अभी हाल ही में अपनी मां के साथ भगवान जगन्नाथ,पुरी ( ओडिशा ) जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । पुरी जाने के लिए
ट्रेन हमने दिल्ली से भुवनेश्वर तक ली थी। आगे भुवनेश्वर से पुरी की यात्रा बस के माध्यम से की । करीब करीब 3 दिन हम लोग पुरी में रहे विभिन्न मंदिरों , विशेषकर जगन्नाथ मंदिर के दर्शन किए । मैने भुवनेश्वर ( ओडिशा ) के कुछ दार्शनिक जगहों के बारे में भी सुन रखा था । विशेषकर धौली के बारे में । जोकि भुवनेश्वर से लगभग 10 किलोमीटर दूर दया नदी के किनारे एक पहाड़ी पर स्थित है ।इस पूरे क्षेत्र को कालांतर में कलिंग भी कहा जाता था ।आप लोगो ने अपने इतिहास की किताबो में इसका नाम जरुर सुना होगा।
महान प्रतापी सम्राट अशोक ने यहां एक भीषण युद्ध लड़ा था । और विजय पाई थी ।लेकिन इस युद्ध में हुए जान माल़ के नुकसान को देखकर उसका हृदय द्रवित हो गया । इस युद्ध में लाखो लोगो को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था।
कहते है यहां काफी दिनों तक दया नदी में खून जैसा लाल पानी बहता रहा था । मुझे व्यक्तिगत तौर पर इतिहास में गहरी रुचि रही है। तो बस यहां एक बार जाना तो बनता ही था । मैने भुवनेश्वर में एक बाइक रेंट पर ली और निकल पड़ा। धौली के लिए । यहां तक पहुंचने तक का रास्ता बहुत ही सुंदर और मनोरम है।
रास्ते में सबसे पहले एक जगह पड़ी जहा सम्राट अशोक के कुछ संदेश एक चट्टान पर उकेरे गए थे । ये लगभग ईसा पूर्व 250 से 300 साल पुराने थे। शिला लेखों के पास एक पूरा पार्क भी विकसित किया गया था। जोकि मुझे बहुत अच्छा लगा। इसी पार्क में मुझे एक पुराने हाथी की भी पत्थर तराशकर एक मूर्ति देखने को मिली जोकि काफी पुरातन मालूम हो रही थी । यहां पर कलिंग युद्ध से संबंधित काफी लेख भी मुझे मिले।
ये जगह मुझे काफी अच्छी लगी इस जगह ने मेरा मन मोह लिया । मैने अपने और मां के भी कुछ अच्छे चित्र लिए
यादगार के तौर पर । कही जाना हो तो कुछ अच्छे चित्र आपके पास जरूर होने चाहिए ।
अब इस शिला लेखों से थोड़ा आगे बढ़े तो धौली शिखर पर
एक शांति पगौड़ा ( बौद्ध मंदिर ) भी देखने को मिला । यकीन मानिए ये बहुत विशाल और शानदार था । थोड़ा जानकारी करने पर पता चला की इसे भारत और जापान के सहयोग से 1970 के आस पास बनवाया गया था । ये सफेद
विशाल बौद्ध मंदिर बहुत ही बड़ा और मनोरम था । यहां पहुंचकर सम्पूर्ण भुवनेश्वर शहर के नजारे अदभुत थे ।
इसमें भगवान बुद्ध की काफी सारी मूर्तियां विभिन्न मुद्राओं में थी।
याहा पहुंचकर जो शांति का अनुभव हुआ उसे शब्दों में नही
बया किया जा सकता । मौसम ने भी काफी साथ दिया । बादल धूप छाओ के साथ लुका छिपी खेल रहे थे । यहां तक पहुंचने का रास्ता भी काफी शानदार था । कुल मिलाकर अगर आप किसी भी कारण से भुवनेश्वर या आस पास है ।तो इस जगह आना तो बनता है । इस जगह में कुछ तो सकारात्मक है । ऐसा मैने महसूस किया । कुछ तो कारण रहा होगा की इस जगह पर आकर सम्राट अशोक जैसे क्रूर शासक का भी हृदय द्रवित और परिवर्तन हो गया। और आगे उसने कभी हिंसा न करने का प्रण किया ।
कैसे पहुंचें – आप टैक्सी करके ऑटो से कैब से या बाइक इत्यादि से भी आसानी से यहां आ सकते हो भुवनेश्वर के सिटी सेंटर से यहां तक की दूरी 10 किलोमीटर है।
कोई टिकिट या चार्जेस जैसा भी कुछ नही हैं। बस आपका कला प्रेमी और इतिहास प्रेमी होना आवश्यक है ।