आज हम ऐसे ही पंजाब के सूरमे की बात करेंगे जिसने भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद करवाने के लिए मात्र 19 साल की उम्र में फांसी का रस्सा हँसते हँसते चूम लिया था। शहीद करतार सिंह सराभा जैसे देशभक्तों के लिए दुलहन भी आजादी ही थी, लेकिन बहुत दुख की बात हैं कि आजकल हम आजादी के इन परवानों के नाम तक नहीं जानते। मात्र 19 साल की उम्र में देश के लिए फांसी पर चढ़ना और कहा आजकल के नौजवान जो इस उम्र में नशे की दलदल में फस रहे हैं और लड़कियों को छेड़ते हैं और गंदे गंदे कमैंट्स करते हैं।आज जरूरत हैं ऐसे नौजवानों को करतार सिंह सराभा से सीखने की। शहीदे आजम भगत सिंह के आदर्श थे शहीद करतार सिंह सराभा कयोंकि जब भगत सिंह गिरफ्तार हुए थे तब उनकी जेब में सराभा जी की फोटो मिली थी जिसको वह हमेशा अपने साथ रखते थे। भगत सिंह भी सराभा जी की तरह देश के लिए शहीद होना चाहते थे। पिछले महीने मुझे शहीद करतार सिंह सराभा के गांव में उनके घर पर जाने का मौका मिला जो मेरे लिए किसी तीर्थ यात्रा से कम नहीं हैं। धन्य हैं करतार सिंह सराभा जी और उनकी देशभक्ति |
दोस्तों एक घुमक्कड़ होने के नाते हमारा यह फर्ज भी हैं कि हम आजादी के इन परवानों के लिए कुछ न कुछ लिखे और उनकी कहानी को लोगों को बता सके।
#करतार_सिंह_सराभा_की_कहानी
दोस्तों शहीद करतार सिंह सराभा का जन्म पंजाब के जिला लुधियाना के गांव सराभा जो लुधियाना से 35 किमी दूर है में 24 मई 1896 ईसवीं में हुआ। आपके पिता जी का मंगल सिंह और माता जी का नाम साहिब कौर था। बचपन में ही आपके पिता जी का देहांत हो गया था और आपका पालन पोशन आपके दादा जी ने किया। आपने अपनी आठवीं कक्षा तक की शिक्षा सराभा गांव में ही ली और उसके बाद आप लुधियाना के कालेज में पढ़ने के लिए चले गए। आपके चाचा जी उड़ीसा में रहते थे जहां आप भी एक साल के लिए उड़ीसा चले गए। 1912 ईसवीं में आप उच्च शिक्षा के लिए अमरीका के लिए रवाना हो गए, जहां आप का देश के लिए प्रेम जाग गया कयोंकि वहां बहुत सारे परवासी भारतीय देश को आजाद करवाने के लिए जद्दोजहद कर रहे थे। तभी 1913 ईसवीं में पंजाब के अमृतसर जिले के रहने वाले बाबा सोहन सिंह भकना ने गदर पारटी बनाई, जिसके प्रैजीडैंट बाबा भकना जी थे, सैकटरी लाला हरदयाल जी थे। करतार सिंह सराभा भी गदर पारटी से प्रभावित हुए और अपनी यूनिवर्सिटी की पढ़ाई छोड़ कर गदर पारटी में शामिल हो गए। गदर पारटी का उद्देश्य भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद करवाना था। सराभा जी गदर पारटी के सबसे युवा लीडरों में एक थे, आप बहुत अच्छे सपीकर और कवी थे। अपनी खुद की लिखी हुई देशभक्ति की कविता बड़े जोश से सुनाते थे, जिसे सुनकर बहुत सारे परवासी भारतीय गदर पारटी में शामिल हो रहे थे। फिर गदर पारटी ने गदर नामक एक अखबार को छपवाया जो पंजाबी, हिंदी, उर्दू, बंगाली, गुजराती आदि भाषाओं में छपता था। सराभा जी को गदर अखबार को पंजाबी भाषा में प्रिटिंग की जिम्मेदारी मिली थी, अक्सर सराभा जी के लिखे हुए देशभक्ति के लेख और कविताएं गूंजती थी। आपकी इस प्रसिद्धि और गदर पारटी के बढ़ते दायरे को देखकर अंग्रेजी हकूमत बौखला गई थी। इसके बाद में गदर पारटी के लीडरों ने अपनी मातृभूमि भारत आकर अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करने की तैयारी कर ली, इस तरह सराभा जी भी भारत वापिस आ गए। जहां गदर पारटी में पुलिस के एक मुखबिर कृपाल सिंह ने आपकी जानकारी पुलिस को दे दी। इस तरह आप की गिरफ्तारी हो गई। करतार सिंह सराभा जी को मात्र 19 साल की उम्र में 16 नवंबर1915 ईसवीं को लाहौर में फांसी दे दी गई। इस तरह भारत का यह शेर करतार सिंह सराभा भारत की आजादी के लिए शहीद हो गया। आज मुझे करतार सिंह सराभा के बारे में लिख कर बहुत खुशी मिल रही हैं, नमन है सराभा जी को और उनकी शहीदी को। उनके घर को आप साराभा गांव के जाकर देख सकते हो जो किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं हैं।