भूख लगी तो भारत आ जाओ और सोना हो तो म्यांमार चले जाओ लड़ाई हो जाये तो दुश्मन का सर काट कर ले आओ

Tripoto
26th Apr 2023
Photo of भूख लगी तो भारत आ जाओ और सोना हो तो म्यांमार चले जाओ लड़ाई हो जाये तो दुश्मन का सर काट कर ले आओ by Pankaj Mehta Traveller
Day 1

भारत में वैसे तो बहुत सारी अजब गजब अजूबे हैं लेकिन क्या आपको एक ऐसे गाँव के बारे में पता है जहाँ का राजा खाना खाने भारत में जाता है और सोने के लिए म्यांमार
में जाता है।

  लोंगवा गाँव भारत के नागालैंड और म्यांमार बॉर्डर पर बसा एक ऐसा गाँव है जो आधा नागालैंड में है और आधा म्यांमार में और यहाँ के राजा का घर ठीक भारत और म्यांमार बॉर्डर के बीचो बीच है। 

Photo of भूख लगी तो भारत आ जाओ और सोना हो तो म्यांमार चले जाओ लड़ाई हो जाये तो दुश्मन का सर काट कर ले आओ by Pankaj Mehta Traveller
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राजा का बेड रूम म्यांमार में जबकि किचन भारत में है। है न अनोखा गाँव। यहाँ के लोगों के पास भारत और म्यांमार दोनों देशों की नागरिकता है। एक और बात यहाँ की अनोखी है यहाँ के लोग जब अपने दुश्मन से युद्ध करते थे तो उसका गला काट कर ले आते थे और ये उनके कबीले की एक प्रथा थी जो 1940 में प्रतिबंधित कर दी गयी।

   इस गाँव के राजा के अधिकार में 100 गाँव हैं जिनमें से 25 म्यांमार के हैं। 70 अरुणाचल के और बाकि नागालैंड के हैं।

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लोंगवा नागालैंड के मोन जिले में घने जंगलों के बीच म्यांमार सीमा से सटा हुआ भारत का आखिरी गांव है। यहां कोंयाक आदिवासी रहते हैं। इन्हें बेहद ही खूंखार माना जाता है। अपने कबीले की सत्ता और जमीन पर कब्जे के लिए वो अक्सर पड़ोस के गांवों से लड़ाइयां किया करते थे।

साल 1940 से पहले कोंयाक आदिवासी अपने कबीले और उसकी जमीन पर कब्जे के लिए वो अन्य लोगों के सिर काट देते थे। कोयांक आदिवासियों को हेड हंटर्स भी कहा जाता है। इन आदिवासियों के ज्यादातर गांव पहाड़ी की चोटी पर होते थे, ताकि वे दुश्मनों पर नजर रख सकें। हालांकि 1940 में ही हेड हंटिंग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया। माना जाता है कि 1969 के बाद हेड हंटिंग की घटना इन आदिवासियों के गांव में नहीं हुई।

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कहा जाता है कि इस गांव को दो हिस्सों में कैसे बांटा जाए, इस सवाल का जवाब नहीं सूझने पर अधिकारियों ने तय किया कि सीमा रेखा गांव के बीचों-बीच से जाएगी, लेकिन कोंयाक पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। बॉर्डर के पिलर पर एक तरफ बर्मीज में (म्यांमार की भाषा) और दूसरी तरफ हिंदी में संदेश लिखा हुआ है।

लोंगवा गाँव घूमने के लिए एक पूरा दिन चाहिए। आप यहाँ असम के सोनारी से बहुत आसानी से मोन गाँव के रास्ते पहुँच सकते हैं। यहाँ रुकने के लिए एक लॉज भी है। इस गाँव को अच्छी तरीके से समझने के लिए एक गाइड की जरुरत भी है जो की यहाँ आसानी से मिल जाता है।

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अप्रैल के पहले हफ्ते में यहाँ एक फेस्टिवल भी होता है जिसमें कोंयाक के डांस और रीवाजों को दिखाया जाता है। यहाँ पर बहुत सारे व्यू पॉइंट भी हैं जहाँ से आप म्यांमार को निहार सकते हैं।

इस गांव के राजा का नाम वंशानुगत 'द अंग' है जिनकी 60 पत्नियां हैं। राजा वंशानुगत 'द अंग का म्यांमार और अरुणाचल प्रदेश के 70 से ज्यादा गांवों में प्रभाव है। माना जाता है कि इन गांवों में अफीम का सेवन अधिक होता। अफीम की पैदावार गांवों में नहीं होती है बल्कि म्यांमार से तस्करी कर लाई जाती है।

  आप कब जा रहे हैं लोंगवा?

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