भारत का आख़िरी गाँव तुरतुक, कैसी है भारत के आख़िरी छोर की दुनिया

Tripoto
Photo of भारत का आख़िरी गाँव तुरतुक, कैसी है भारत के आख़िरी छोर की दुनिया by Rishabh Dev

अगर आप घूमने-फिरने के शौक़ीन हैं तो भारत में ऐसी कई जगहें हैं जो आपको हैरान कर देगी। लद्दाख भारत की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है। हर कोई एक बार लद्दाख की यात्रा ज़रूर करना चाहता है। लद्दाख में एक ऐसी जगह है जो पहले पाकिस्तान का हिस्सा हुआ करती थी लेकिन अब भारत में है। पहाड़ों से घिरी ऐसी ही शानदार और खूबसूरत जगह है, तुरतुक।

Photo of भारत का आख़िरी गाँव तुरतुक, कैसी है भारत के आख़िरी छोर की दुनिया by Rishabh Dev

लद्दाख में तुरतुक भारत का आख़िरी गाँव है। लद्दाख के आख़िरी छोर पर बसा ये गांव अपनी सभ्यता और संस्कृति के लिए जाना जाता है। तुरतुक में बाल्टी संस्कृति के लोग रहते हैं। जिनकी भाषा और संस्कृति अलग है। 1947 में तुरतुक समेत चार गांव थाँग, त्याक्षी और चुलुंका पर पाकिस्तान ने क़ब्ज़ा कर लिया था। जब 1971 का युद्ध हुआ तो भारत ने तुरतुक समेत चारों गाँवों पर क़ब्ज़ा कर लिया। तब से ये जगह भारत का हिस्सा है। पहले पर्यटकों के लिए यहां आना मना था लेकिन 2012 से इस जगह को सैलानियों के लिए खोल दिया गया है।

कैसे पहुँचे?

तुरतुक लेह शहर से लगभग 205 किमी. की दूरी पर स्थित है। तुरतुक के लिए लेह से कोई डायरेक्ट बस नहीं चलती है। लेह से डायरेक्ट तुरतुक जाने के लिए आप शेयर टैक्सी ले सकते हैं। हर रोज़ लेह से तुरतुक के लिए शेयर टैक्सी चलती है। इसके अलावा आप बस से हुंडर तक जा सकते हैं। हुंडर से तुरतुक 85 किमी. की दूरी पर है। हुंडर से तुरतुक आप लिफ़्ट लेकर, टैक्सी बुक करके या शेयर टैक्सी से पहुँच सकते हैं।

क्या देखें?

तुरतुक में वैसे तो कोई पर्यटन स्थल नहीं है लेकिन ये जगह अपने प्राकृतिक सौंदर्य और वातावरण के लिए जाना जाता है। यहाँ पर कुछ जगहें हैं जिनको आपको ज़रूर देखना चाहिए।

1. मोनेस्ट्री

Photo of भारत का आख़िरी गाँव तुरतुक, कैसी है भारत के आख़िरी छोर की दुनिया by Rishabh Dev

तुरतुक जैसी छोटी जगह पर एक छोटी-सी मोनेस्ट्री भी है। ये बौद्ध मठ तुरतुक गाँव से थोड़ी दूर एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। इस गोंपा तक जाने के लिए आपको छोटी-सी हाइक करने पड़ेगी। लगभग आधा घंटा चलने के बाद गोंपा पहुँचेंगे। इस जगह से आपको तुरतुक का बेहद सुंदर नजारा देखने को मिलेगा। यहाँ से हरा-भरा तुरतुक देखने को मिलता है। ये मोनेस्ट्री बहुत छोटी है, आप कुछ ही मिनटों में इसको देख लेंगे।

2. बार्डर

तुरतुक से थाँग गाँव की दूरी लगभग 6 किमी. है। तुरतुक को सभी लोग भारत का आख़िरी गाँव कहते हैं लेकिन असल में भारत के इस छोर पर थाँग आख़िरी गाँव है। यहाँ पर आपको भारत और पाकिस्तान के बंकर देखने को मिलेंगे। इसके अलावा दूरबीन से आप पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को देख सकते हैं। थाँग वो गाँव है जो 1971 के पहले पाकिस्तान का हिस्सा था लेकिन अब भारत का हिस्सा है। यहाँ पर आप स्थानीय लोगों से एप्रिकोट को ले सकते हैं।

3. बाल्टी संग्रहालय

तुरतुक गाँव में एक हेरिटेज हाउस और बाल्टी संग्रहालय है। इस संग्रहालय में बाल्टी लोगों का रहन-सहन, वेशभूषा और खाने के बर्तन समेत कई शानदार चीजें रखी हुईं है। बाल्टी संग्रहालय में आप कोल्ड स्टोरेज को देख सकते हैं। जहां लोग अपने सामान को रखते थे। एक प्रकार से ये लोगों के लिए फ्रिज का काम करता है। बाल्टी लोगों का घर कैसा होता है? आप इस संग्रहालय से समझ सकते हैं।

4. गाँव घूमें

कहते हैं कि अगर आपको किसी जगह को जानना है तो उस जगह पर खूब पैदल चलें। वो जगह आपको और आप उस जगह को समझने लगते हैं। तुरतुक एक छोटा-सा गाँव है। आप इस गाँव को पैदल-पैदल घूम सकते हैं। स्थानीय लोगों से बात कर सकते हैं। यक़ीन मानिए यहाँ के लोग बेहद प्यारे हैं। वो आपको घर बुलाएँगे और स्थानीय खान ज़रूर खिलाएँगे। स्थानीय लोगों से बात करने पर आप इस जगह को और अच्छे से समझ पाएँगे।

कहाँ ठहरें?

तुरतुक लद्दाख की सबसे लोकप्रिय जगहों में से एक है। यहाँ पर आपको ठहरने में कोई दिक़्क़त नहीं होगी। तुरतुक में आपको कई सारे होटल और होमस्टे मिल जाएँगे। आप अपने बजट के हिसाब से किसी भी होटल में ठहर सकते हैं।

कब जाएँ?

तुरतुक भारत की सबसे सुंदर जगहों में से एक है। तुरतुक में सर्दियों में बहुत ज़्यादा ठंड पड़ती है। यहाँ पर जमकर बर्फ़बारी होती है। उस दौरान यहाँ घूमना थोड़ा मुश्किल होता है। तुरतुक आने के लिए सबसे बढ़िया समय जून से सितंबर तक होता है। उस दौरान आप इस जगह को अच्छे से घूम पाएँगे और मौसम भी एकदम बढ़िया होता है। आपको एक बार तुरतुक ज़रूर आना चाहिए।

क्या आपने लद्दाख के तुरतुक की यात्रा की है? अपने अनुभव को शेयर करने के लिए यहाँ क्लिक करें।

बांग्ला और गुजराती में सफ़रनामे पढ़ने और साझा करने के लिए Tripoto বাংলা और Tripoto ગુજરાતી फॉलो करें।

रोज़ाना टेलीग्राम पर यात्रा की प्रेरणा के लिए यहाँ क्लिक करें।

Further Reads