरने मन को असीम शांति प्रदान करते हैं।

पिथौरागढ़ जिले में करीब 3,470 मीटर की ऊंचाई पर स्थित दारमा घाटी आजकल ट्रेक करने वाले पर्यटकों के लिए पसंदीदा डेस्टिनेशन बनकर उभरा है। ट्रेक करने वालों को यहां हरियाली और सफेद बर्फ के बीच रोमांच का अनोखा मौका मिलता है। घाटी से पंचाचुली बेस कैंप तक जाने का रास्ता इतना खूबसूरत है कि कई बार छोटी सी दूरी तय करने में पूरा दिन निकल जाता है। कैमरा हाथ में होने पर बार-बार रुककर यहां की सुंदरता को कैमरे में कैद कर लेने का मन करता है। आप यहां की खूबसूरती में खो से जाते हैं। आपको समय का ध्यान ही नहीं रहता। इसलिए कई बार यह ट्रेकिंग ध्यान में ही बदल जाता है।

अगर आप बारिश के बाद यहां आते है तो फूल पूरी तरह से खिले होते हैं और आपका सफर और भी सुहाना हो जाता है। यहां इतना प्राकृतिक सौन्दर्य बिखरा हुआ है कि पर्यटक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। भोजपत्र और बुरांश के अलावा यहां पौधे और वनस्पतियों की इतनी प्रजातियां देखने को मिलती हैं कि दंग रह जाएंगे। जैसे-जैसे आप ऊपर जाएंगे सीढ़ीनुमा खेतों के साथ फूलों की अलग-अलग प्रजातियां देखने को मिल जाएंगी।

और क्या देखें?

पंचाचूली की इस दारमा घाटी में दर, नांगलिंग, सेला, चल, बालिंग, दुग्तु, सोन, दांतु, बोन, फिलम, तिदांग, गो, मारछा, सीपू सहित चौदह गांव बसे हुए हैं। इन सभी गांवों की आबादी तकरीबन पांच हजार होगी। सर्दी में बर्फबारी के बाद ये लोग निचले इलाके में चले जाते हैं। मौसम खुलने के बाद ये लोग फिर वापस आ जाते हैं। यहां के पहाड़ी इलाके सैकड़ों दुर्लभ जड़ी-बूटियों का केंद्र रहे हैं। अब तो यहां के लोग बड़े स्तर पर जड़ी-बूटी की खेती करने लगे हैं। बोन गांव पिथौरागढ़ का पहला ‘हर्बल विलेज’ भी बन गया है। अब यहां जम्बू, कुटकी, गंदरायन, अतीस, कुठ, काला जीरा सहित अन्य जड़ी-बूटियों की खेती होने रही हैं। इससे इनके पास रोजगार का एक और साधन उपलब्ध हो गया है।

कब जाएं और कहां ठहरें?

दारमा घाटी के सौदर्य का लुत्फ उठाने का सबसे अच्छा समय मार्च से जून और सितंबर से लेकर अक्तूबर तक का है। अक्तूबर के बाद यहां ठंड की आहत तेज हो जाती है। ठंड बढ़ने पर सर्दी में लोग निचले इलाके में चले जाते हैं। सर्दी कम होते ही ये लोग वापस आ जाते हैं। घूमने के दौरान आप यहां होमस्टे भी कर सकते हैं। कुमाऊं मंडल विकास निगम (KMVN) ने यहां के लोगों के साथ मिलकर होमस्टे की शुरुआत की है। यहां आपको दांतु, दुग्तु, बालिंग और नांगलिंग के साथ कई गांवों में रहने के साथ खाने-पीने की सुविधा मिल सकती है। ट्रेक करने वाले अपने साथ टेंट भी लेकर चलते हैं।

कैसे पहुंचें दारमा घाटी?

सड़क मार्ग से: दारमा घाटी का सबसे नजदीकी शहर धारचूला है। धारचूला सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आप यहां से आसानी से दारमा घाटी पहुंच सकते हैं।

रेल मार्ग से: नजदीकी रेलवे स्टेशन टनकपुर 250 किलोमीटर दूर है। आप यहां से बस, टैक्सी या अन्य सवारी से धारचूला पहुंच सकते हैं।

हवाई मार्ग से: नजदीकी हवाई अड्डा पंतनगर है। पंतनगर धारचूला से करीब 305 किलोमीटर दूर है। आप यहां से धारचूला बस, टैक्सी या किसी दूसरी सवारी से पहुंच सकते हैं।

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