केदारनाथ की महिमा तो जग व्यापी है। केदारनाथ की ही तरह पंच केदार उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में हैं। पंच केदार में प्रथम केदार हैं केदारनाथ महादेव, द्वितीय केदार मदमहेश्वर, तृतीय केदार तुंगनाथ महादेव, चतुर्थ केदार रुद्रनाथ महादेव और पंचम केदार हैं कल्पेश्वर महादेव।
पंच केदार की यात्रा पर हर साल हजारों श्रद्धालू जाते हैं। पंच केदार के आलावा भी गढ़वाल क्षेत्र में 3 और केदार हैं। बसु केदार, कल्पकेदार, बूढा केदार। सारे केदारों की अपनी अपनी अलग महिमा है।
क्या आपको पता है गढ़वाल की तरह ही उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में भी 2 केदार हैं। पहला केदार है छिपला केदार जो की पिथौरागढ़ के मनकोट में पड़ता है जिसके लिए आपको करीब 2 दिन का ट्रेक करना पड़ता है। दूसरा केदार जिसकी आज हम बात करेंगे वो है वृद्ध केदार। वृद्ध केदार अल्मोड़ा मासी नामक जगह के पाली पंचांऊ इलाके में पड़ता है।ये राम गंगा नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर को नेपाल के पशुपतिनाथ नाथ मंदिर का अंश समझा जाता है और बाबा केदारनाथ की दूसरी शाखा भी। ये पूरी दुनियाँ में एक मात्र शिवालय है जहाँ महादेव का महा धड विराजमान है।
मंदिर की स्थापना चंद वंशीय राजा रूद्र चंद जी ने राष्ट्रीय शाके 1490 (1568 ईसवी ) में की थी।माना जाता है कि युद्ध के दौरान राजा रूद्र चंद एक रात इस स्थान पर ठहरे थे। भगवन शिव ने उन्हें सपने में दर्शन दिए तथा उन्हें इस स्थान पर मंदिर के निर्माण का आदेश दिया। मंदिर की स्थापना के बाद राजा की हारती हुई सेना ने अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त की। तब से इस मंदिर पर श्रदालुओं की अटूट आस्था है। वृद्ध केदार मंदिर को भगवान केदारनाथ की भी मान्यता प्राप्त है। यह मंदिर कुमाऊँ में बूढ़ केदार के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर का वर्णन स्कन्द पुराण के मानस खंड में किया गया है।
मंदिर स्थापना के बाद राजा रूद्र चंद ने शिव मंदिर के पुजारी के लिए ब्राह्मण जाति के कुछ लोगो को ग्राम डुंगरी पौड़ी गढ़वाल से यहाँ लाकर बसाया। मूलरूप से डुंगरी गांव के होने के कारण ये पुजारी डुंगरियाल के नाम से जाने जाते है। मंदिर के सरपंच के लिए मनराल जाति के लोगों को नियुक्त किया गया।
वृद्ध केदार मंदिर में शिव धड़ स्वरुप में विराजमान है। केदारनाथ में शिव पिंडी स्वरुप में तथा पशुपतिनाथ में शिव सिर स्वरुप में विराजमान है। इस क्षेत्र के श्रदालु उत्तराखंड के चार धामों की यात्रा पर प्रस्थान से पहले वृद्ध केदार शिव मंदिर में दर्शन करते है। श्रदालुओं के विश्राम के लिए शिव मंदिर के आस पास कई धर्मशालाए निर्मित हैं।
वृद्ध केदार शिव मंदिर बैकुंठ चतुर्दशी को सायंकाल के समय मेला लगता है तथा दूसरे दिन कार्तिक पूर्णिमा को श्रदालु रामगंगा नदी में स्नान करने के पश्चात शिव महादेव का जलाभिषेक तथा पूजा अर्चना करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करते है।
बैकुंठ चतुर्दशी के दिन यदि कोई निःसंतान स्त्री संतान प्राप्ति की मनोकामना के लिए वृद्ध केदार शिव मंदिर में महादेव का वरदान प्राप्त करने की इच्छा से आती है तथा बैकुंठ चतुर्दशी को रात्रि में प्रज्वलित दीपक हाथ में लेकर ॐ नमः शिवाय का जाप करती है और दूसरे दिन पूर्णमासी को सूर्यौदय के समय उस दीपक को रामगंगा नदी में प्रवाहित कर तैरते दीपक का पांच बार दर्शन करती है तो निःसंदेह ही उन्हें शिव की कृपा से संतान की प्राप्ति होती है।
सावन के महीने में वृद्ध केदार मंदिर में दर्शन हेतु श्रदालुओं की काफी भीड़ रहती है। सावन के सोमवार के दिन जो शिव भक्त १०८ लोटा जल ,बेलपत्री ,तिल ,जौ तथा चावल शिवलिंग पर चढ़ाता है भगवन शिव उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते है।वृद्ध केदार मंदिर में सावन के महीने में हर वर्ष महापुराण की कथा का आयोजन किया जाता है। जिसमें कथा श्रवण हेतु श्रदालुओं की काफी मात्रा में भीड़ रहती है।
उत्तराखंड में ३३ करोड़ देवी देवता वास करते है।यहाँ समय समय पर ११ दिन या २२ दिन तक देवी देवताओं की जातरा (जागर ) लगती है। जातरा के अंतिम दिन देवी देवताओं को स्नान हेतु तीर्थ स्थान पर ले जाया जाता है। वृद्ध केदार शिव मंदिर को महातीर्थ स्थल माना जाता है क्योकि यहाँ पर रामगंगा तथा विनोद नदी का संगम है जो कि त्रिवेणी संगम के नाम से प्रसिद्ध है । इसलिए क्षेत्रवासी देवी देवताओं को स्नान के लिए वृद्ध केदार शिव मंदिर लाते है। जागरी में अवतार लिए पितरों की आत्मा की शांति के लिए उन्हें स्नान हेतु वृद्ध केदार शिव मंदिर में लाते हैं । महातीर्थ होने के कारण वृद्ध केदार शिव मंदिर में जनेऊ संस्कार तथा विवाह भी संपन्न होते है।