हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले में ठियोग से रोहड़ू जाते समय जुब्बल पैलेस को देखकर हमारी अगली मंजिल हाटकोटी मंदिर थी | हाटकोटी की दूरी जुब्बल से 13 किमी की थी| शिमला से ठियोग, खडा़ पत्थर तक सारे रास्ते बारिश ही होती रही लेकिन जुब्बल में धूप निकली हुई थी| अब मौसम थोड़ा खुल गया था| दोपहर का समय था | गर्मी काफी बढ़ गई थी| धूप चमक रही थी| दूसरा खडा़ पत्थर के मुकाबले हाटकोटी की ऊंचाई काफी कम है| गाड़ी चलाते चलाते जल्दी ही हम हाटकोटी पहुँच गए| हाटकोटी पहुँच कर नीचे जाने वाले रास्ते की तरफ गाड़ी मोड़ कर हम हाटकोटी मंदिर की तरफ बढ़ने लगे| नवरात्रि चल रही थी तो हाटकोटी में काफी भीड़ थी| कुछ देर बाद हाटकोटी मंदिर के पास बनी हुई कार पार्किंग में पहुँच गए| यहाँ पर इतनी भीड़ थी कि गाड़ी पार्क करने के लिए भी जगह नहीं थी| लोग एक दूसरे की गाड़ी के आगे अपनी गाड़ी लगा रहे थे | यहाँ मैंने 10 मिनट का इंतजार किया जैसे ही एक गाड़ी वाले ने वापसी के लिए अपनी गाड़ी निकाली तो उस खाली जगह पर मैंने अपनी गाड़ी लगा दी| दोपहर के एक बजे के आसपास का समय था| भूख बहुत लगी हुई थी| गाड़ी पार्क करने के बाद हम हाटकोटी मंदिर की तरफ चलने लगे| मंदिर के प्रवेश द्वार के पास लंगर भवन की विशाल ईमारत बनी हुई है जहाँ पर माता का भंडारा चल रहा था| हम भी जूते उतार कर हाथ धोकर अपनी थाली लेकर लंगर भवन में लाईन में बैठ गए| माता के भंडारे का आनंद लिया| हाटकोटी मंदिर के भंडारे में चावल, पूड़ी, चने की सबजी, कड़ी, राजमांह और हलवे के आनंद आ गया| लंगर छकने के बाद हम हाटकोटी मंदिर के दर्शन करने के लिए चल पड़े| एक छोटी सी दुकान पर मैंने मंदिर में ले जाने के लिए प्रशाद का एक पैकेट लिया|
प्रसाद लेकर हम हाटकोटी मंदिर की ओर चलने लगे| हाटकोटी मंदिर पहाड़ी शैली में बना हुआ है| हाटकोटी मंदिर का आंगन काफी खुला है| दरवाजे को पार करने के बाद हम एक खुले आंगन में पहुँच जाते हैं| हाटकोटी मंदिर हमारे सामने था इसके साथ और भी छोटे मंदिर बने हुए हैं| अब मौसम थोड़ा बदल गया था थोड़ी बूंदाबांदी शुरू हो गई थी| हमने हाटकोटी मंदिर में माता के दर्शन किए| हमने प्रसाद पंडित को दिया और माथा टेका| मैंने पंडित जी को माता की मूर्ति की फोटो खींचने के लिए कहा| जो उन्होंने ने मान ली| मैंने माता की मूर्ति की फोटो खींच ली जो मैंने इस पोस्ट में लगाई है| इसके बाद हाटकोटी मंदिर में बने हुए दूसरे मंदिरों के भी दर्शन किए| इसके बाद हमने फैमिली के साथ हाटकोटी मंदिर के आंगन में फोटोग्राफी की| हाटकोटी मंदिर में हमें असीम शांति मिली | कुछ समय हमने हाटकोटी मंदिर के आंगन में बिताया| वहाँ के आधयात्मिक वातावरण को महसूस किया| फिर हम हाटकोटी मंदिर से बाहर निकल कर बाहर आ गए| मंदिर के पास ही नवरात्रि की वजह से मेला लगा हुआ था| जहाँ बच्चों के लिए झूले और खानपान के लिए ठेले लगे हुए थे| हमने वहाँ पहाड़ी गोलगप्पो को टेस्ट किया| कुछ देर मेले में टहलने के बाद हम पार्किंग की तरफ चल पड़े|अपनी गाड़ी में बैठ कर अगले सफर के लिए रवाना हो गए|
हाटकोटी मंदिर काफी पुराना है | ऐसा कहा जाता है यह मंदिर 700-800 साल तक पुराना है| इस मंदिर का निर्माण जुब्बल रियासत के राजा ने करवाया था| ऐसा माना जाता है पुराने समय में दो ब्राह्मण लड़कियों ने घर से संन्यास ले लिया था| वह दोनों बहनों ने घर छोड़ दिया था| प्रभु भक्ति करने के लिए जंगल और पहाड़ी गाँव में जाती थी| लोगों को प्रभु भक्ति से जोड़ती थी| एक बहन ने हाटकोटी मंदिर वाली जगह पर तपस्या की थी| ऐसा माना जाता है जिस पत्थर पर बैठ कर उसने तपस्या की थी उसी पत्थर से हाटकोटी माता की मूर्ति प्रकट हुई थी| यह बात चमत्कार की तरह पूरे क्षेत्र में फैल गई| जैसे ही इस बात के बारे में जुब्बल रियासत के राजा को पता चला तो उसने यहाँ मंदिर का निर्माण करवाया| यह हाटेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हो गई| मंदिर के माता की मूर्ति अष्ट धातु माती जाती है|
कैसे पहुंचे- हाटकोटी मंदिर शिमला से 94 किमी , रोहड़ू से 13 किमी और जुब्बल से 12 किमी दूर है| आप हाटकोटी मंदिर अपनी गाड़ी और हिमाचल प्रदेश रोडवेज की बस से पहुँच सकते हो| रहने के लिए आपको हाटकोटी या रोहड़ू में हर तरह के होटल आदि मिल जाऐंगे|