घर से निकल कर मैं अपनी गाड़ी से वाईफ और बेटी नवकिरन के साथ लुधियाना, चंडीगढ़, सोलन को पार करके शाम तक कंडाघाट के आगे तक पहुँच गया| कंडाघाट हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में सोलन-शिमला हाईवे पर एक कस्बा है| कंडाघाट के पास ही हमने रात के टिकाने के लिए एक होटल बुक कर लिया| इस यात्रा पर एक नया तजुर्बा जो मैंने किया वह था Butane Gas Stove का जिसके साथ एक छोटा सा गैस सिलेंडर था| यह मैंने आनलाइन खरीदा था| दोस्तों मेरी बेटी नवकिरन ढाई साल की है| रात को एक या दो बार नवकिरन दूध पीती है | इसके लिए हमें पिछले साल नैनीताल यात्रा पर बहुत दिक्कत आई थी| इस दिक्कत का समाधान इस सटोव ने कर दिया था| हमने कंडाघाट के बाजार से दूध के पैकेट, कौफी और मैगी के पैकेट आदि खरीद लिए| हमने रात को कौफी बनाकर पी और आधी रात को जब नवकिरन ने दूध मांगा तो मैंने इस सटोव पर दूध गर्म करके पिला दिया| जो घुमक्कड़ अपनी फैमिली के साथ घूमने जाते हैं|जिनके छोटे बच्चे हैं जो रात को दूध पीते हैं उनके लिए यह सटोव बहुत बढ़िया आपशन है| अगले दिन सुबह हम तैयार होकर जल्दी ही सफर के लिए निकल पड़े कयोंकि आज हमें बहुत लंबा सफर करना था| मौसम थोड़ा खराब ही था सारी रात बारिश होती रही| सुबह जब हम निकले तब भी बारिश हो रही थी| आठ बजे सुबह हम शिमला पहुँच गए थे| हम शिमला रूके नहीं कयोंकि मंजिल अभी दूर थी| बारिश लगातार हो रही थी हम ढली चौक, कुफरी फागू होते हुए ठियोग पहुँच गए थे|
ठियोग से मैंने अपनी गाड़ी हिन्दूस्तान-तिब्बत हाईवे को छोड़ कर रोहड़ू रोड़ की तरफ मोड़ ली | बारिश लगातार हो रही थी लेकिन इस रास्ते पर ट्रेफिक कम था| हम धीरे धीरे अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे थे| चलते चलते हमने कोटखाई को पार कर लिया| कोटखाई से आगे तीखी चढ़ाई शुरू हो गई थी| धीरे धीरे हम ऊंचाई पर जा रहे थे| कुछ ही देर में हम खडा़ पत्थर नामक जगह पर पहुँच गए| नारकंडा की तरह यह जगह भी काफी ऊंचाई पर है| खडा़ पत्थर की समुद्र तल से ऊंचाई 2673 मीटर है जबकि नारकंडा की ऊंचाई 2708 मीटर है| कुछ समय के लिए हम गाड़ी से उतर कर खडा़ पत्थर में रुके| खडा़ पत्थर में छोटी सी मार्केट है जिसमें दुकाने है| खडा़ पत्थर में हमें बर्फ देखने के लिए तो नहीं मिली लेकिन यहाँ ठंड बहुत थी तापमान 2 डिग्री था| कुछ समय के बाद हम दुबारा गाड़ी में बैठ कर आगे बढ़ने लगे|हमारा अगला लक्ष्य खडा़ पत्थर से 7 किमी दूर गिरी गंगा मंदिर था लेकिन छोटी और कीचड़ भरी हुई कच्ची सड़क पर बारिश में जाना आसान नहीं था| फिर हम खडा़ पत्थर से हाटकोटी वाले रास्ते पर आगे बढ़ गये| खडा़ पत्थर से 9 किमी बाद हम जुब्बल नामक गाँव में पहुँच गए| रोहड़ू जाने वाली सड़क जुब्बल के बाहर से निकल जाती है| वहाँ एक सड़क नीचे की तरफ मुड़ती है जो जुब्बल के बाजार और बस स्टैंड को जाती है| मैंने भी अपनी गाड़ी उसी सड़क की तरफ मोड़ ली | जुब्बल के भीड़ भरे बाजार को पार करने के बाद हम जुब्बल पैलेस के सामने पहुँच जाते हैं| जुब्बल पैलेस दूर से ही दिखाई दे रहा था|
जुब्बल पैलेस
जुब्बल हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले में एक पुरानी रियासत थी| इस रियासत की सथापना 1800 ईसवीं में हुई है| जुब्बल के राजा अपने नाम के साथ राना लगाते थे| 1803 ईसवीं से 1815 ईसवीं तक जुब्बल पर नेपाल का कबजा रहा है| 1832 ईसवीं से 1840 ईसवीं तक जुब्बल रियासत अंग्रेज़ों के कबजे में रही है| जुब्बल रियासत के राजाओं का निवास स्थान रहा है जुब्बल का आलीशान पैलेस| इस शानदार पैलेस का निर्माण 1930 ईसवीं में फ्रांस के आर्किटेक्ट ने किया| इस खूबसूरत पैलेस को इंडो-यूरोपीयन डिजाइन में बनाया गया है| जुब्बल पैलेस बहुत बड़ा और शानदार पैलेस है| आप जुब्बल पैलेस के अंदर नहीं प्रवेश कर सकते लेकिन पैलेस के बाहर से आप तस्वीर खींच सकते हो| हमने भी फैमिली के साथ जुब्बल पैलेस के बाहर थोड़ी फोटोग्राफी की| जुब्बल पैलेस कलाकारी का शानदार नमूना है| जुब्बल पैलेस के बाहर बैठे अधिकारियों से मैंने बातचीत की | जुब्बल पैलेस के सामने एक दुकान के पास बनी हुई सीढ़ियों को चढ़कर हम एक छत पर आ गए| यहाँ से जुब्बल पैलेस बहुत शानदार दिखाई दे रहा था| यहाँ पर एक लोकल मंदिर भी बना हुआ था जो पहाड़ी शैली में बना है| इस जगह पर हमने जुब्बल पैलेस के सामने फैमिली फोटोग्राफी की| कुछ समय तक जुब्बल पैलेस की खूबसूरती को निहारा| फिर हम गाड़ी में बैठ कर अगली मंजिल की ओर बढ़ गए|
जुब्बल हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले में एक छोटा सा कसबा है जो ठियोग से खडा़ पत्थर, हाटकोटी, रोहड़ू मार्ग पर पड़ता है|
जुब्बल शिमला से 86 किमी, खडा़ पत्थर से 14 किमी, हाटकोटी से 13 किमी और रोहड़ू से 25 किमी दूर है| आप जुब्बल अपनी गाड़ी या टैक्सी से पहुंच सकते हो| अगर आप पब्लिक ट्रासपोट से जाना चाहते हैं तो आप हिमाचल प्रदेश रोडवेज बस जो शिमला रोहड़ू के लिए चलती है में बैठकर जुब्बल पहुँच सकते हैं|