
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में पार्वती घाटी एक तंग घाटी है | इस खूबसूरत घाटी को रुपी घाटी भी बोलते है कयोंकि कहते हैं यहाँ चांदी की खानें थी | पार्वती घाटी में आप जरी, कसोल, मनीकर्ण, पुलगा, खीर गंगा आदि खूबसूरत जगहें देखने लायक है| आज इस पोस्ट में हम मनीकर्ण के बारे में बात करेंगे| मनीकर्ण कुल्लू शहर से 45 किमी, भुन्तर 35 किमी दूर है| मनीकर्ण पार्वती के किनारे पर स्थित है| मनीकर्ण का ईतिहास भगवान शिव पार्वती से लेकर गुरु नानक देव जी से जुड़ता है| ऐसा कहा जाता है एक दिन पार्वती माता जल क्रीड़ा कर रही थी कि उनके कान की मणी गिर गई| अपने तेज प्रभाव के कारण वह मणियों के स्वामी शेषनाग के पास पहुंची जिसको उसने अपने पास रख लिया| शिव जी के गण उस मणी को ढूंढने में असफल रहे| भगवान शिव क्रोधित हो गए | शिवजी ने अपना तीसरा नेत्र खोला जिससे प्रलय आने लगी | शेषनाग ने मणी को फुंकार से जल सहित पृथ्वी की ओर फेंका| इस तरह मनीकर्ण एक धार्मिक स्थल के रूप में विकसित हो गया|
मनीकर्ण घाटी में 4 किलोमीटर के क्षेत्र में गरम जल के स्रोत है| सबसे गर्म और मुख्य चश्मा आपको मनीकर्ण ही है| भारी दबाव के कारण गर्म जल चट्टानों के नीचे से निकलता है| जल का तापमान 88 डिग्री से 94 डिग्री सेल्सियस तक है| गर्म जल के स्नान से गठिया, जोड़ों के दर्द का ईलाज होता है| गर्म जल के चश्मे में भोजन पकाया जाता है| चावल को पोटली में बांधकर जल में डाल देते हैं जो 20 मिनट में पक जाते हैं| चपाती भी जल में डाल देते हैं जो पकने पर ऊपर आ जाती है|

गुरुद्वारा मनीकर्ण साहिब
इस ईतिहासिक गुरुद्वारा साहिब का ईतिहास गुरु नानक देव जी से जुड़ता है| गुरु जी यहाँ पर मरदाना जी के साथ आए थे| मरदाना जी को भूख लगी थी| उनके पास आटा था | गुरु जी ने मरदाना जी को पत्थर उठाने के लिए कहा| जैसे ही मरदाना जी ने पत्थर उठाया तो गर्म जल का चश्मा प्रगट हुआ| मरदाना जी ने चपाती बेलकर चश्मे में डाल दी और चपाती पक के ऊपर आ गई| आज भी गुरुद्वारा साहिब में रोटी ऐसे ही बनाई जाती है| संत श्री हरि नारायण हरि जी 1940 ईसवीं में कुल्लू में आये| संत जी ने ही इस जगह पर गुरुद्वारा साहिब का निर्माण किया| इस समय इस गुरुद्वारा साहिब में 4000 लोग रह सकते है और निशुल्क लंगर की सुविधा भी है| संत जी ने 22 फरवरी 1989 ईसवीं को जल समाधि ले ली| इस समय उनकी बेटी देवा जी गद्दी पर विराजमान है|

दोस्तों मेरी जिंदगी की पहली यात्रा 1988 में हुई जब मैं एक साल का था, यह यात्रा गुरु द्वारा मणीकरन साहिब की हैं, न तो मुझे उस यात्रा का कुछ याद हैं न ही कोई फोटो हैं, लेकिन फिर भी मेरी जिंदगी की पहली यात्रा मेरे लिए बहुत यादगार हैं।
1988 में मेरे शहर से बस गई थी, मनीकरन साहिब, उस वक्त लोगों ने सुना भी नहीं था, मनीकरन के बारे में, मेरे मम्मी पापा को भी नहीं पता था कि मनीकरन साहिब कहा हैं और कया हैं, लेकिन पापा के एक मरीज ने पापा को कह दिया आप जरूर चले यात्रा पर, फिर मेरे घरवाले , चाचा जी, बड़े मामा जी और नानी जी मनीकरन साहिब की बस यात्रा पर गए। जब हम रात को गुरु द्वारा साहिब पहुंचे तो मैं रात को बहुत रो रहा था, तब गुरु द्वारा में बाबा जी ने रात को दूध देकर गए, और बोला दूध पीने के बाद यह चुप हो जाएगा, यह बात मम्मी ने बताई, मुझे तो कुछ भी याद नही हैं।
गुरु द्वारा मनीकरन साहिब हिमाचल प्रदेश के कुलू जिले में गुरु नानक देव जी से संबंधित गुरु घर हैं, जहां गरम पानी के चश्मे भी हैं, साथ बहुत तेज बहती हुई पारवती नदी भी हैं, उसके बाद मैं तीन बार मनीकरन साहिब गया हूँ, यह थी मेरे जीवन की पहली यात्रा |

राम मंदिर मनीकर्ण
मनीकर्ण में राम मंदिर भी है जिसका निर्माण कुल्लू के राजा जगत सिंह ने किया था| इसके अलावा भगवती मंदिर, शिव मंदिर, रघुनाथ मंदिर आदि भी दर्शनीय है|

कैसे पहुंचे- मनीकर्ण साहिब हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में भुंतर से 35 किमी और कुल्लू शहर से 45 किमी, मनाली से 90 किमी दूर है| आप बस मार्ग से मनीकर्ण पहुँच सकते हो| दिल्ली या चंडीगढ़ से आप नाईट समय में बस लेकर सुबह भुंतर उतर सकते हो| जहाँ से आप लोकल बस में बैठ कर मनीकर्ण साहिब पहुँच सकते हो| रहने के लिए आप मनीकर्ण साहिब गुरुद्वारा में कमरा ले सकते हो| मनीकर्ण साहिब में आपको लंगर की सुविधा भी मिलेगी|
