सुंन्धा माता का प्राचीन मंदिर राजस्थान के जालोर जिले में अरावली की पहाडि़यों के बीच बना हुआ है| एक दिन मैंने राजकोट के बस स्टैंड पर राजकोट-सुंन्धा माता की बस देखी थी| उस समय तो मैंने धयान नहीं दिया लेकिन कालेज में जाकर एक दिन मैंने गूगल पर सुंन्धा माता मंदिर के बारे में सर्च किया| तब माता के इस मंदिर के बारे में जानकारी मिली| मैंने मन बना लिया था जब अगली अपने घर पंजाब जायूंगा तो रास्ते में सुंन्धा माता मंदिर के दर्शन करके जायूंगा| इस अप्रैल में जब राजकोट कालेज से घर जाने का प्रोग्राम बनाया तो सुंन्धा माता मंदिर का प्रोग्राम बना दिया| गुजरात रोडवेज की यह बस रात को 7.30 बजे राजकोट के बस स्टैंड से चलती है और अगले दिन सुबह सात बजे तक सुंन्धा माता पहुँच जाती है| मैंने GSTRC की साईट पर जाकर 20 नंबर वाली विंडो सीट बुक कर ली थी| कालेज में दिन लगाकर मैं शाम को राजकोट पहुँच गया| जहाँ रात को 7.30 बजे बस में बैठ कर अगले दिन सुबह 8 बजे तक मैं सुंन्धा माता पहुँच गया| बस का समय 6 बजे था पहुंचने का लेकिन बस काफी लेट हो गई| फिर भी सुबह बस ने सुंन्धा माता पहुंचा दिया था यह अच्छी बात थी|
सुंन्धा माता पहुँच कर सबसे पहले मैंने मंदिर ट्रस्ट की ओर से बनाए हुए लाकर मैं अपना सामान जमा करवाया| लाकर के पास ही शौचालय और बाथरूम बने हुए हैं | नहा धोकर फ्रैश होकर मैं मंदिर जाने के लिए तैयार हो गया| सुंन्धा माता का मंदिर अरावली की पहाडि़यों के बीच बना हुआ है| जहाँ पर या तो आप पैदल चल कर सीढ़ियों को चढ़ कर जा सकते हो या फिर आप रोपवे का ईसतमाल कर सकते हो| मेरे पास समय की कमी थी कयोंकि मुझे सुंन्धा माता से 90 किमी दूर आबू रोड़ रेलवे स्टेशन से दोपहर 2.40 बजे पंजाब के लिए ट्रेन पकड़नी थी | इसलिए मैंने सुंन्धा माता मंदिर जाने के लिए रोपवे से जाने का निर्णय लिया| मैंने सुंन्धा माता मंदिर के लिए रोपवे में आनेजाने की टिकट ले ली जिसका शुल्क 135 रुपये था| कुछ देर में मैं रोपवे वे की ट्राली में बैठ गया| सुंन्धा माता के पास खूबसूरत पहाडि़यों के नजारे देखते हुए कुछ ही पलों में मैं सुंन्धा माता मंदिर के पास रोपवे से उतर गया| यहाँ से थोड़ा रास्ता चल कर मैं सुंन्धा माता मंदिर के पास पहुंच गया| रास्ते में काफी सारी धर्मशालाएँ बनी हुई है श्रदालुओं के रहने के लिए| सुंन्धा माता मंदिर राजस्थान में गुजरात बार्डर के पास है| यहाँ गुजराती श्रदालु बहुत आते हैं| मैंने एक दुकान से मंदिर में चढ़ाने के लिए प्रसाद लिया | फिर मैं सुंन्धा माता मंदिर की ओर चल पड़ा|
सुंन्धा माता मंदिर एक गुफा मंदिर की तरह एक पहाड़ पर बडे़ बड़े चट्टान रूपी पत्थरों के बीच बना हुआ है| कुछ सीढ़ियों को चढ़कर मैं भी सुंन्धा माता मंदिर के अंदर प्रवेश कर गया| जहाँ मैंने सुंन्धा माता के दर्शन किए| मंदिर में फोटोग्राफी करने की मनाही है| मैंने भी मंदिर के बाहर फोटोग्राफी की| सुंन्धा माता चौहान वंश के राजाओं की कुल देवी है| जालोर जिले के चौहान राजाओं ने ही इस मंदिर का निर्माण करवाया| ऐसा कहा जाता है सुंन्धा माता दुर्गा देवी का ही रुप है| ऐसा कहा जाता है यहाँ पर माता ने एक राक्षस का वध किया था| ईतिहास में यह भी लिखा हुआ मिलता है महाराणा प्रताप ने हलदी घाटी युद्ध के बाद सुंन्धा माता की शरण ली थी| मंदिर के दर्शन करने के बाद मैं मंदिर के पास ही बने हुए बालू रेत के टीले की ओर चल पड़ा| धीरे धीरे चलकर मैं इस रेत के टीले के ऊपर चढ़ गया| यहाँ आपको राजस्थान के असली नजारे देखने के लिए मिलेगें| रेत के टीले पर कुछ फोटोग्राफी करने के बाद मैं चलते चलते दुबारा रोपवे की ओर आ गया| रोपवे की ट्राली मैं बैठकर मैं मंदिर की तलहटी पर पहुँच गया| सुबह 10.30 का समय हो रहा था| वहाँ पर माता का लंगर चल रहा था जो सुबह दस बजे शुरू होता है| मैंने भी माता के लंगर का आनंद लिया| फिर मैं वहाँ से शेयर टैक्सी में बैठ कर आगे एक कस्बे की ओर चल पड़ा| जहाँ से बस में बैठकर मैं आबू रोड़ रेलवे स्टेशन चला गया| जहाँ से ट्रेन में बैठकर मैं पंजाब वापस आ गया|
सुंन्धा माता मंदिर राजस्थान के जालोर जिले में अरावली की पहाड़ियों के बीच बना हुआ है| सुंन्धा माता मंदिर अहमदाबाद से 250 किमी, पालनपुर से 110 किमी, आबू रोड़ रेलवे स्टेशन से 87 किमी, जालोर से 85 किमी और जोधपुर से 248 किमी दूर है| अहमदाबाद, राजकोट, पालनपुर, आबू रोड़, जालोर आदि जगहों से आप बस मार्ग से सुंन्धा माता मंदिर पहुँच सकते हो| सुंन्धा माता मंदिर में आपको रहने के बहुत सारी धर्मशालाएँ और होटल मिल जाऐंगे|