तरनतारन पंजाब का सरहदी जिला है जिसका जिला मुख्यालय तरनतारन है| तरनतारन अमृतसर से 25 किमी दूर है| तरनतारन शहर को सिख धर्म के पांचवे गुरु अर्जुन देव जी ने बसाया था| आज इस पोस्ट में हम तरनतारन जिले में देखने लायक जगहों के बारे में बात करेंगे|
दरबार साहिब तरनतारन
पंचम गुरू अर्जुन देव जी ने अपने जीवन काल में दो शहरों का निर्माण करवाया तरनतारन और करतारपुर दुआबा। करतारपुर भी दो हैं, पहले करतारपुर साहिब को पहले गुरु नानक देव जी ने बसाया जहां वह जयोति जोत समाऐ 1539 ईसवीं में जो अब पाकिस्तान में हैं , जहां जाने के लिए करतारपुर कोरिडोर बना हुआ हैं, दूसरा करतारपुर दुआबा हैं जो जालंधर- अमृतसर जीटी रोड़ पर बसा हुआ एक ईतिहासिक शहर हैं जिसको गुरू अर्जुन देव जी ने बसाया। उसी तरह तरनतारन शहर को भी गुरु अर्जुन देव जी ने बसाया। गुरु जी ने दो गांव खारा और पलासौर की जमीन 1,57000 मोहरे देकर खरीदी और ताल की खुदवाई की और शहर की सथापना की जिसका नाम तरनतारन रखा गया। तरनतारन साहिब का सरोवर पंजाब के गुरुद्वारों में सबसे बड़ा सरोवर हैं। छठे गुरु हरिगोबिन्द जी और नौवें गुरु तेगबहादुर जी के भी मुबारक चरण इस पवित्र जगह पर पड़े हैं। तरनतारन सरोवर की परिक्रमा को शेरे पंजाब महाराजा रणजीत सिंह ने पकका करवाया और दरबार साहिब की ईमारत को सोने की मीनाकारी से नवीन रुप दिया। दरबार साहिब तरनतारन की ईमारत सामने से देखने से बिल्कुल हरिमंदिर साहिब अमृतसर की तरह लगती हैं कयोंकि सोने की मीनाकारी दोनों जगह पर महाराजा रणजीत सिंह ने करवाई हैं। दरबार साहिब तरनतारन सरोवर के एक कोने में बना हुआ हैं, जिसके पीछे विशाल सरोवर दिखाई देता है। दर्शनी डियूढ़ी के रास्ते से हम दरबार साहिब में प्रवेश करते हैं। दरबार साहिब तरनतारन का नकशा भी पंचम गुरु अर्जुन देव जी ने खुद बनाया हैं और हरिमंदिर साहिब अमृतसर का भी। महाराजा रणजीत सिंह के पौत्र कंवर नौनिहाल सिंह ने दरबार साहिब की परिक्रमा के एक कोने में एक विशाल मीनार का निर्माण करवाया जहां से बहुत दूर तक सुरक्षा को मद्देनजर नजर रखी जा सकती थी। दरबार साहिब के दर्शन करके मन निहाल हो जाता हैं। यहां लंगर और रहने की उचित सुविधा हैं, अमृतसर से तरनतारन शहर की दूरी सिर्फ 25 किमी हैं, अमृतसर के साथ आप तरनतारन दरबार साहिब को भी अपने टूर में जरूर शामिल करें।
हरीके बर्ड सेंचुरी
हरीके पतन सतलुज और बयास नदियों के संगम पर एक खूबसूरत कसबा हैं जो पंजाब के तरनतारन जिले में पड़ता हैं,जो अमृतसर से 65 किमी , तरनतारन से 35 किमी , मेरे घर से 70 किमी दूर हैं। हरीके पतन को कुदरत ने बहुत खूबसूरती बखशी हैं। हरीके पतन का नाम कैसे पड़ा कहते हैं पुराने जमाने में जब हरीके पतन में डैम नहीं बना था, तब हरी नाम का मलाह हुआ करता था, जो किशती से लोगों को सतलुज दरिया पार करवाया करता था इसी के नाम पर हरीके पतन नाम पड़ गया।
हरीके_बर्ड सेंचुरी
हरीके बरड सेंचुरी में दूर देश विदेश से पक्षी आते हैं जो सरदियों में नवंबर में आना शुरू करते हैं और मार्च तक रहते है फिर वापिस चले जाते हैं। इस समय में यहां पक्षियों को आप देख सकते हो। हरीके बरड सेंचुरी घूमने के लिए हम फरवरी 2020 में घर से निकले सुबह ही, हरीके पतन कसबे में पहुंच कर फारेस्ट डिपार्टमेंट आफिस से परमिशन लेकर गाडी़ का नंबर नोट करवाने के बाद, कुल कितने मैंबर हैं लिख कर एक परची बना कर दी जाती हैं, इस परची को दिखा कर आप बरड सेंचुरी में प्रवेश कर सकते है, बाहर निकलने वाले रास्ते पर परची ले लेते हैं। हम भी परची लेकर पहुंच गए हरीके बरड सेंचुरी में, अब सारा रास्ता जंगल से घिरा हुआ था, पक्षियों की खूबसूरत आवाज मंत्रमुग्ध कर रही थी, साथ में बह रहा सतलुज दरिया मनमोहक दृश्य पेश कर रहा था। दोस्तों हरीके वैटलैंड पंजाब की सबसे बड़ी मैनमेड़ वैटलैंड हैं जो 4100 हेक्टेयर में फैली हुई हैं, तीन जिलों में यह फैली हुई हैं तरनतारन, फिरोजपुर और कपूरथला जिले में। हरीके बैराज को 1953 में बनाया गया, इस बैराज में से दो बड़ी नहरें फिरोजपुर फीडर और इंदिरा गांधी नहर निकाली गई, इस बैराज के बनने के बाद ही बैकपरैशर से हरीके बरड सेंचुरी का निमार्ण हुआ। अब हम जंगल में पहुंच गए थे, मुझे पक्षियों के नाम नहीं पता और थोड़ी सी आवाज से ही पक्षी उड़ जाते हैं, सतलुज दरिया के किनारे लगे वृक्षों में ही पक्षियों की डारें बैठी थी। पक्षी देखने के लिए वाच टावर बने हुए हैं, जहां से आप आसपास और पक्षियों को देख सकते है। ऐसे ही नजारों को देखने के बाद हम बरड सेंचुरी को देखते हुए बाहर वाले रास्ते से बाहर निकलने के बाद हाईवे पर चढ़ गए और आगे बढ़ गए। आप भी जब पंजाब में आए तो यहां जरूर आना चहचहाते हुए पक्षियों को देखने के लिए।
गुरूद्वारा बीड़ बाबा बुढ़ा साहिब
जिला तरनतारन
बाबा बुढ़ा जी का जन्म पंजाब के अमृतसर जिले के गांव कत्थूनंगल में हुआ, छोटी उमर में ही इनकी मुलाकात गुरु नानक देव जी से हुई, जब गुरु जी इनके गांव में आए थे। इनकी बातें सुनकर गुरु नानक देव जी ने कहा यह बालक अपनी उमर से जयादा बढ़ी उमर की बातें करता है जैसे कोई घर का बजुर्ग हो, बाद में गुरु जी ने बाबा जी को लंबी उमर का आशीर्वाद दिया, तब से आपका नाम बाबा बुढ़ा जी प्रसिद्ध हो गया। आप 125 साल की जीवन यात्रा के बाद अमृतसर जिले के रमदास कस्बे में जयोति जयोत समाए। आपने अपने जीवन काल में सात सिख गुरुओं के दर्शन किए, पहले गुरु नानक देव जी , दूसरे गुरू अंगद देव जी के, तीसरे गुरु अमरदास जी , चौथे गुरु रामदास जी , पांचवें गुरु अर्जुन देव जी, छठें गुरु हरिगोबिन्द जी और नौवें गुरु तेग बहादुर जी के। आप सिख धर्म के उच्च कोटी के महान सेवक, भगत, गुरसिख और तपस्वी थे। बाबा बुढ़ा जी श्री दरबार साहिब अमृतसर के पहले हैड़ ग्रंथी थे, आपने ही हरिमंदिर साहिब में गुरु अर्जुन देव जी के समय में गुरु ग्रंथ साहिब का पहला प्रकाश किया था। आपने ही दूसरे गुरू अंगद देव जी से लेकर छठें गुरू हरिगोबिन्द जी तक गुरु साहिब को गुरुगद्दी का तिलक लगाया था।
बीड़ बाबा बुढ़ा जी का ईतिहास
जिला तरनतारन के इस ईलाके में झबाल नाम का कस्बा हैं, वहां का चौधरी था लंगाह, उसने यह जगह तीसरे गुरु अमरदास जी को भेंट की थी जो गुरु जी ने बाबा बुढ़ा जी को दे दी थी। बाबा बुढ़ा जी यहां पर ही निवास करते थे। पंजाबी में बीड़ का मतलब होता हैं - छोटा जंगल, जहां बहुत सारे वृक्ष और हरियाली होती हैं। यह बीड़ बाबा बुढ़ा जी की थी। जहां उनके पशु चरते थे। पांचवें गुरू अर्जुन देव जी की पत्नी माता गंगा जी के घर कोई औलाद नहीं थी, उन्हें पता था बाबा बुढ़ा जी महात्मा हैं तो वह अपने घर से खुद आटा पीस कर गेहूँ और छोलों के आटे को मिक्स करके प्रशादे तैयार कर के, ऊपर कच्चा पयाज रख कर साथ में दूध रिड़क कर लस्सी बना कर , पैदल चलकर बाबा बुढ़ा जी के पास पहुंचे। बाबा बुढ़ा जी प्रशादे छक कर प्रसंन हो गए और उन्होंने कच्चे पयाज को अपने हाथ से तोड़कर कहा ,, माता जी आपके घर एक ऐसा प्रतापी पुत्र पैदा होगा जो मुगलों को ऐसे ही तोड़ेगा जैसे मैंने पयाज को तोड़ा हैं। बाबा बुढ़ा जी के आशीर्वाद से माता गंगा जी और गुरु अर्जुन देव जी के घर छठें गुरु हरिगोबिन्द जी का जन्म 1595 ईसवीं में जिला अमृतसर के गांव गुरु की वडाली में हुआ। आज भी पंजाब में बहुत सारी संगत बच्चे की प्राप्ति के लिए घर से प्रशादे, कच्चे पयाज और लस्सी लेकर बाबा बुढ़ा जी के दर पर अरदास के लिए जाती है| आपको यहां पर मिससे प्रशादे साथ में कच्चे पयाज का प्रशाद मिलेगा। गुरुद्वारे में छोटा सा सरोवर भी बना हुआ है, जहां बहुत सुंदर मछलियां भी तैरती हैं और लोग सनान भी करते हैं।
कैसे पहुंचे- गुरुद्वारा बीड़ बाबा बुढ़ा जी अमृतसर- खेमकरण सड़क पर अमृतसर से 20 किमी, तरनतारन से 18 किमी और मेरे घर से 120 किमी दूर हैं। यहां पर लंगर और रहने के लिए उचित प्रबंध हैं। जब भी आप अमृतसर आए तो यहां भी जरूर दर्शन करें|
अब्दुल हमीद समारक
अबदुल हमीद समारक खेमकरन-भिखीविंड हाईवे पर चीमा गांव में बना हुआ है। जब आप खेमकरन से अमृतसर जाते हो तो खेमकरन से 5 किमी दूर हाईवे पर आपको एक विशाल टैंक दिखाई देगा जो इस यादगार के बाहर रखा हुआ हैं। यह अमेरिका का बना हुआ पाकिस्तान को दिया हुआ, पैंटन टैंक हैं । पाकिस्तान ने 97 पैंटन टैकों से खेमकरन सेक्टर में 1965 ईसवी की लड़ाई में हमला कर दिया था। भारतीय सेना ने 72 टैकों को धवस्त कर दिया था। अब बात करते हैं वीर बहादुर अबदुल हमीद की, जब खेमकरन सेक्टर में पाकिस्तानी टैंकों की आवाजें गूजने लगी, तब अबदुल हमीद ने अपनी खुली हुई जीप के ऊपर छोटी तोप की तरह दिखने वाली गन लगा कर छह पाकिस्तानी टैकों को निशाना बना कर उड़ा दिया। अबदुल हमीद का निशाना बहुत सटीक था, एक एक करके जब पाकिस्तान के छह पैंटन टैकों आग में जल गए तब भारतीय सैना का हौसला बहुत बढ़ गया। सातवें टैंक को उड़ाते समय वीर अब्दुल हमीद की गाड़ी भी जलते हुए टैंक को लगी हुई आग की लपटों के बीच आ गई और भारत का यह बहादुर वीर जवान शहीद हो गया। अबदुल हमीद की समाध भी इसी समारक में बनी हुई हैं, पाकिस्तानी सैना के हौसले को पसत करने वाले इस बहादुर वीर की शहादत को शत शत नमन। पाकिस्तानी सैनिक अपने टैकों को छोड़कर कर भाग गई थी।
जब भी आप अमृतसर घूमने आए तो साथ में एक दिन घूमने के लिए खेमकरन के लिए भी रख लेना, ऐसे वीर जवान की इतनी बहादुरी की कहानियां सुन कर मन नमन करने लग जाता हैं।
जय हिंद