सभी नौकरीपेशा लोगों की कुछ शिकायतें होती हैं। वो नौकरी और काम के जंजालों में इतना उलझ कर रह जाते हैं कि उन्हें अपनी मनपसंद चीजें करने का समय नहीं मिलता है। कुछ दिनों पहले मैं एक दोस्त से बातें कर रही थी। वो मुझे अपनी उबाऊ बैंक की नौकरी के बारे में बता रही थी जबकि असल में वो आर्टिस्ट बनना चाहती है। वो मुझे बता ही रही थी कि मैंने उसे गोपाल कौशिक नाम की कहानी सुनाना शुरू कर दिया। गोपाल कौशिक पुराने मनाली में द लेजी डॉग कैफे के मालिक हैं और आप यकीन मानिए गोपाल की कहानी सुनकर मेरी दोस्त ने भी कुछ भी असम्भव नहीं है वाली फिलॉस्फी में विश्वास करना शुरू कर दिया है। खैर मैं तो इस साल आए वर्क फ्रॉम होम को शुक्रिया कहूंगी क्योंकि उसने आखिरकार फिर से पेंटिंग करना शुरू कर दिया है। क्या पता वो जल्द ही दुनिया ही सबसे मशहूर पेंटर भी बन जाए!
लेकिन आखिर ये गोपाल है कौन? और क्यों गोपाल की कहानी आप और मेरे जैसे क्रिएटिव लोगों के लिए प्रेरणा बन सकती है, जो अपने 9 से 5 वाली डेस्क जॉब के बीच फंसे हुए हैं? आइए जानते हैं।
गोपाल और उनकी कहानी
द लेजी डॉग लाउंज
सीधे और कम शब्दों में कहा जाए तो गोपाल कौशिक वो है जिसने बिना डरे सपने देखे और अपने उन सपनों को सच भी किया। लेकिन ये सपनों की दुनिया बसाने से पहले गोपाल ने भी बिल्कुल वही सब किया जिसकी एक भारतीय बच्चे से उम्मीद की जाती है- 22 तक पढ़ाई, 25 पर नौकरी और पैसे। गोपाल की जिंदगी भी एकदम ऐसी हो सकती थी। लेकिन जब गोपाल को एहसास हुआ तो उन्होंने बिना देर किए अपने सपनों के पीछे चलना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने आप पर भरोसा किया और सामने आए मौके को यूँ पकड़ा जिसकी वजह से उनके सभी सपने आज सच हो चुके हैं।
"मुझे याद है मेरा 30वाँ बर्थडे था जब मेरा ध्यान पहली बार अपने सिर पर दिखाई दे रहे सफेद बालों की तरफ गया। मुझे लगा अब तो कुछ नहीं हो सकता और जिंदगी जैसी चल रही है आगे भी वैसे ही चलती जाएगी। लेकिन तब मुझे एहसास हुआ कि मैं असलियत में अपनी जिंदगी के सबसे खूबसूरत सालों को ऐसे ही बर्बाद कर रहा हूँ।"
गोपाल ने अपने कैरियर के शुरुआती दिनों में कई टीवी शोज और चैनलों में एक प्रोड्यूसर के तौर पर काम किया। सभी लोगों की तरह उनके पास भी द लेजी डॉग लाउंज खोलने का कोई प्लान नहीं था और उन्हें ये कैफे मनाली में खोलना है इसके बारे में तो उन्होंने सोचा भी नहीं था। उन्होंने बस अपने दिल की सुनी और जिंदगी में आने वाले हर दिन और बदलावों को चुनौती जैसे लिया।
"एक दोपहर मुझे शम्स रज़ा नक्वी का फोन आया। शम्स और मैं साथ में काम करते थे। शम्स को अपने दोस्तों के साथ लेह जाने के लिए छुट्टी चाहिए थी। क्योंकि मैं पहले से बाकी टीम के साथ यूपी में बाइकिंग ट्रिप की वजह से छुट्टी पर था इसलिए शम्स को छुट्टी दे पाना मुश्किल था। लेकिन शम्स के इरादे एकदम पक्के थे। वो छुट्टी लेने के लिए अड़े हुए थे। उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि अगर मैंने उन्हें छुट्टी नहीं दी तो वो नौकरी छोड़ देंगे। शम्स बढ़िया टीममेट थे इसलिए मैं उन्हें नौकरी छोड़कर नहीं जाने देना चाहता था। तो मैंने आखिर उन्हें छुट्टी दे दी। शम्स के इस जज्बे से मुझे एहसास हुआ कि उनके लिए उनका पैशन कितना जरूरी है और वो अपने इस जुनून के लिए नौकरी तक छोड़ देने के लिए तैयार हो गए थे। मैं शम्स को आजतक उनके उस एक कदम के लिए धन्यवाद देता हूँ। अगर शम्स नहीं होते तो आज मैं अपने सपनों को जी नहीं पाता।"
30 साल का होना कुछ लोगों के लिए परेशानी की वजह बन सकता है। इतनी उम्र के बाद ज्यादातर लोग सोचते हैं कि अब जिंदगी में करने के लिए बहुत कम चीजें बची हैं। उनके लिए जिन्दगी उबाऊ और बोरियत भरी हो जाती है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके लिए बढ़ती उम्र कुछ नया करने के जुनून जैसी होती है। ऐसे लोग जिंदगी में हर तरह की चुनौतियों का सामना कर लेते हैं। गोपाल कौशिक ने भी एकदम ऐसा ही किया। पहले प्रोड्यूसर और अब बिजनेसमैन बन चुके गोपाल इन दोनों ही भूमिकाओं को बखूबी निभा रहे हैं। गोपाल की ये कहानी "खुल के जिंदगी जीने" का बिल्कुल सटीक उदाहरण है।
"मुझे सोशल मीडिया पर ज्यादा भरोसा नहीं है। मैं मेहनत और लगन से आगे बढ़ने में विश्वास रखता हूँ।"
गोपाल का ये कैफे आज घुमक्कड़ों, ब्लॉगर्स और मनाली आने वाले सभी लोगों के लिए स्वर्ग जैसा बन चुका है। अगर आप लाजवाब खाना और तरोताजा कर देने वाले ड्रिंक पीना चाहते हैं तो आपको इस कैफे में आना चाहिए।
द लेजी डॉग लाउंज के बारे में
गोपाल कौशिक इस 2008 में खुले 'द लेजी डॉग' कैफे के मालिक हैं। यकीन मानिए इस कैफे में वो सबकुछ है जिसकी आपको तलाश है। नदी के आकर्षक नजारों से लेकर लाइव म्यूजिक तक, स्वादिष्ट खाने से लेकर वाइन, बियर और कॉकटेल तक, इस कैफे में आपको जरूरत की हर चीज मिल जाएगी। गोपाल अपने इस सफर की कहानी शेयर करने में बहुत खुश थे। वो अपने टीवी प्रोड्यूसर की नौकरी से लेकर पहाड़ों में कैफे खोलने तक के सफर के बारे में बहुत गर्व से बताते हैं।
"मुझे याद है मैं एक शो बना रहा था। उस शो की कहानी गाड़ियों और बाइक के आस-पास थी। शो बनाने के लिए हमने 2100 किमी. लंबी रोड ट्रिप पर जाने का तय किया। क्रू में कुल 13 लोग थे। हमने 2 बाइक और 2 गाडियाँ उठाईं और दिल्ली से लेह की लंबी रोड ट्रिप पर निकल पड़े। ये सब सिर्फ इसलिए क्योंकि हम रॉयल एनफील्ड की नई बाइक, द मचिज्मो 500, को टेस्ट करना चाहते थे।"
गोपाल उनके क्रू के साथ उस समय मनाली में ही शो की शूटिंग कर रहे थे जिसकी वजह से उन्हें मनाली घूमने का अच्छा मौका मिल गया। "मुझे ऐसा लगा जैसे मनाली मेरे लिए बनाया गया है। एक ऐसी जगह जहाँ मैं आजाद रह सकता था और किसी भी समय पहाड़ों में घूम सकता था। मैं उस समय अपने आप को मनाली में रहता हुआ देख पा रहा था। लेकिन मैंने सोचा आखिर मैं मनाली में करूँगा क्या? उन दिनों मनाली में ना ज्यादा बार थे और ना ज्यादा लोग मनाली आते थे। एक दिन हम सब एक लाउंज बार में गए थे। ये बार मुख्य शहर से थोड़ा दूर था इसलिए मुझे सोचने के लिए काफी समय मिला। उसी शाम मैंने तय किया कि मुझे पुराने मनाली में पब खोलना है।"
गोपाल का एक दोस्त पहले से ही मनाली में एक जगह चलता था और गोपाल जानते थे कि ये वही जगह है जहाँ उन्हें द लेजी डॉग लाउंज खोलना है। इसके लिए उन्होंने अपने दोस्त के साथ पार्टनरशिप की जो कैफे के शुरुआती दिनों में आने वाली परेशानियों को खुशी-खुशी बाँटने के लिए तैयार हो गया। गोपाल और उनके दोस्त जानते थे कि कैफे में मुश्किलें आना तय है। ऐसा इसलिए क्योंकि उस समय मनाली घूमने के लिए बहुत कम लोग आते थे और स्थानीय लोगों ने भी उन्हें इस बारे में वॉर्न किया था।
कैफे में हुई मुश्किलें
कैफे के शुरुआती दिनों के बारे में पूछने पर गोपाल बताते हैं कि, "पहले साल जब उन्होंने कैफे खोला तब उनके पास केवल 3 महीनों का ही टूरिस्ट सीजन था। उन दिनों मनाली घूमने के लिए साल के 6 महीने सबसे बेस्ट हुआ करते थे। लेकिन जगह को ठीक-ठाक करने की वजह से हमें पहले ही 3 महीनों का नुकसान हो गया था। ये सफर आसान बिल्कुल नहीं था। शुरुआत में किचेन में काम करने के लिए हमारे पास सिर्फ तीन लोग थे। दोस्त और मेरे बीच में से कोई एक हर समय ड्रिंक्स बनाने के लिए बार में लगा रहता था।"
"कोई समस्या इतनी बड़ी नहीं होती है कि आप उसको हल ना कर सकें।"
गोपाल बताते हैं उन्हें सबसे बड़ी मुश्किल मनाली के स्थानीय लोगों के साथ हुई। वो बताते हैं शुरू में लोकल उनके कैफे की काबिलियत को समझ नहीं पाते थे। वो कहते थे कि ऐसा कैफे मनाली के लिए बहुत महंगा और फैंसी है इसलिए कैफे अच्छा नहीं चलेगा। कैफे में काम करने वाले एक स्टाफ की स्थानीय लोगों से लड़ाई भी हुई। लेकिन गोपाल ने कभी हार नहीं मानी और छोटे-मोटे मन मुटाव को हल करते हुए उन्होंने इस कैफे को सफल कर दिखाया।
इतने सालों में जीवन में आई चुनौतियों के बारे में सोचते हुए गोपाल बताते हैं कि, "मैं खुद को लकी मानता हूँ। ऐसा इसलिए क्योंकि जब भी कोई परेशानी आती है, मैं किसी भी तरह उस मुश्किल से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ ही लेता हूँ।" किसी भी बिजनेस को शुरू करने और सफल बनाने के लिए "कभी हार न मानना" एक तरह से मूलमंत्र है।
गोपाल बिजनेस करने वाले नौजवान लोगों को "उम्मीद, तैयारी और मजा" करने की बहुत सीधी सलाह देते हैं।
आज गोपाल का ये कैफे पुराने मनाली के तीन सबसे सफल और शानदार कैफों में से है। बहती हुई नदी के आकर्षक नजारों को देखते हुए खाना खाने का मजा आखिर किसको नहीं पसंद आएगा। कई सालों से रेस्त्रां बिजनेस में होने के बाद अब गोपाल नॉर्थ गोवा में "द लेजी डॉग" नाम से होटल खोलने वाले हैं।
अगर आप उन लोगों में से हैं जो पहाड़ों में अपना खुद का कैफे या बेकरी खोलना चाहते हैं तो गोपाल की गलतियों और कैफे चलाने के अनुभव से सीखने को ये सुनहरा मौका है। "माउंटेन कैफे खोलने के लिए अल्टीमेट गाइड | गोपाल कौशिक" नाम की 2.5 घंटे लंबी वर्कशॉप्स में हिस्सा लें। वर्कशॉप के बारे में बताते हुए गोपाल कहते हैं, "मैं वर्कशॉप में कुल चार मंत्रों पर बात करूँगा- क्या, क्यों, कहाँ, कब और कैसे। ये वर्कशॉप हर उस व्यक्ति के लिए है जो पहाड़ों में कैफे खोलने की चाहत रखता है। इस वर्कशॉप के जरिए आप कैफे खोलने से लेकर फाइनेंस और बाकी सभी जरूरतों के बारे में जान सकते हैं।"
आपको गोपाल कौशिक का सफर कैसा लगा? हमें कॉमेंट बॉक्स में बताएं।
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