श्री गुरुनानक देव जी ने संसार को तारने के लिए 4 यात्राएं की थी, जिसे चार उदासियां कहा जाता है। ऐसे एक उदासी के समय जब गुरूजी भाई मर्दाना जी के साथ रीठा साहिब की धरती पर आए तब मर्दाना जी को भूख लगी , गुरू जी से कुछ खाने के लिए मांगा तो गुरु जी ने रीठा खाने के लिए कहा, जब मर्दाना ने रीठे खाए तो वह मीठे निकले।
रीठा एक कड़वा फल होता है, जो खाने में बिलकुल भी स्वाद नहीं होता, कसैला होता है। परंतु अगर आप को बताया जाए एक जगह है जहां पेड़ के एक हिस्से के रीठे मीठे है एक हिस्से के कड़वे तो कैसा लगेगा हैरानी तो होगी।
ऐसी ही है प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी की महमा।
चार उदासियां
श्री गुरुनानक देव जी ने संसार को तारने के लिए 4 यात्राएं की थी, जिसे चार उदासियां कहा जाता है। ऐसे एक उदासी के समय जब गुरूजी भाई मर्दाना जी के साथ रीठा साहिब की धरती पर आए तब मर्दाना जी को भूख लगी , गुरू जी से कुछ खाने के लिए मांगा तो गुरु जी ने रीठा खाने के लिए कहा, जब मर्दाना ने रीठे खाए तो वह मीठे निकले।
रीठा साहिब के लिए नानकमत्ता से दूरी 120 कि:मी: के करीब है। एक रास्ता तो NH-9 से है जो थोड़ा लंबा है, हम ने लिंक सड़क का रास्ता लिया सोचा जल्दी पहुंच जाएंगे, शुरू में सड़क अच्छी थी 5 -6 कि:मी: तक, बाद में सड़क का नाम निशान नहीं था। जैसे-तैसे चलते रहे। सुनसान रास्ता था। तभी कुछ पंजाबी चाय पीते दिखे , हौसला हुआ कोई तो है इस रास्ते पर।कहते है पंजाबी जहा जाते है वहा पंजाब बना लेते है। जंगल में भी मंगल कर देते है हम ने भी थोड़ी चाय पी और आगे के चल पड़े। 60 कि:मी: की दूरी के लिए करीब 3 घंटे लग गए।
रीठा साहिब गुरुद्वारा नीचे होने के कारण बहुत सावधानी से छोटी सी सड़क से उतरना पड़ा।
रीठा साहिब का इतिहास
उत्तराखंड के चम्पावत से करीब 72 कि:मी: दूर लधिया और रतिया नदियों के संगम पर स्थित रीठा साहिब गुरुद्वारा सिखों का प्रमुख तीर्थ स्थल है। माना जाता है कि यहां सिखों के प्रथम गुरु नानक देव अपने शिष्य मरदाना के संग तीसरी उदासी के वक्त पहुंचे,इस दौरान उन्होंने कड़वे रीठे को मिठास देकर इस स्थान को प्रमुख तीर्थ स्थल में बदल दिया था।
इस दौरान उनकी मुलाकात सिद्ध मंडली के महंत गुरु गोरखनाथ के शिष्य ढेरनाथ से हुई। गुरुनानक और ढेरनाथ के संवाद के बीच शिष्य मरदाना को भूख लगी। जब भोजन न मिला तो निराश शिष्य गुरुनानक देव के पास पहुंचा। गुरु नानक देव ने शिष्य को सामने रीठे के पेड़ को छूकर फल खाने का आदेश दिया। रीठा कड़वा होता है यह जानकर मरदाना ने गुरु के आदेश का पालन करते हुए जैसे ही रीठे को खाया, वह मीठा हो गया।तबसे इस स्थान का नाम रीठा साहिब पड़ गया। यहां श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में मीठा रीठा बांटा जाता है। मई-जून में लगने वाले जोड़ मेले में सबसे ज्यादा श्रद्धालु रीठा साहिब गुरुद्वारे में पहुंचते हैं।आस्था के इस केंद्र रीठा साहिब में श्री गुरुनानक देव के चमत्कार से कड़वा रीठा भी मीठा हो गया था। कुछ ऐसी थी गुरु नानकदेव जी की महिमा कि उनके छूने मात्र से कड़वा रीठा मीठा हो गया।
हम ने रीठा साहिब गुरुद्वारा में कमरा लिया, आराम करके लंगर छका तथा माथा टेका। लधिया और रतिया नदियों का संगम देखा।शाम ढले नदियों का संगम बहुत सुंदर लग रहा था।मीठे रीठे का प्रसाद लिया। कुछ प्रसाद घर के लिए लिया।
कैसे जाएं
रीठा साहिब जाने के लिए सबसे उत्तम मार्ग सड़क मार्ग है। निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम 111 किलोमीटर की दूरी पर है, हल्दीवानी स्टेशन 118 किलोमीटर की दूरी पर है।
आप भी आए मीठे रीठे खाने श्री रीठा साहिब उत्तराखंड में।
धन्यवाद।