'तुम्हारी पसंदीदा घूमने की जगह कौन-सी है?' ये सवाल मुझसे ना जाने कितनी बार पूछा गया है। लेकिन इस सवाल का बार-बार सामना करने के बावजूद, मेरे पास कभी कोई ठोस जवाब नहीं होता था। मैं पिछले हफ्ते ही अपनी दोस्त के साथ इस बात पर चर्चा कर रही थी और जैसे ही मैंने उससे यही सवाल पूछा तो वो उछल कर बोली 'गुवाहाटी, मेरी नानी का घर'
और तब मुझे अहसास हुआ, हम बचपन में जिन जगहों पर घूमने जानते थे शायद उन्ही जगहों ने हमारे दिलो-दिमाग पर सबसे गहरी छाप छोड़ी है। जब भी हम अच्छे, सादगी और खुशहाली भरे वक्त के बारे में सोचते हैं तो यहीं यादें हमारे आँखों के सामने आकर हमारे चेहरे पर एक मुस्कुराहट ले आती है। तो मैंने सोचा क्यों ना बाकी लोगों की भी इस पर राय ली जाए और उनके बचपन की पसंदीदा घूमने की जगह के बारे में जाना जाए। उनके दिल छू लेने वाले जवाब जानकर मुझे तो मेरा बचपन याद आ गया। तो जब आप भी गर्मियों की छुट्टियों पर जाने की तैयारी कर रहे हैं, क्यों ना आप भी यादों की इस बारात में शामिल हो जाएँ!
नैनीताल, परियों की कहानी सा सुंदर: सौम्या भटनागर
"जहाँ मेरे ज़्यादातर दोस्त हर गर्मियों की छुट्टियों में नई जगहों पर घूमने जाते थे, मैं हर साल ये छुट्टियाँ अपने दादा के साथ नैनीताल में बिताती थी। मेरे पापा आर्मी में कार करते हैं, इसलिए हमें अलग-अलग शहरों में रहना पड़ता है। गर्मियों की छुट्टियाँ ही वो वक्त होता था जब हम दादा-दादी के साथ वक्त बिता सकते थे। इसलिए ही नैनीताल मेरे बचपन की पसंदीदा जगह बन गया। हर दोपहर, हम फलों की एक टोकरी और एक किताब पैक करते थे, फिर नैनी झील के पास जाकर पिकनिक करते, जहाँ मेरे दादा-दादी मुझे किताब पढ़ के सुनाते। इन छुट्टियाँ में मुझे ऐसा लगता था जैसे मैं किसी परियों की कहानी में हुँ। कभी-कभी, हम टिफिन टॉप की चढ़ाई करते, बर्फ से ढके पहाड़ों को देखते, या मॉल रोड पर सैर लगाते, जहाँ वो मुझे 50 के दशक की नैनीताल और यहाँ रहन सहन की कहानीयाँ सुनाते थे। मैंने अपने दादा की नज़रों से इस शहर को देखा है और ये जगह हमेशा मेरे दिल में रहेगी।"
हैदराबाद में आम का पहला स्वाद: नीति चोपड़ा
"हर भारतीय शहर की तरह, हैदराबाद में भी एक ऐसा नशा है जो आपके इसका दीवाना बना देता है। इस शहर से मेरा प्यार तब शुरू हुआ जब मैं गर्मियों में अपनी नानी के घर जाया करती थी। हमारी इन छुट्टियों की शुरुआत होती थी मेरे नाना-नानी के मुस्कुराते चेहरों के साथ, जो रेलवे स्टेशन पर हमारा इंतज़ार कर रहे होते थे। मेरी शुरुआती यादें उनके घर में इधर-उधर दौड़ने और खेलने की हैं, जहाँ मुझे बंगनापल्ली आम का पहला स्वाद भी मिला और तभी से मुझे इससे प्यार हो गया। शाम को खुले आंगन में चाय पीना, वहाँ गीली मिट्टी की खुशबू, चारों तरफ तेलगु में कुछ बाते करते लोग और हैदराबादियों के मज़ाक करने के अनोखे तरीके ने मुझे इस शहर को समझना सिखाया। और ये कोई कहने की बात नहीं है कि मुझे हैदराबादी बिरयानी से प्यार भी यहीं हुआ था।''
नड्डी, स्वर्ग की तस्वीर: समर्थ अरोड़ा
"नड्डी उन लोगों के बीच काफी पहचाना जाता है जो अक्सर धर्मशाला जाते हैं। हालांकि अब इस जगह की तस्वीर मेरे बचपन की यादों से काफी बदल गई है। यहाँ पर्यटन बढ़ने से पहले, नड्डी जैसे स्वर्ग की ही तस्वीर थी। तेज़ मोड़ लेती सड़के, घाटियों के बीच से गुज़रते खुले हरे मैदान और वहाँ मौजूद मैगी का एकलौता स्टैंड जहाँ मैंने बेहतरीन मैगी खाई थी। बचपन में मैंने इन रास्तों को देखकर ना जाने कितनी कहानियाँ बुनी थी और एक बार अपने परिवार के साथ मैं इस सड़क के अंत तक जा पहुँचा। ये सड़क एक स्कूल पर जाकर रूकती थी और जब भी मैं घरवालों के साथ नड्डी जाता तो उनसे कहता कि मुझे भी उसी स्कूल में भेजें। अब तो मैं बस उस जगह को उसी रूप में देखना चाहता हुँ जैसा ये मेरे बचपन में हुआ करती थी।"
मुंबई, गर्मियों की छुट्टियों की एक परंपरा: सिद्दार्थ सुजान
"बचपन में, मेरे मम्मी-पापा मुझे मेरी मौसी से मिलने के लिए हर गर्मियों में मुंबई ले जाते थे। मैं अपने भाइयों के साथ खेलने और घर के आस-पास मज़े कर अपने दिन बिताता था। हर शाम, मेरी मौसी मुझे ₹6 देती थी। मैं बाहर जाता था, टहलता और अपने लिए एक वड़ा पाव खरीद लेता। धीरे-धीरे ये यात्रा मेरे लिए एक रस्म बन गई जो हर साल निभाई जाती थी। भले ही मुंबई में मेरा कोई दोस्त नहीं था लेकिन ये छुट्टियों के दिन ही थे जिसकी वजह से मुझे इस शहर से प्यार हो गया।"
वैष्णो देवी, एक ख्वाहिश जो बुरा सपना बन गई: रोहित कुमार
"बचपन में मैं हमेशा वैष्णोदेवी जाना चाहता था। मेरे सभी दोस्त गर्मियों की छुट्टियों में घूमने जाते और अपनी मज़ेदार कहानियाँ आकर सुनाते। हर साल, जैसे ही गर्मियों की शुरुआत होती है, मैं इस उम्मीद में इंतजार करता था कि घरवाले मुझे वैष्णों देवी लेकर जाएँ। लेकिन हर बार वो यही कहते थे, "बेटा, अभी माता का बुलावा नहीं आया है "। मैंने अपने बचपन के दस साल वैष्णो देवी जाने के इंतजार में बिताए। मुझे वैष्णो देवी जाने का इतना मन था कि मेरे दोस्तों की मज़ेदार छुट्टियों की कहानी मुझे इसके सामने फीकी लगती थी। आखिरकार, मुझे पिछले सप्ताहांत पहली बार वैष्णो देवी जाने का मौका मिला।
और मैंने कभी ज़िंदगी में भी नहीं सोचा था कि मेरे बचपन का सपना इतनी बुरी तरह टूटेगा। मेरी वैष्णो देवी यात्रा बेहद बेकार थी। इतने सारे लोग थे कि चलने के लिए कोई जगह नहीं थी। रास्ते में घोड़े और खच्चर की वजह से हर तरफ गंदगी फैली हुई थी और जहाँ देखो बंदर ही बंदर। साथ ही हमें एक दिन में ही 20 कि.मी. तक ट्रेकिंग करनी थी। तो अब मेरे पास बचपन की कोई पसंदीद जगह नहीं है।"
मसूरी में हुआ चॉकलेट शेक से प्यार: महिमा अग्रवाल
"बचपन में कई गर्मियों की छुट्टियाँ मैंने मसूरी में बिताई हैं, जब केम्प्टी फॉल बहुत मशहूर हुआ करता था और मॉल रोड पर सैलानियों की भीड़ नहीं होती थी। मेरे दिल में कलसुंग के चिकी चॉकलेट कैफे के नूडल्स खाने और एक बेहद लज़ीज़ चॉकलेट शेक पीने की याद और स्वाद दोनों ही बिल्कुल ताज़ा हैं।
तब से ज़िंदगी काफी बदल गई है, लेकिन आज भी जब मैं चॉकलेट शेक ऑर्डर करती हूँ या परिवार के साथ छुट्टियों के बारे में सोचती हूँ, तो मैं मसूरी की उन छुट्टियों की यादों में खो जाती हुँ।"
दिल्ली में मिलता पहाड़ी ज़िंदगी से ब्रेक: अंशुल शर्मा
"हैरानी की बात है मगर बचपन में मेरी पसंदीदा जगह दिल्ली थी। दरअसल मैं पहाड़ों में रहता हुँ। मेरे बचपन का ज्यादातर हिस्सा पहाड़ों की शांत और ठंडी हवाओं के बीच गुज़रा है। लेकिन एक वक्त के बाद मुझे ये हरियाली कुछ बोरिंग लगने लगी- वही पेड़, वही पहाड़ और वही अचानक होती भारी बारिश। मैं बता नहीं सकता कि ऐसी बारिश की वजह से कितनी बार हमें कहीं घूमने जाने का प्लान कैंसल करना पड़ता था। इन्हीं दिनों में मैं धूप सेकती सड़कों को तरसता था। रंगीन इमारतें और एक हलचल भरा शहर, ये सब छुट्टियों में ही मुमकिन था जब मैं दिल्ली में अपनी चाची से मिलने जाता था। स्ट्रीट फूड की खुशबू, कूलर की ठंडी हवा, और यहाँ हरदम भागती ज़िंदगी में मुझे अपनी पहाड़ी ज़िंदगी से एक छोटा सा ब्रेक मिलता था और मुझे इसमें बहुत मज़ा आता था।"
तो बचपन में बिताई छुट्टियों में आपकी पसंदीदा जगह कौन सी है? हमें कॉमेंट में लिखकर बताएँ और अपने अनुभव की कहानी यहाँ लिखकर Tripoto समुदाय के साथ बाँटें।
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