अचम्भित कर देने वाला एक चमत्कारिक और रहस्यमयी मंदिर जो भोले की नगरी उज्जैन में ही स्थित है

Tripoto
3rd Jun 2022
Photo of अचम्भित कर देने वाला एक चमत्कारिक और रहस्यमयी मंदिर जो भोले की नगरी उज्जैन में ही स्थित है by Sachin walia
Day 1

आपने भारत में ऐसे बहुत से मंदिरों के बारे में सुना होगा जो अपनी चमत्कारिक और महत्वता के कारण प्रसिद्ध और विख्यात हुए हैं।

आज हम आपको एक ऐसे ही रहस्यमयी और चमत्कारी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो अपने आप में प्राचीन काल से अलग ही पहचान बनाये हुए हैं।

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यह मंदिर भोले की उज्जैन नगरी के पास ही स्थित है। धर्म ग्रथों के अनुसार उज्जैन नगरी जीवन और मौत के चक्र को खत्म कर भक्तों को मोक्ष देती है। महाकाल की इस नगरी में एक सुप्रसिद्ध क्षिप्रा नदी है, जिसे मोक्षदायिनी क्षिप्रा भी कहा जाता है। शिव की इसी नगरी में बसा है एक ऐसा मंदिर जहां स्वयं शिव के अवतारी काल भैरव भक्तों को साक्षात दर्शन देते हैं। आप यहां आकर भक्तों की लंबी कतारों को देख मंदिर का महत्व समझ जाएगें।

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उज्जैन के भैरवगढ़ क्षेत्र में स्थापित इस मंदिर में शिव अपने भैरव स्वरूप में विराजते हैं। काल भैरव के इस मंदिर में मुख्य रूप से मदिरा का ही प्रसाद चढ़ाया जाता है। भक्तों के द्वारा चढ़ाए गए मदिरा को महंत एक प्लेट में उढ़ेल कर भगवान के मुख से लगा देते हैं और देखते ही देखते भक्तों की आंखों के सामने मदिरा को भैरोनाथ पी जाते हैं। इस चमत्कार को देखने के बाद भी विश्वास करना कठिन हो जाता है। क्योंकि मदिरा से भरी हुई प्लेट पलभर में खाली हो जाती है। और इसी चमत्कार को देखने के लिए भक्तों की लंबी लंबी कतारें लगना लाजमी ही है।

यह चमत्कार मैंने भी अपनी आँखों के सामने होते हुए देख रखा है कुछ देर विश्वास करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि पल भर में मदिरा का गायब हो जाना अचम्भा की ही बात है। इसलिए हमेशा से ही चमत्कार को नमस्कार वाक्य बोला जाता है।

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इस मंदिर के साथ ही बने दीपस्तंभ की भी अपना ही एक महत्व है जहां श्रद्धालुओं द्वारा दीपस्तंभ की इन दीपमालिकाओं को प्रज्जवलित करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भक्तों द्वारा शीघ्र विवाह के लिए भी दीपस्तंभ का पूजन किया जाता है। जिनकी भी मनोकामनाएं पूरी होती हैं वो दीपस्तंभ के दीप अवश्य प्रज्वलित करते हैं।

उज्जैन महाकाल की नगरी होने से भगवान काल भैरव को उज्जैन नगर का सेनापति भी कहा जाता है। यहां मराठा काल में महादजी सिंधिया ने युद्ध में विजय के लिए भगवान को अपनी पगड़ी अर्पित की थी। उन्होंने भगवान से युद्ध में अपनी जीत की प्रार्थना की थी और कहा था कि युद्ध में विजयी होने के बाद वे मंदिर का जीर्णोद्धार करेंगे।

कालभैरव की कृपा से महादजी सिंधिया युद्धों में विजय हासिल करते चले गए। इसके बाद उन्होंने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। तब से मराठा सरदारों की पगड़ी भगवान कालभैरव के शीश पर पहनाई जाती है। उसी पगड़ी को अभी तक विधिपूर्वक ढंग से काल भैरव जी के सर पर सजाया जाता आ रहा है।

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उज्जैन महाकाल मंदिर

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कालभैरव का चमत्कार जितना अचंभित करने वाला है उतनी ही उनके उज्जैन में बसने की कहानी भी है। वैसे तो यहां साल भर कई जगह से बहुत भीड़ में श्रद्धालु आते हैं लेकिन रविवार की पूजा का यहां विशेष महत्व होता है।

जिस प्रकार सोमवार का दिन महाकाल शिव का है उसी प्रकार रविवार का दिन काल भैरव जी का माना जाता है। बाबा काल भैरव के भक्तों के लिए उज्जैन का भैरो मंदिर किसी धाम से कम नहीं।

शहर से आठ किलोमीटर दूर कालभैरव के इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि अगर कोई उज्जैन आकर महाकाल के दर्शन करे और कालभैरव न आए तो उसे महाकाल के दर्शन का आधा ही लाभ मिलता है। इसलिए उज्जैन महाकाल दर्शन के बाद काल भैरव जी के दर्शन करना जरूरी माना गया है।

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