दोस्तों हिमाचल प्रदेश के सराहन बुशहर के प्रसिद्ध माता भीमा काली मंदिर के दर्शन करने के बाद गैसट हाऊस से चैक आऊट करके सराहन बुशहर में अपने मित्र ललित भाई को अलविदा कहकर मैंने अपनी गाड़ी घर की तरफ वापस मोड़ ली| सराहन बुशहर से सबसे पहले नीचे 17 किमी दूर जयूरी नामक जगह पर पहुंचना था जहाँ हमे शिमला- काजा हाईवे पर चढ़ना था| जैसे ही मैंने गाड़ी स्टार्ट की और यात्रा शुरू की तो मेरी वाईफ और बेटी थोड़ी देर बाद ही सौ गई| अब मैं गाड़ी में अकेला ही जाग रहा था और गाड़ी चला रहा था तो मैंने शैरी मान, दिल जीत, मूसेवाला के पंजाबी गाने चला दिए| दूसरा मैं गाड़ी चलाते समय अपने पास टौफी भी रखता हूँ जिसको जब गाड़ी में जब सब सो जाते हैं तब खा लेता हूँ| इस बार भी ऐसे ही किया मैंने टौफी खाते, पंजाबी गाने सुनते सुनते तीखे पहाड़ी मोड़ कर मैं गाड़ी चला रहा था| कुछ देर बाद मैं सराहन बुशहर से जयूरी पहुँच गया| जहाँ से मैंने रामपुर बुशहर की ओर जाना था| मैंने सोचा कयों न यहाँ से गेटवे आफ किन्नौर और तरांडा माता की तरफ जाया जाए जो यहाँ से ज्यादा दूर नहीं था| वाईफ और बेटी अभी भी सो ही रही थी और मैंने किन्नौर वाले रास्ते पर गाड़ी मोड़ ली| जैसे जैसे गाड़ी आगे बढ़ रही थी नजारे बदल रहे थे| रास्ते खूबसूरत होने के साथ साथ खतरनाक हो रहे थे|
हिन्दुस्तान-तिब्बत नैशनल हाइवे पर रामपुर बुशहर से आगे जयूरी से किन्नौर जिले का गेट मात्र 8 किमी दूर है| जहाँ पर किन्नौर जिला शुरू होता है वहाँ पर एक गेट बना हुआ है जहाँ पर लिखा हुआ है देवभूमि किन्नौर में आपका सवागत है| गाड़ी चलाते चलाते जैसे ही मैं इस गेट के पास पहुंचा तो मैंने गाड़ी रोकी| इस जगह को गेट वे आफ किन्नौर कहते हैं| इस गेट के सामने जब मैंने गाड़ी रोकी तो मेरी वाईफ की नींद खुल गई| उसने पूछा कहाँ पहुंच गए तो मैंने कहा किन्नौर जिले के गेट पर पहुँच गए| जगह का नाम गेट वे आफ किन्नौर| फिर हम वहाँ उतरे और हमने गेट वे आफ किन्नौर के सामने यादगार तस्वीरें कैमरे में कैद कर लिए| कुछ देर यहाँ रुक कर हम आगे बढ़ जाते हैं|
गेट वे आफ किन्नौर से तकरीबन दो किलोमीटर बाद हाईवे के ऊपर ही एक खूबसूरत वाटरफॉल आता है| इस खूबसूरत झरने को हैप्पी वाटरफॉल कहा जाता है| यहाँ पर पहाड़ के ऊपर से पानी नीचे गिरता है जो नाले के रूप में साथ में ही बने हुए एक पुल के नीचे से होकर सतलुज नदी में मिलता है| इस सारे रास्ते में सतलुज नदी आपके साथ साथ ही चलती है| वाटरफॉल के पास ही मैंने अपनी गाड़ी एक साईड में लगाकर पार्क कर दी | फिर मैंने इस खूबसूरत वाटरफॉल के पानी से अपना मुंह हाथ थो लिया| पहाडो़ से आ रहे इस शुद्ध जल से तन मन फ्रैश हो गया| काफी समय तक हम इस खूबसूरत वाटरफॉल की खूबसूरती को निहारते रहे| हमने इस शानदार वाटरफॉल के साथ कुछ यादगार फोटोग्राफी की ओर फिर हम गाड़ी में बैठ कर आगे बढ़ गए|
हैप्पी वाटरफॉल से आगे 2.5 किमी दूर जाकर वह जगह आई जिसका हमें बेसब्री से इंतजार था| यह जगह थी राक टनल आफ किन्नौर| हाईवे पर ही एक पूरे पहाड़ को काट कर सुरंग नुमा रास्ता बना हुआ है| जहाँ आकर आपको सचमुच में महसूस होता है कि आप किन्नौर में आ गए हो | यह राक टनल किन्नौर की पहचान है| हर टूरिस्ट जो किन्नौर की यात्रा पर आता है इस जगह को देखकर आचंबित हो जाता है| बड़ी बड़ी चट्टानों जैसे पहाड़ को काट कर बना हुआ रास्ता दूर गहरी घाटी में बहती हुई सतलुज नदी खतरनाक और तीखे मोड़ इस जगह को ओर खूबसूरत बना देते है| इस जगह पर भी मैंने गाड़ी रोकी| पहले इस टनल का पैदल चलकर एक चक्कर लगाया| फिर वहाँ से दिखाई देते खूबसूरत दृश्य का आनंद लिया| हमने फैमिली के साथ यादगार तसवीरें मोबाइल के कैमरे में कैद कर ली| राक टनल आफ किन्नौर की दूरी सराहन बुशहर से 28 किमी, जयूरी से 14 किमी, गेट वे आफ किन्नौर से 5 किमी और हैप्पी वाटरफॉल से 2.5 किमी थी|
तरांडा माता मंदिर
इसके बाद हम गाड़ी से चलते चलते शिमला- काजा हाईवे पर ही बने हुए तरांडा माता मंदिर पर पहुँच जाते है| आज हम सराहन बुशहर से तरांडा माता मंदिर के दर्शन के लिए ही किन्नौर जिले में आए थे| सराहन बुशहर से चलते चलते तरांडा माता मंदिर तक रास्ते में हम गेट वे आफ किन्नौर, हैप्पी वाटरफॉल और राक टनल आफ किन्नौर आदि जगहों को देख आए थे| तरांडा माता मंदिर में उस समय काफी श्रदालु थे कयोंकि नवरात्रि के दिन चल रहे थे| हमने सुबह का ब्रेकफास्ट सराहन बुशहर में जल्दी ही किया था तो हमें जोरों की भूख भी लगी हुई थी| दोपहर का समय हो चुका था| तरांडा माता मंदिर में भंडारा लगा हुआ था| हमने भी माता के भंडारे का आनंद लिया| भंडारे में हमने पूरी छोले और हलवा का आनंद लिया| भंडारे का स्वादिष्ट भोजन छक कर मन निहाल हो गया| फिर हमने तरांडा माता मंदिर के दर्शन किए| कुछ समय के लिए यहाँ विश्राम किया| फिर हम वापसी के सफर के लिए रामपुर बुशहर की ओर चल पड़े|
तरांडा माता मंदिर का ईतिहास
1962 में भारत चीन युद्ध के बाद सरकार के निर्देश अनुसार सीमा सड़क संगठन द्वारा नैशनल हाईवे -22 (वर्तमान एन एच -05) हिन्दूस्तान- तिब्बत राष्ट्रीय मार्ग का निर्माण जोरों शोरों से शुरू किया गया ताकि युद्ध की हालत में सरहद तक गोला बारूद और फौज को जल्द भेजा जा सके| इस क्षेत्र में निर्माण कार्य में बहुत रुकावट आ रही थी| बार चट्टानों के गिरने से रास्ता बंद हो जाता था और क्षति भी पहुँच रही थी| जान माल का नुकसान भी हो रहा था| सेना के लोग इस वजह से काफी परेशान हो रहे थे| इस बीच तरांडा गाँव के लोगों ने सेना को मां तरांडा की शरण में जाने के लिए कहा और बताया जहाँ आप सड़क बनाने का काम कर रहे हो वहाँ माँ शक्ति का वास है| इसके बाद संन 1964-65 ईसवीं में यहाँ सीमा सड़क संगठन द्वारा मंदिर का निर्माण शुरू करके पूजा अर्चना शुरू की गई| इसके बाद यहाँ कोई हादसा नहीं हुआ| जो भी यहाँ शीश नवाकर जाता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है| आज भी टूरिस्ट या बस के ड्राइवर तरांडा माँ को प्रणाम करके ही आगे जाते हैं|
कैसे पहुंचे- तरांडा माता मंदिर शिमला- काजा नैशनल हाइवे पर जयूरी से 22 किमी, रामपुर बुशहर से 44 किमी, सराहन बुशहर से 46 किमी और रिकांग पियो से 47 किमी दूर है| आप यहाँ बस से या अपनी गाड़ी से पहुंच सकते हो| रहने के लिए आप रामपुर बुशहर, सराहन बुशहर में कमरा लेकर रह सकते हो| या फिर आप तरांडा माता के दर्शन करने के बाद रिकांग पियो में रुक सकते हो|