जानिए इस अल्ट्रामैराथन धावक ने 6 दिनों में कैसे किया मनाली से लेह का 430 किमी. लंबा सफर

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एडवेंचर पसंद करने वाले लोगों के लिए मनाली लेह हाईवे दुनिया के सबसे रोमांचक रास्तों में से है। ये दुनिया के सबसे ऊँचे दर्रों से होकर गुजरने वाली कठिन सड़कों में से एक है। लेकिन इस हाईवे पर जो मुकाम 25 सितंबर को हासिल किया गया है वो इस राजमार्ग के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जा चुका है। 2,000 मीटर की ऊँचाई वाले इस हाईवे पर भारत की अल्ट्रामैराथन धावक सूफिया ने मनाली से शुरू होकर लेह में समाप्त होने वाली 430 किमी की कठिन यात्रा पूरी की और यह उपलब्धि हासिल करने वाली पहली महिला धावक बनीं।

लेकिन क्या वो थक गई हैं? एक इंटरव्यू में पूछे जाने पर सूफिया कहती हैं "मैं थकान के साथ-साथ उत्साह से भरी हुई हूँ। मैंने दौड़ को 6 दिन, 12 घंटे और 10 मिनट में पूरा किया। ये मेरे जीवन का अब तक का सबसे कठिन टारगेट था, लेकिन मैं इस विश्व रिकॉर्ड के लिए कोशिश करने के लिए तैयार थी। सूफिया कहती हैं वो फिलहाल गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड की पुष्टि का इंतजार कर रही हैं।

सूफिया आगे बताती हैं कि दौड़ में सांस बड़ा चैलेंज इस क्षेत्र में खुद को ढालना था। इसलिए उन्होंने दौड़ शुरू करने से पहले 20 दिनों के लिए मनाली और लेह के बीच सड़क पर ट्रेनिंग की और शारीरिक जरूरतों को समझा। सूफिया कहती हैं, शारीरिक प्रशिक्षण के अलावा, मैंने अपनी साँस लेने की शक्ति को मजबूत करने पर काफी काम किया; मैंने योगा और प्राणायाम भी किया। क्योंकि इस दौड़ को पूरा करने के लिए शारिरिक शक्ति के साथ साथ मानसिक स्वास्थ्य की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका थी, इसलिए मैंने उसपर भी लगातार काम किया। वो कहती हैं, दौड़ने में 90% काम मानसिक शांति और 10% शारीरिक व्यायाम का है।

कौन हैं सूफिया?

35 वर्षीय सुफिया ने 2017 में दौड़ना शुरू कर दिया था। एविएशन सेक्टर में एक थका देने वाली नौकरी के बाद उनके पास जिम के लिए समय नहीं बचता था। “रात की शिफ्ट में काम करने के बाद से मैं हर समय सुस्त महसूस किया करती थी। मेरे पति विकास, जो खुद एक बेहतरीन साइकिल चालक हैं, से मुझे दौड़ना शुरू करने के लिए प्रोत्साहन मिला। सूफिया बताती हैं कि आर्थिक समस्याओं के बावजूद, उन्होंने दौड़ने पर पूरा ध्यान देने, के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी।

दिल्ली के इस धावक ने इस साल की शुरुआत में 110 दिनों और 23 घंटे के रिकॉर्ड समय में भारत में गोल्डन क्वाड्रिलेटरल में 6,000 किलोमीटर से ज्यादा की दौड़ पूरी की थी। उन्होंने कश्मीर से कन्याकुमारी तक 87 दिनों में 4,000 किलोमीटर की दौड़ भी पूरी की थी। इस प्रोजेक्ट को वो K2K कहती हैं। कड़ी मेहनत हमेशा से सूफिया का मजबूत हिस्सा रहा है। सूफिया का कहना है कि लेह ने किसी भी अन्य इलाके की तुलना में उनकी कड़ी परीक्षा ली। सूफिया इस दौड़ की चुनौतियों को समझती थीं। इसलिए अपने जीक्यू रन से लौटने के तुरंत बाद उन्होंने मनाली-लेह की तैयारी शुरू कर दी। पूरी ट्रेनिंग करने में उन्हें 6 महीनों का समय लगा। मनाली-लेह हाईवे पर अक्सर सर्दियों के कारण सड़कें बंद होने की आशंका लगी रहती है इसलिए उन्हें पहले ही शुरुआत करनी थी।

कैसे की प्लानिंग?

हिमालयन अल्ट्रा रन अभियान थका देने वाला था लेकिन इससे मुझे लद्दाख की सुंदरता का आनंद लेने का मौका मिला। बहुत से लोग फ्लाइट से मनाली आना पसंद करते हैं लेकिन सफर में होना मंजिल से ज्यादा खूबसूरत होता है। दौड़ने के समय मैं बिना किसी तनाव के अपने सामने हो रही हर हलचल का मजा ले रही थी। गाड़ियों की आवाज से लेकर हिमालय का खूबसूरत सनसेट देखने तक सभी चीजें मुझे बहुत अच्छी लगीं। सूफिया कहती हैं इस बात में कोई आश्चर्य नहीं कि दौड़ना ट्रेवल करने का सबसे अच्छा तरीका है।

अपने इस हिमालयन अल्ट्रा रन अभियान में सूफिया ने रोहतांग, बारालाचा ला, लाचुलुंग ला, सरचू और गाटा लूप्स जैसे फेमस जगहों को कवर किया। इस पूरे अभियान में उन्होंने कुल 9,000 मीटर की ऊँचाई के साथ खत्म किया।

सूफिया बताती हैं कि दौड़ने के समय उनके पास एक कार थी जो उनके साथ चलती थी। विकास के साथ-साथ उनके कोच पूरे रास्ते उन्हें प्रोत्साहन देते थे। दौड़ के दौरान, सूफिया ने एक औसतन स्पीड बरकरार रखी थी। इस अभियान में सूफिया घंटों तक लगातार दौड़ती थीं और केवल नींद लेने के लिए रुकती थीं।

घुटने की चोट से जूझते हुए पहले दिन, उन्होंने 14 घंटे में 65 किमी. की दूरी तय करते हुए रोहतांग को कवर किया। ऊबड़ खाबड़ रास्ते, ढलान और ऊँचाई ने उनकी मुश्किलें और भी ज्यादा बढ़ा दी थी। सूफिया बताती हैं कुछ दिनों तक उन्हें पूरी तरह से धूप मिलती थी और फिर अगले कुछ दिनों में बहुत ठंड पड़ती थी। कई बार, थकान, पानी और ऑक्सीजन की कमी के कारण बेहोश भी हो जाती थीं। लेकिन उन्हें पर्याप्त मात्रा में पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स पीते रखने की सलाह दी गई जिनसे उनके शरीर में पानी की कमी न होने पाए। पहाड़ों पर हमें हमेशा पानी पीने की जरूरत महसूस नहीं होती, लेकिन लोग यही पहली गलती करते हैं। चूँकि मैं एक दिन में लगभग 4,000-5,000 कैलोरी बर्न कर रही थी, मुझे चलते-फिरते कुछ न कुछ पीते रहना था। सूफिया अपनी सफलता का काफी श्रेय भारतीय सेना को भी देती हैं जिनके शिविरों में सूफिया को जगह जगह पर आराम करने का ठिकाना, खाना और जरूरी चिकित्सा सुविधाएँ मिलीं।

सूफिया बताती हैं पूरी दौड़ में सबसे कठिन हिस्सा सरचू के बाद आया जहाँ सड़क बनाने का काम चल रहा था। पूरे 10 किमी. के रास्ते में, रेतील और मिट्टी के ट्रैक ने उनकी स्पीड को काफी प्रभावित किया। धूल-मिट्टी के कारण उन्हें सांस लेने में तकलीफ हुई।

छोटे-छोटे शिविर, बदलते मौसम और तापमान और कठिन रास्तों पर उन्होंने खुद को कैसे शांत रखा? ये पूछने पर वो कहती हैं कि ये जायज बात है कि आपको दौड़ में थकान होगी। कई मौके ऐसे भी आएंगे जब आप अभियान छोड़ने की कगार पर पहुँच जाएंगे लेकिन यहाँ पर आपका दिमाग काम आता है। आपकी मानसिक शक्ति ही तय करती है कि आप कितनी दूर तक जा सकते हैं।

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