उत्तराखंड में स्थित ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों में से एक है ऊखीमठ। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर अति प्राचीन धारत्तुर परकोटा शैली में निर्मित विश्व का एकमात्र मंदिर है। जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से 41 किमी दूर समुद्रतल से 1311 मीटर की ऊंचाई पर ऊखीमठ में स्थित यह मंदिर न केवल प्रथम केदार भगवान केदारनाथ, बल्कि द्वितीय केदार भगवान मध्यमेश्वर का शीतकालीन गद्दीस्थल भी है। पंचकेदारों की दिव्य मूर्तियां और शिवलिंग स्थापित होने के कारण इसे पंचगद्दी स्थल भी कहा गया है।
पौराणिक कथा
उषा-अनिरुद्ध की सुंदर कथा का श्रीमद्भागवता में सविस्तार वर्णन किया गया है। पौराणिक कथा के अनुसार अपनी पुत्री उषा और भगवान कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के बीच प्रेम से गुस्सा होकर बाणासुर ने अनिरुद्ध को बंदी बना लिया था। ऐसे में अपने पौत्र को मुक्त करने के लिए भगवान कृष्ण, बाणासुर से युद्ध करने के लिए पहुंचे। जब बाणासुर को लगा कि वह भगवान कृष्ण को युद्ध में नहीं हरा सकता तो उन्होंने भगवान शिव को याद किया। ऐसे में अपने भक्त की रक्षा करने के लिए भगवान शिव खुद मैदान में उतरे। कुछ ही समय में भगवान शिव और भगवान कृष्ण के बीच युद्ध होने लगा। जब भगवान कृष्ण को लगने लगा कि भगवान शिव के चलते वह अपने पौत्र को नहीं बचा पाएंगे तो उन्होंने भगवान शिव को स्तुति की।
भगवान कृष्ण ने भगवान शिव से कहा कि आपने बाणासुर को कहा था कि मैं उसे युद्ध में परास्त करूंगा, लेकिन आपके रहते ऐसा नहीं हो सकता। ऐसे में आप ही उचित मार्ग मुझे दिखाएं। इसके बाद भगवान शिव युद्ध से हट गए और भगवान कृष्ण ने बाणासुर को युद्ध में हरा दिया। जब भगवान कृष्ण ने बाणासुर को मारने की ठानी तो भगवान शिव ने भगवान कृष्ण से बाणासुर को जीवनदान देने की बात कही। इसके बाद भगवान कृष्ण ने भी बाणासुर को जीवनदान दे दिया। इसके बाद बाणासुर ने भी अपनी पुत्री का विवाह भगवान कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से करवा दिया।
इन प्राचीन कथाओं और मान्यताओं के कारण इस ऐतिहासिक स्थल को पंचकेदार के मुख्य रावल का गद्दी स्थल माना गया है। मुख्य गद्दी स्थल होने के कारण ही ऊखीमठ में केदारनाथ जी विराजते हैं। शीतकाल में भगवान केदारनाथ की उत्सव डोली को इस जगह के लिए केदारनाथ से लाया जाता है। केदारनाथ की शीतकालीन पूजा और पूरे साल भगवान ओंकारेश्वर की पूजा यहीं की जाती है। ग्रीष्म काल आने पर यहीं से भगवान की डोली यात्रा केदारनाथ के लिए विदा होती है। इसलिए उखी मठ को दूसरा केदारनाथ भी कहा जाता है।
सबसे प्राचीन एवं मजबूत मंदिर
ब्रिटेन के प्रसिद्ध पुरातत्वविद् सर ऑर्थर जॉन इवान्स ने जुलाई 1892 को इस मंदिर का सर्वेक्षण किया था। इस दौरान जो आश्चर्यजनक तथ्य सामने आए, उनका उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'लैंड्स ऑफ गॉड्स एंड ऑर्किटेक्चर स्टाइल ऑफ हिंदू टैंपल' के अध्याय-523 में विस्तार से वर्णन किया है। शोध के बाद उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि यह मंदिर विश्व के सबसे प्राचीन एवं मजबूत मंदिरों में से एक है।
बद्रीनाथ के बाद सबसे खूबसूरत सिंहद्वार
ओंकारेश्वर मंदिर चारों ओर से प्राचीन भव्य भवनों से घिरा हुआ है, जिनकी छत पठाल निर्मित है। मंदिर में प्रवेश करने के लिए बाहरी भवन पर एक विशाल सिंहद्वार बना हुआ है, जो मंदिर में प्रवेश का एकमात्र मार्ग है। बेहतरीन नक्काशी वाला यह द्वार खूबसूरती में बद्रीनाथ धाम के मुख्य प्रवेश द्वार के बाद उत्तराखंड में दूसरा स्थान रखता है।
कहीं नहीं हैं ब्रह्मा-विष्णु द्वारपाल
यह एकमात्र प्राचीन मंदिर है, जिसके द्वारपाल के रूप में ब्रह्मदेव व श्रीहरि विराजमान हैं। अन्य किसी भी मंदिर में ब्रह्मदेव व श्रीहरि की प्रतिमाएं द्वारपाल के रूप में स्थापित नहीं है।
आक्रांताओं ने पहुंचाया नुकसान
इतिहासकारों के अनुसार 1027 ईस्वी में मुस्लिम शासक महमूद ने ओंकारेश्वर मंदिर के सभामंडप की छत को ध्वस्त कर दिया था। लेकिन, वह सभामंडप की दीवारों और गर्भगृह को ध्वस्त नहीं कर सका। इसके बाद क्षेत्रीय लोगों ने सभामंडप की छत पठालों से निर्मित की। वर्तमान में यह छत सीमेंट-कंक्रीट की बनी हुई है।
धारत्तुर परकोटा शैली से निर्मित हैं यह मंदिर
धारत्तुर परकोटा शैली आज से 4702 वर्ष पूर्व तक अस्तित्व में रही है। इसके बाद यह धीरे-धीरे विलुप्त हो गई। ओंकारेश्वर मंदिर का निर्माण इस शैली में होने के कारण इसके गर्भगृह के बाहर से 16 और भीतर से आठ कोने हैं। जिन्हें विभिन्न अट्टालिकाओं से आवेष्टित स्तंभ एक दूसरे से पृथक करते हैं। मंदिर पर जो भव्य प्रभाएं निर्मित हैं, उन्हें इस शैली के अनुसार अंगूर के पत्रों के सदृश मंदिर की मध्यांतक प्रभा पर उकेरा गया है। इस प्रभा के नीचे गवाक्ष रंध्रों से ऊपर की ओर जाती स्मलिक पट्टिकाएं उभरी हुई हैं, जिनके मध्य में अति भव्य मृणाल पिंड विराजमान है।
मंदिर की सभी स्मलिक पट्टिकाओं पर शांडिल्य श्रुतक उकेरे गए हैं, जिनसे होकर पट्टियां गर्भगृह के शिखर तक जाती हैं और एक विशाल चबूतरे के साथ मिलकर खत्म हो जाती हैं। गर्भ के मध्यांतक दीर्घप्रभा के नीचे की ओर प्रत्येक खंड पर कृतांतक पटल के साथ भूमि तक जाती भौमिक रेखाएं हैं। जबकि, गर्भगृह के शिखर पर चारों दिशाओं से छेनमल्लमत्रिकाएं उकेरी गई हैं।
कैसे पहुंचे
हवाई जहाज- निकटम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट हवाई अड्डा हैं | यहाँ से उखीमठ मंदिर रुद्रप्रयाग की दूरी लगभग 196 किलोमीटर हैं यहाँ से आप आसानी से टैक्सी से या कार से जा सकते हैं|
ट्रेन -निकटम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन हैं यहाँ से उखीमठ मंदिर रुद्रप्रयाग की दूरी लगभग 180 किलोमीटर हैं यहाँ से आप आसानी से टैक्सी से या कार से जा सकते हैं|
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