लद्दाख का वह गाँव जहाँ रातोरात बदल गयी लोगो की जिंदगी ,अब बन रहा पर्यटकों का आकर्षण केंद्र 

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Photo of लद्दाख का वह गाँव जहाँ रातोरात बदल गयी लोगो की जिंदगी ,अब बन रहा पर्यटकों का आकर्षण केंद्र by Rishabh Bharawa

आज हम बात कर रहे हैं लद्दाख की नुब्रा वैली से होकर जाता ,भारत के उत्तरी भाग के सबसे अंतिम गाँव 'थांग' की। लद्दाख जाने वाले पर्यटक नुब्रा वैली और वह से पेंगोंग झील (3 इडियट फिल्म वाली ) जरूर जाते हैं। नुब्रा वेली तो इतनी खूबसूरत जगह हैं कि उसके बारे में कभी अलग से लिखना पड़ेगा। फ़िलहाल अभी हम बात कर रहे हैं नुब्रा वेली के हुन्डर गाँव से करीब 80 -90 किमी दूर स्थित पाकिस्तान बॉर्डर पर बसे तुरतुक एवं थांग गाँव की।

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आज़ादी के बाद कई साल तक ये गाँव रहे पाकिस्तान के कब्जे में :

तुरतुक एवं थांग भारत के सबसे उत्तरी भाग के सबसे आखिरी गाँव के नाम से जाने जाते हैं। ये गाँव आकर्षण का केंद्र इसलिए बने हुए हैं क्योकि 1947 के बाद इन दोनों गाँव के साथ साथ कुछ और भी सीमावर्ती गाँव पाकिस्तान (POK) के कब्जे में थे। 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद रातोरात ये कुछ गाँव भारत ने फिर से अपने कण्ट्रोल में ले लिए और यह काम रातोरात इतना अचानक हुआ कि यहाँ के लोगो की जिंदगी ही बदल गयी। बदली इस तरह कि कई परिवार इसमें LOC की वजह से बंट गए। कई परिवारों के सदस्य पाकिस्तान वाली तरफ ही रह गए और कई भारत की तरफ। परिवार भी तरह बिछड़े कि पति एक तरफ तो पत्नी दूसरी तरफ, एक भाई इस तरफ तो दूसरा भाई दूसरी तरफ। बिछड़ने की ऐसी कई कहानिया आप यहाँ के लोगो से सुन सकते हैं। आपस में केवल 2 -3 किमी की दूरी होने के बावजूद भी इन्हे आपस में मिलने के लिए वीजा लेके जाना पड़ता हैं।

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अगस्त 2021 में ही पर्यटकों के लिए खोला गया :

जब आप नुब्रा से इन गाँवों की तरफ आते हैं तो सबसे पहले तुरतुक गाँव आता हैं ,वहा से करीब 10 -12 किमी दूर थांग पड़ता हैं। दोनो के बीच में त्याक्शी में आर्मी चेकपोस्ट पर आपको innerline परमिट एवं आपका id कॉर्ड चेक करवाना होता हैं। अगर सब कुछ सही रहा तो ही आपको थांग जाने की अनुमति दी जाती हैं। हम लोग सितम्बर 2021 में बुलेट पर इधर गए थे। नुब्रा से थांग तक का रास्ता काफी जगह अच्छा हैं तो कई जगह ऑफरोड भी हैं। रास्ते में श्योक नदी आपके साथ साथ चलती रहती हैं।अगर आप इधर गए हो यहाँ के रास्तो की खूबसूरती से तो आप वाकिफ हो ही। नुब्रा वेली में बर्फीले पहाड़ो के साथ साथ रेगिस्तान भी हैं तो कई जगह ऑफरोड पर आप रेत भी मिलती हैं जिसपर कई बाइक्स फिसल जाती हैं।

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तुरतुक को 2010 में पर्यटकों के लिए खोला गए था ,यहाँ से त्याक्शी चेकपोस्ट तक ही जा सकते थे। इसीलिए पहले पर्यटक तुरतुक को ही भारत का आखिरी गाँव कहते थे।लेकिन 14 अगस्त 2021 से थांग गाँव को भी पर्यटकों के लिए खोल दिया गया , जो कि तुरतुक से 10 से 12 किमी दूर ,बॉर्डर पर स्थित हैं।इससे पहले आपको थांग गाँव के अंदर नहीं जाने दिया जाता था।

यहाँ आकर क्या घूमे ,क्या ध्यान रखे :

तुरतुक एवं थांग पूर्ण रूप से मुस्लिम गाँव हैं।ये लोग किसी बाल्टी समुदाय (गिलगिट -बाल्टिस्तान) से ताल्लुक रखते हैं।शुक्रवार को नमाज पढ़े जाने की वजह से यहाँ खाने पीने के रेस्टोरेंट अधिकतर समय बंद मिलते हैं। रेस्टोरेंट्स भी यहाँ गिनती के 2 -4 ही होंगे, वो भी तुरतुक एवं त्याक्शी चेकपोस्ट पर ही। लेकिन नुब्रा से यहाँ तक आते हुए रास्ते में एक आर्मी कैंटीन मिलता हैं ,जहाँ आप स्वादिष्ट गर्मागर्म समोसे एवं जलेबीयो का आनंद उठा सकते हैं।

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तुरतुक में आप पेटपूजा करके ,त्याक्शी चेकपोस्ट पर आईडी चेक करवा कर सबसे पहले इसी पोस्ट से कुछ ही किमी दूर उस स्कूल को विज़िट कर सकते हैं जो 1971 से पहले पाकिस्तान ने यहाँ बनवाई थी। इसके लिए रास्ता वहा के लोकल लोग बता देंगे। हाँ ,लोकल लोगो से याद आया ,जैसे ही आप तुरतुक पहुंचने वाले होंगे ,रास्ते में कई जगह छोटे छोटे यहाँ के बच्चे आपका रास्ता अलग अलग तरीके से रोकेंगे -जैसे बीच रास्ते में डांस करके या छोटी सी रस्सी को रोड के दोनों तरफ पकड़ के खड़े होके। फिर वो आपके पास आकर फोटो खिचवायंगे ,और चॉकलेट्स मांगेंगे ,अगर आपके पास हो तो। मैं अपने साथ काफी चॉकलेट्स लेके चलता हु तो हमने उन बच्चो को वो सब बाँट दी। आप काफी यात्रियों को उन्हें चॉकलेट्स ,डॉयफ्रुइट्स और पैसे देते हुए भी पाएंगे।

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स्कूल घूमने के बाद अब आप जा सकते हैं थांग की तरफ। श्योक नदी के ऊपर बने कुछ पुलिया पार कर आप पहुंचेंगे ऊंचाई पर स्थित एक छोटे से गाँव में जहाँ पार्किंग में काफी गाड़िया खड़ी मिली रहेगी। पार्किंग के सामने लोकल लोगो ने एक छोटा सा म्यूज़ियम का बोर्ड लगाया हुआ हैं और एक मकान के अंदर ही बगीचा बनाया हैं ,छोटे से पिंजरे में कुछ खरगोश वगैरह रख कर उसे चिड़ियाघर का नाम दिया हैं,इसके ऊपर के फ्लोर पर कुछ लोकल जूस भी आप पी सकते हैं,छोटा सा फिश पोंड भी आप देख सकते हैं। इसे आप छोड़ भी सकते हैं ,इसी म्यूज़ियम के एकदम सटके एक पगडण्डी से आप कुछ मकानों के बीच से होते हुए पहुंचेंगे भारत -पाक बॉर्डर व्यू पॉइंट पर। यह गाँव हमे काफी हराभरा मिला था। सभी घरो की छतो पर खुबानी सुखाई हुई थी। कुछ मकान के बाहर लोग एप्पल ,खुबानी एवं पैक्ड जूस बेच रहे थे। बॉर्डर व्यू पॉइंट इन्ही मकानों से थोड़ा ऊपर एक खुला मैदान हैं ,जहाँ से आप आसानी से इंडिया -पाक बॉर्डर देख सकते हैं ,दूसरी ओर POK एवं वहा की सेना भी दिखाई देती हैं।

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एक छोटा सा अमाउंट खर्च कर आप यहाँ दूरबीन से बॉर्डर के उस ओर साफ़ देख सकते हैं ,बॉर्डर की फेन्सिंग,उधर की आर्मी ,अपने इधर के कुछ बंकर्स आदि आपको दिखाया जाता है। यहाँ के लोकल्स से विभाजन की कहानी पूछ सकते हैं वो आपको बताएंगे कि किस तरह 1971 के बाद उनकी जिंदगी बदल गयी। उस बोर्ड के साथ फोटो ले सकते हैं जिसपे लिखा हैं -थांग: भारत का अंतिम गाँव। इसी जगह एक छोटा सा शाकाहारी अस्थायी रेस्टोरेंट भी बना हुआ हैं जहाँ आप गरमगरम चाय ,कॉफी ,मैगी के साथ बिस्किट्स ,लोकल जूस आदि का आनंद ले सकते हैं।इन गाँवों में बस आपको एक चीज का विशेष ध्यान रखना हैं कि ऐसी कोई गतिविधी ना करे जिससे आर्मी वाले आप पर कार्यवाही कर दे।

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जल्द ही नुब्रा घाटी के रेगिस्तान एवं बर्फीले ग्लेशियर्स पर भी पोस्ट आएगी।

धन्यवाद

-ऋषभ भरावा (लेखक ,पुस्तक :चलो चले कैलाश )

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