यूपी का नाम अपने पर्यटन के लिए कभी प्रसिद्ध नहीं हो पाया, इसकी सारी मलाई कश्मीर, उत्तर पूर्व और केरल ले उड़े। लेकिन अगर यूपी वाला होते हुए भी अपने घर के ये प्रसिद्ध झरनों के बारे में नहीं पता, तो समझ लीजिए बीमारी बहुत गहरी है, डॉक्टर को दिखाना पड़ेगा। हम आपको बता रहे हैं भोले की काशी से 60 कि.मी. दूर झरनों वाली ये वाइल्डलाइफ़ सैंक्चुरी के बारे में।
क्या है ख़ास इस सैंक्चुरी में
झरनों वाली चन्द्रप्रभा वाइल्डलाइफ़ सैंक्चुरी बनारस से 60 कि.मी. दूर है। 78 वर्ग किमी0 में फैली इस सैंक्चुरी में दो प्रमुख जलप्रपात हैं, राजदरी और देवदरी।
मॉनसून के सीज़न में पूरा चन्द्रप्रभा ही जलप्रपात बन जाता है। कजरदह कुंड, चन्द्रप्रभा डैम, कर्मनासा नदी, मुज़फ़्फ़रपुर बियर, मूसाखाड़ डैम, नोबेल डैम, हनुमान मंदिर और फौरवाताड़ प्रपात मॉनसून में देखने लायक हो जाते हैं।
राजदरी जलप्रपात
राजदरी जलप्रपात इस सैंक्चुरी के सबसे प्रसिद्ध जलप्रपातों में है। 65 फ़ीट ऊँचे इस जलप्रपात के नज़दीक सैकड़ों की तादाद में लोग वीकेंड पिकनिक का प्लान बनाकर आते हैं। राजदरी से पानी यूँ गिरता है मानो सीढ़ियों से उतरकर ज़मीन पर आ रहा हो। मॉनसून के सीज़न में जिस उफ़ान पर होता है राजदरी, देखने लायक होता है।
हालाँकि पिछले कुछ सालों में आने वाले पानी का उफ़ान लगातार कम होता जा रहा है। पहले के महीनों में राजदरी में आने वाला पानी बहुत ज़्यादा हुआ करता था।
देवदरी जलप्रपात
राजदरी जलप्रपात से महज़ 3 किमी0 की दूरी पर चन्द्रप्रभा सैंक्चुरी में ही मिलता है देवदरी जलप्रपात। ये झरना राजदरी से एकदम अलग है। राजदरी की तरह यह सीढ़ीनुमा न होकर विदेशी झरने जैसा है, ऊपर से आता हुआ पानी एकदम से नीचे गिरता है। यूपी का नियाग्रा वॉटरफॉल देख लीजिए, ठीक वैसा ही है।
कजरदह कुंड
कजरदह कुंड जलप्रपात का नाम आपने बहुत ज़्यादा नहींं सुना होगा। लोग राजदरी और देवदरी को ही जानते हैं, क्योंकि कजरदह तक पहुँचना थोड़ा सा मुश्किल है।
नौगढ़ बाँध से क़रीब 4 कि.मी. आगे जाने पर यह बाँध मिलता है। थोड़ी सी कँटीली झाड़ियों को पार करके दिखता है कजरदह कुंड जो किसी भी मामले में राजदरी देवदरी से कम नहीं है।
मॉनसून के मौसम में पानी से लबालब भरा होता है यह झरना, जो इसकी शान में चार चाँद लगा देता है। लोगों के अनुसार गुरवट नदी, जिसे गुर्वाता नदी भी कहते हैं, का पानी क़रीब 45 फ़ीट की ऊँचाई से गिरता है और आगे कर्मनाशा नदी में मिल जाता है।
कर्मनाशा नदी की विचित्र कहानी - नाम है कर्मनाशा, मतलब कर्मों का नाश करने वाला। बहुत बुरा कहा गया है इस नदी को। बिहार से निकलने वाली कर्मनाशा नदी के बारे में कहा जाता है कि इसके नज़दीक रहने वाले लोग इस नदी के पानी से खाना नहीं बनाते थे और फलों से गुज़ारा करते थे। हालाँकि ये ही नदी चंदौली से गुज़रने के बाद आगे सबसे पवित्र नदी गंगा में मिल जाती है।
राजदरी देवदरी जितने आसान हैं, कजरदह कुंड उतना ही मुश्किल। लोग कहते हैं किसी ज़माने में यहाँ मगरमच्छ भी हुआ करते थे। और अभी न भी दिखें, तो भी पानी में उतरना जान जोख़िम में डालना है।
चन्द्रप्रभा की अन्य विशेषताएँ
चन्द्रप्रभा वाइल्डलाइफ़ सैंक्चुरी में ब्लैकबक्स, चीतल, सांभर, नीलगाय, जंगली सूअर, साही और सलमान भाई का फ़ेवरेट चिंकारा भी है। स्तनधारियों में घड़ियाल और पायथन आकर्षण का केन्द्र हैं। पक्षियों के मामले में यह बहुत उन्नत है, पक्षियों की क़रीब 150 से अधिक प्रजातियाँ यहाँ देखने मिलती हैं।
पेड़ों के मामले में यहाँ महुआ, सागौन, अमलतास, तेंदू, कोरैया और बेर मिलते हैं। गनीस भी बहुत मिलता है।
मैंने हमेशा उत्तर प्रदेश की छवि एक ग़रीब और बीमार राज्य की तरह देखी है, जिसके पास अपना कुछ भी नहीं है। लेकिन ज़रा ग़ौर करने पर पता चलता है कि विविधता के मामले में हम दूसरे राज्यों को कड़ी टक्कर दे सकते हैं। खान-पान से लेकर, संस्कृति, लोक कला और साहित्य; कुछ भी ऐसा नहीं है जो हमारे पास न हो। ज़रूरत है तो बस नज़र मारने की।
देखने के लिए और भी कई नाम हैं चंदौली में। लतीफ़शाह डैम, मुज़फ़्फ़रपुर बियर, चन्द्रप्रभा डैम, चन्द्रप्रभा नदी, कर्मनासा नदी, मूसाखाड़ डैम, नोबेल डैम, हनुमान मंदिर, फौरवाताड़ प्रपात का नाम प्रचलित है। समय रहे तो देखने निकल सकते हैं।
घूमने का सबसे सही समय
मॉनसून का समय सबसे बढ़िया। बाकी समय आएँगे तो उतना आनन्द न मिलेगा, जितना सोचकर आए हैं।
ठहरने के लिए
राजदरी और देवदरी के कारण चंदौली का चन्द्रप्रभा और विख्यात हो सकता था, लेकिन ख़्याल नहीं रखे जाने के कारण इसका नाम उतना नहीं पहुँचा। इस वाइल्डलाइफ़ सैंक्चुरी में ठहरने की व्यवस्था नहींं है। जब आप प्लान बनाएँ तो एक दिन से ज़्यादा का मत रखिए। एक दिन में सब कुछ घूम भी लेंगे और वापस घर को प्रस्थान भी।
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