गोवा, भारत के पश्चिमी तट पर स्थित एक रमणीय राज्य, न केवल अपने सुनहरे समुद्र तटों नाईट लाइफ , आकर्षक खान पान और हरे-भरे खेतों के लिए जाना जाता है, बल्कि इसके समृद्ध इतिहास में भी छिपे हैं कई अनमोल रत्न। ऐसे ही एक रत्न है पणजी शहर के बीचों-बीच बसा हुआ पुर्तगाली विरासत का जीवंत संग्रहालय - फोंटेनहस। माना जाता है कि इस गांव का नाम यहां कभी मौजूद रहे 16 फव्वारों (फाउंटेन ) के नाम पर पड़ा। ये फव्वारे आज भी गांव की धमनियों में रची हुई जीवनदायिनी धाराओं की तरह विद्यमान हैं, मानो इतिहास को सींचते हुए हों।
अभी हाल ही में अपनी जीवन संगिनी के साथ गोवा भ्रमण का प्रोग्राम बना तो इस खूबसूरत जगह को देखने का मौका मिला । यकीन मानिए बहुत खूबसूरत है ।
फोंटेनहस का इतिहास गोवा के समृद्ध इतिहास से जुड़ा हुआ है, जिसे समझने के लिए हमें 16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों के आगमन तक वापस जाना होगा। 1498 में वास्को ड गामा के भारत आगमन के साथ, पुर्तगालियों ने मसालों के व्यापार में अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिशें शुरू की. गोवा, अपने रणनीतिक स्थान और मजबूत बंदरगाहों के कारण, पुर्तगालियों के लिए एक आकर्षक केंद्र बन गया। 1510 तक, पुर्तगालियों ने गोवा पर अपना अधिकार कर लिया और अगले 450 वर्षों तक इस क्षेत्र पर शासन किया। इस दौरान, गोवा पुर्तगाली साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया, और यूरोपीय और एशियाई संस्कृतियों का एक प्रमुख संगम स्थल के रूप में भी विकसित हुआ।
फोंटेनहस को यूरोपीय वास्तुकला के आधार पर बनाया गया था। गांव को एक अलग पैटर्न में डिजाइन किया गया था, जिसमें चौड़ी सड़कें थीं जो हवा और प्रकाश के संचार को सुगम बनाती थीं। गांव के केंद्र में एक बड़ा मैदान था, जिसे सार्वजनिक समारोहों और सामाजिक मेलजोल के लिए इस्तेमाल किया जाता था। गांव में कई फव्वारे भी बनाए गए थे, जो न केवल सौंदर्य के प्रतीक थे बल्कि पेयजल की आपूर्ति भी सुनिश्चित करते थे। यह वास्तुशिल्पीय शैली पुर्तगाली शहरों की एक प्रमुख विशेषता थी और इसका उद्देश्य न केवल सौंदर्य की दृष्टि से मनभावन बल्कि स्वच्छ और रोगमुक्त वातावरण बनाना भी था। हालाकि अब पुर्तगाली लोग यहां से जा चुके है । लेकिन ये इलाका अभी भी उतना ही जीवंत लगता है । मानो की बरसों से किसी की राह देख रहा है। अगर आपको अच्छी फोटोज खींचने या खिंचवाने का शौक है। और आप गोवा में हो तो इससे बढ़िया जगह आपको नही मिलेगी
लोगो से बात करके पता चला की उन दिनों में, फोंटेनहस गोवा के पुर्तगाली अमीर वर्ग और व्यापारियों का घर था। पुर्तगाली वायसराय (राज्यपाल) का निवास भी फोंटेनहस में स्थित था, जो गांव के महत्व को दर्शाता है। पुर्तगाली वास्तुकला और शहरी नियोजन का यह उत्कृष्ट उदाहरण गोवा के पुर्तगाली शासनकाल की समृद्धि और वैभव का प्रतीक है। 1961 में भारत द्वारा गोवा को वापस लेने के बाद, फोंटेनहस का चरित्र थोड़ा बदल गया है। पुर्तगाली आबादी का एक बड़ा वर्ग पुर्तगाली लौट गया। हालांकि अभी भी कुछ लोग रह गए हैं। वो भी अब इतने सालो में भारतीय संस्कृति के रंग में रंग चुके है।
यकीन मानिए आपको लगेगा की आप भारत के बाहर किसी अन्य देश में हो । किसी पुर्तगाली संस्कृति वाली , यूरोप की संस्कृति वाली जगह पर हो।
तो अगर आपका भी प्लान गोवा जाने का कर रहा हो तो इस खूबसूरत जगह को देखना न भूले।
नोट – एक बात और यहां आकर बीवी या माशूका के साथ आकर्षक फोटोज लेकर उन्हें फेसबुक , इंस्टाग्राम, स्नैपचैट इत्यादि पर डालकर लोगो को जला भी सकते है। 😜
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