कुछ कहानियाँ दिलचस्प होती हैं, कुछ आपको प्रेरित भी कर सकती हैं, लेकिन कभी-कभी आपको ऐसी कहानी मिल जाती है जो अपनी ईमानदारी से हर परिस्थितियों को हरा देती है।
मोक्षा जेटली एक ऐसी ही निडर और जुनूनी महिला हैं, जिन्होंने बिना किसी शर्मिंदगी के कठिन परिस्थितियों के साथ जीवन जिया, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अब 53 साल की उम्र में वह उन सभी के लिए प्रेरणा बन गई हैं जो अपने सपनों को जीवन में एक बार साकार होते हुए देखना चाहते हैं।
पंजाब के होशियारपुर जिले की रहने वाली मोक्षा जेटली की शादी कम उम्र में ही हो गई थी और जल्द ही उन्हें एक बच्चा भी हो गया।मां बनने के साथ ही उन्हें हर रोज एक नई चुनौती का सामना करना पड़ रहा था। एक तरफ इतनी कम उम्र में मां बन गई और उसके बाद बेटी पैदा हो गई जाने की वजह से उन्हें आए दिन ताने सुनने पड़ रहे थे। उनकी सास को बेटे की चाहत थी और बेटी होने की वजह से वे काफी नाखुश बनी हुई हैं। एक रात तो मोक्षा और उनकी छोटी मासूम बेटी को भी घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ा । इन सब चीजों से तंग आकर मोक्षा ने अपने घर वापस जाने का फैसला लिया। इसके बाद की ज़िंदगी उनकी आसान नहीं थी।
वह कहती हैं, "चंडीगढ़ में बिताए उस समय ने मुझे सिखाया कि एक महिला द्वारा अकेले ही अपनी आजीविका कमाने की कोशिश करना एक ऐसी अवधारणा है जिसे पुरुषों के लिए समझना आसान नहीं होता। ऐसा नहीं है कि मुझे इस बात का कोई पछतावा है।"
उन्होंने हर बाधाओं से प्रेरणा और साहस प्राप्त किया, और उन सभी के खिलाफ मौन युद्ध छेड़ दिया जिन्होंने उन्हें नीचे गिराना चाहा।
वह कहती हैं " समाज के रवैये में बदलाव आना चाहिए और खासकर बेटियों को मामले में तो समाज को काफी बदलने की जरूरत है। अगर बेटी और बेटा का फर्क खत्म होगा तभी समाज में असल बदलाव आ सकेगा। आखिर बेटे भी तो महिलाओं के कोख से ही जन्म लेते हैं। वह कहती हैं कि आज महिलाएं आईएएस से लेकर साइंटिस्ट, अंतरिक्ष यात्री पायलट और यहां तक मंत्री जैसे रोल निभा रही हैं। बेटियां भी अपने मां-बाप की उतनी ही मदद कर सकती हैं जितनी की बेटे।
53 साल की मोक्षा जेटली Entrepreneur बनने की अपनी यात्रा के जरिए समाज के तमाम कुरीतियों को तोड़ रही हैं। उन्होंने BacknBeyond नाम से एक वेंचर की स्थापना की है जो पूरे देश में बाइक टूर को ऑर्गेनाइज करता है। इसके साथ ही वह कई सारे सामाजिक मुद्दों पर भी दखल देती रहती हैं।
वह कहती हैं "उन्होंने अपने वफादार दोस्त रॉयल एनफील्ड 350 के साथ कन्याकुमारी से लेह तक यात्राएँ की हैं - उनमें से कुछ का उद्देश्य 'बेटी बचाओ' के बारे में जागरूकता फैलाना है। वास्तव में, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इस तथ्य का प्रमाण है कि मैं लेह-मनाली पट्टी को 20 घंटे और 20 मिनट में पूरा करने वाली पहली महिला बाइकर हूं।"
वह कहती हैं "अपने परिवार को छोड़ना उन्हें काफी तकलीफ देता था, लेकिन वह अकेले दम पर अपनी जिंदगी चलाने और बेटी की परवरिश करने को लेकर गौरान्वित भी महसूस करती थीं। जब वह अपनी कहानी लोगों को बताती हैं तो उनका मकसद सहानुभूति बटोरना नहीं होता, बल्कि वह चाहती हैं कि जैसे उन्होंने अपनी बेटी की परवरिश की है वैसे ही कोई भी औरत चाहे तो अपने दम पर एक मुकाम हासिल कर सकती है। मैं आपको यह बताने के लिए यहाँ हूँ कि आप ही आपकी पूरी दुनिया हैं। हालाँकि हम सभी को एक अच्छे जीवनसाथी की तलाश रहती हैं, लेकिन मुझे नहीं पता कि हमें यह क्यों विश्वास दिलाया जाता है कि केवल एक पुरुष ही हमें सब कुछ प्रदान कर सकता है और हमारे जीवन को "संपूर्ण" बना सकता है।"
भविष्य में मोक्षा एक बेटर सोसायटी चाहती है, जो स्वार्थ से ऊपर उठ कर काम करे। वह चाहती है कि जिस समाज ने हमें इतना कुछ दिया है, उसमें से कुछ समाज और इंसानियत के लिए भी खर्च करें। भले ही मोक्षा 53 साल की हो गई हैं, लेकिन इस उम्र में भी उनका जज्बा कम नहीं हुआ है।