25 मई 2024 को सुबह 7.30 बजे हम अपनी गाड़ी में बैठकर फैमिली के साथ हिमाचल प्रदेश के टूर के लिए निकल पड़े| इस फैमिली टूर में मैं, मम्मी पापा मेरी वाईफ और मेरी बेटी साथ में थी| अपने घर बाघा पुराना से चलने के बाद हम मोगा, जगराओ, लुधियाना होते हुए दोराहा नामक जगह पर पहुँच गए| दोराहा से मेरे मामा जी हमारे साथ मिल गए| दोराहा से हमारी गाड़ी नहर के साथ बनी हुई सड़क पर चल रही थी| यह नहर रोपड़ से सतलुज नदी से निकलती है| दोराहा से रोपड़ तक का 60 किलोमीटर तक का रास्ता नहर के साथ बनी हुई सड़क पर चलता है| नहर के किनारे पर बने हुए एक ढाबे पर हमने सुबह का ब्रेकफास्ट किया| उसके बाद हम रोपड़ पहुँच जाते हैं| रोपड़ शहर चंडीगढ़- मनाली राष्ट्रीय मार्ग पर बसा हुआ पंजाब का जिला मुख्यालय है| रोपड़ बहुत प्राचीन शहर है हडप्पा सभ्यता से भी इस शहर का नाम जुड़ता है| खैर आज हमने रोपड़ को नहीं घूमना था | रोपड़ से आगे चलकर हम भरत गढ़ होते हुए कीरतपुर साहिब की ओर चल पड़े| रोपड़ से कीरतपुर साहिब के रोड़ पर गाड़ी चलाने का अपना ही मजा है| इस रास्ते पर आपको छोटे छोटे पहाड़ दिखाई देते हैं| चलते चलते हम कीरतपुर साहिब पहुँच जाते हैं| यहाँ पर एक छोटी सी पहाड़ी पर गुरुद्वारा बाबा गुरदिता जी बना हुआ है| पहाड़ पर बनी हुई सड़क पर चलते हुए हम गुरुद्वारा साहिब पहुँच जाते हैं| पार्किंग में गाड़ी लगाकर हम गुरुद्वारा साहिब में माथा टेकने के लिए जाते हैं| माथा टेकने के बाद प्रशाद लेने के बाद हम कुछ देर के लिए वहाँ पर आराम करते हैं| बाबा गुरदिता जी छठे गुरु हरगोबिन्द जी महाराज के पुत्र थे| सिख धर्म में बाबा गुरदिता जी का नाम बहुत आदर से लिया जाता है| यहाँ से चलने के बाद हम दूसरी पहाड़ी पर बने हुए बाबा बुढ़न शाह की दरगाह पर माथा टेकने जाते हैं| बाबा बुढ़न शाह जी की मुलाकात गुरु नानक देव जी से इसी जगह पर हुई थी| घड़ी पर 11 बज रहे थे तब हम कीरतपुर साहिब से आगे हिमाचल प्रदेश की ओर चल पड़े|
कीरतपुर साहिब से हम 11 बजे दोपहर को चले थे| अब हम नये बने चंडीगढ़- मनाली हाईवे पर थे जो फोर लेन है| पहाड़ पर भी गाड़ी 60-70 की स्पीड से चल रही थी| कीरतपुर साहिब से अभी थोड़ा दूर ही गए थे कि टोल प्लाजा आ जाता है| एक साईड का 150 रुपये फासट टैग से कटवा कर हम आगे बढ़ जाते हैं| थोड़े किलोमीटर के बाद पंजाब- हिमाचल प्रदेश की सीमा आ जाती है जैसे ही हम हिमाचल प्रदेश में प्रवेश करते हैं हम 60 रुपये की पर्ची देते हैं| अब मैं आराम से गाड़ी चलाने लग जाता हूँ| नये बने हुए हाईवे पर गाड़ी चलाने का अपना ही मजा है| इस हाईवे से सवार घाट साईड में रह जाता है| चलते चलते हम बिलासपुर को भी बाईपास कर जाते हैं कयोंकि हाईवे पर एक मोड़ आता है जहाँ से आप बिलासपुर शहर की ओर जा सकते हो| तकरीबन चार पांच सुरंगों से जब गाड़ी जाती है तो सफर मजेदार बन जाता है| चलते चलते हम सुंदरनगर आ जाते हैं| सुंदरनगर और मंडी शहर में अभी हाईवे का बाईपास नहीं बना| सारे रास्ते में हमें कहीं भी टरैफ़िक नहीं मिला लेकिन जैसे ही सुंदरनगर शहर में प्रवेश करते हैं तो टरैफ़िक मिलता है| सुंदरनगर से चलकर मंडी पहुँच जाते हैं जिसकी दूरी 25 किलोमीटर है| मंडी शहर से पहले ही हम टरैफ़िक में फंस जाते हैं| रेंगते हुए हम मंडी शहर का टरैफ़िक पार करते हैं जिसमें हमें आधे घंटे से ज्यादा समय लगता है| दोपहर के दो बज रहे थे हम मंडी शहर में थे| लंच का समय भी हो रहा था लेकिन हम मंडी शहर को पार करने के बाद ही खाना खाने चाहते थे| फिर हम मंडी से पराशर झील जाने वाली सड़क पर चढ़ जाते हैं|
मंडी से पराशर झील की दूरी 49 किलोमीटर है जिसके लिए आपको ढाई घंटे का समय लगता है| मंडी से तकरीबन 13 किलोमीटर दूर हम कमांद गांव में Food Studio नाम के रेस्टोरेंट में लंच करने के लिए रुकते है| लंच में हम दाल, चपाती, सलाद और दम आलू का आर्डर देते हैं| इस रेस्टोरेंट की बालकोनी से सामने पहाड़ों का ओर नीचे बहती उहल नदी का शानदार दृश्य दिखाई देता है| हम बालकोनी में बैठ जाते हैं | बाहर के दृश्य बहुत खूबसूरत थे दोपहर में भी ठंडी हवा चल रही थी| एक साईड पर मंडी IIT कैंपस भी दिखाई दे रहा था| बालकोनी के बाहर लगे टेबल पर हम लंच लगवा देते हैं| बालकोनी के बाहर लगी कुर्सी पर बैठकर हम लंच करते हैं| लंच करने के बाद हम दुबारा गाड़ी में बैठकर पराशर झील की ओर चल पड़ते हैं|
लंच करने के बाद हम दुबारा पराशर झील की ओर चल पड़े| पराशर झील अभी भी 36 किलोमीटर दूर थी| रोड़ धीरे धीरे संकरा हो रहा था| पहाड़ पर चढ़ाई और बढ़ रही थी| मैं धीरे धीरे गाड़ी चला रहा था| हम काफी ऊंचाई पर आ गए थे| एक जगह पर बोर्ड लगा देखा पराशर झील 23 किलोमीटर दूर है| चलते चलते हम शाम को 4.40 बजे पर पराशर झील की पार्किंग पर पहुँच गए| गाड़ी लगाकर हम चाय की एक दुकान पर पहुंचे| हमने चाय के साथ मैगी का आर्डर दे दिया| चाय पीने के बाद हम पराशर झील की ओर जाने वाले पैदल रास्ते पर चल पड़े| यह एक छोटा सा रास्ता है कोई 400 मीटर के आसपास पहले आप ऊपर ऊंचाई पर जाते हो फिर पहाड़ से नीचे चलना पड़ता है| अब आखों के सामने खूबसूरत पराशर झील थी और साथ में पराशर ऋषि जी का मंदिर| मेरी मम्मी के घुटनों में दर्द रहता है लेकिन फिर भी धीरे धीरे चलते हुए हम उनको भी पराशर झील पर ले आए| मंदिर के पास पहुँच कर हमने जूते उतारे और पराशर ऋषि के मंदिर में प्रवेश कर लिया| इस जगह पर पराशर ऋषि जी ने तपस्या की है| पराशर ऋषि जी का मंदिर मंडी के राजा बान सेन ने बनाया था| हमने मंदिर में माथा टेका| ऋषि पराशर जी की मूर्ति के दर्शन किए| कुछ देर हम मंदिर के आंगन में बैठे रहे| मंदिर का चौगिरदा बहुत आलौकिक और पवित्र लग रहा था| मन ऐसा कह रहा था बस यही बैठे रहे कयोंकि ऊंचे पहाड़ों के बीच दुनिया के शोरगुल से दूर हम ऋषि पराशर जी के मंदिर में बैठे थे| पराशर झील की समुद्र तल से ऊंचाई 2700 मीटर है| मंडी शहर से दूरी 49 किलोमीटर है| माथा टेकने के बाद हम पराशर झील के पास गए| वहाँ पर एक किनारे Jai Rishi Parashar का बोर्ड लगा हुआ है| मैंने वहाँ पर अपनी तस्वीर खिंचवाई| लगभग दो घंटे पराशर झील पर बिताने के बाद हम शाम के सात बजे के आसपास अपने होमस्टे की ओर चल पड़े|
पराशर झील से 13 किलोमीटर दूर एक गाँव है प्रेमनगर जहाँ पर रायल पराशर लेक होमस्टे है| वहाँ मैं अपनी फैमिली के साथ रुका था | एक कमरे का किराया 1000 रुपये| हमने दो रुम लिए थे| रात को डिनर किया बिलकुल घर के खाने जैसा सुबह ब्रेकफास्ट में परांठे चाय के साथ| यहाँ लकड़ी के बने हुए कमरे में रहे| यह होमस्टे सेब के बाग में बना हुआ है| आप जब भी पराशर झील जाए और अगर वहाँ आपको रहना है तो यह जगह बहुत बढ़िया है|
रायल पराशर लेक होमस्टे पराशर झील से 13 किलोमीटर दूर है| गूगल मैप आपको इस होमस्टे से पराशर झील की दूरी 88 किलोमीटर दिखाऐगा लेकिन यह दूरी सिर्फ 13 किलोमीटर है| प्रेमनगर से लेकर पराशर झील तक नई सड़क बनी है जो अभी गूगल मैप पर अपडेट नहीं हुई है| पराशर झील की पार्किंग से आगे जाने वाली सड़क ही प्रेमनगर गाँव जाऐगी जो वहाँ से 13 किलोमीटर है| यही सड़क आगे मंडी- मनाली हाईवे पर टिकोली नामक जगह में मिल जाऐगी|
पराशर झील से मंडी मनाली हाईवे की दूरी 39 किलोमीटर है जहाँ पराशर झील की पार्किंग के पास पनारसा 39 किलोमीटर लिखा गया है| पराशर झील की यात्रा के बाद हम एक रात इस जगह पर रुकने के बाद अगले दिन अगली मंजिल की ओर चल पड़े|