उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के मध्य में देवलसारी एक शांत गांव है। मसूरी से लगभग 50 किमी शहर की हलचल भरी दुनिया से दूर यह जगह स्थित है। यह कम जाना-पहचाना रत्न प्रकृति की गोद में बसा है, जो प्राकृतिक सुंदरता, सांस्कृतिक समृद्धि और रोमांच का एक आदर्श मिश्रण प्रदान करता है। चाहे आप प्रकृति प्रेमी हों, एक उत्साही ट्रेकिंग करने वाले हों या एकांत की तलाश में हों, देवलसारी एक अविस्मरणीय अनुभव का वादा करता है। देवदार के घने जंगल के बीच देवलसारी में इस घाटी का एक प्रसिद्ध कोनेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि, यह मंदिर 1600 के दशक में बनाया गया था।
देवलसारी मंदिर का इतिहास
इस मंदिर के बनने की रोचक कहानी इस घाटी में सुनी जा सकती है। किंवदंती के अनुसार यहां के खेतों की रखवाली कर रहे एक ग्रामीण के खेत में एक साधु पहुंचा। साधु ने उस चौकीदार से कुटिया बनाने के लिए थोड़ी सी जगह मांगी। लेकिन फसल लगी होने के कारण चौकीदार ने साधू को जगह उपलब्ध कराने से मना कर दिया। इस पर साधु क्रोधित होकर वहां से चला गया। सुबह जब चौकीदार खेत में पहुंचा तो लहलहाती फसल की जगह देवदार का जंगल था। उन्होंने जंगल के बीचों बीच एक शिवलिंग भी देखा। ग्रामीणों ने साधु को शिव का रूप मानकर यहां मंदिर बनाने का प्रयास किया, लेकिन मंदिर नहीं बन पाया। कुछ समय बाद एक ग्रामीण ने रोज सुबह शाम अपनी गाय को शिवलिंग पर दूध देते हुए देखा। इस पर उसने कुल्हाड़ी से शिवलिंग पर प्रहार किया। इस चोट से कुल्हाड़ी टूट गई और उस गांव वाले के सिर में जा धंसी जिससे उसकी मृत्यु हो गई। गांव वाले समझ गए कि भोलेनाथ नाराज हो गए हैं। कुछ समय बाद एक ग्रामीण को सपने में उसी साधु के रूप में शिव भागवान ने दर्शन दिए। महादेव ने उसे देवदार के बीच एक मंदिर बनाने और डोली निकालने को कहा। तब गांव वालों ने वहां लकड़ी का एक मंदिर बनाया। इस मंदिर को कोनेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।
गायब हो जाता है चढाया हुआ जल
इस मंदिर में कुदरत का ऐसा अनोखा चमत्कार देखने को मिलता है। इस मंदिर में जलेरी नहीं होने से इस मंदिर की आधी नहीं, बल्कि पूरी परिक्रमा की जाती है। इतना ही नहीं इस शिवालय की अनूठी परंपराएं और कई रहस्य श्रद्धालुओं को हैरत में डाल देती है। मंदिर के शिवलिंग पर चढ़ाए जाने वाले हजारों लीटर जल की निकासी कहां होती है? इस रहस्य से आज तक पर्दा नहीं उठा पाया है।
कैसे पहुंचें देवलसारी?
देवलसारी मसूरी के रास्ते आसानी से पहुँचा जा सकता है, जो उत्तराखंड और उसके बाहर के प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। मसूरी से, आप टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या निकटतम शहर थत्यूड के लिए स्थानीय बस ले सकते हैं। थत्यूड से देवलसारी तक की यात्रा का अंतिम चरण एक छोटी ड्राइव या सुंदर परिदृश्य के बीच पैदल यात्रा करके पूरा किया जा सकता है।
कब जाएं?
देवलसारी जाने का सबसे अच्छा समय वसंत (मार्च से जून) और शरद ऋतु (सितंबर से नवंबर) के मौसम के दौरान होता है। इन अवधियों के दौरान, मौसम सुहावना होता है, और प्राकृतिक सुंदरता अपने चरम पर होती है। ग्रीष्मकाल मैदानी इलाकों की गर्मी से राहत प्रदान करता है। जुलाई से अगस्त तक मानसून का मौसम हरियाली लेकर आता है, लेकिन भारी बारिश के कारण यात्रा चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
आवास: देवलसारी में आवास विकल्प सीमित लेकिन आकर्षक हैं, कुछ गेस्टहाउस और होमस्टे हैं जो बुनियादी लेकिन आरामदायक सुविधाएँ प्रदान करते हैं। होमस्टे में रहना सबसे अच्छा विकल्प हैं, क्योंकि यह स्थानीय जीवनशैली और आतिथ्य का प्रत्यक्ष अनुभव करने का अवसर प्रदान करता है।
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