थार मारूथल में स्थित राजस्थान इस मारूथल का सबसे ज्यादा हिस्सा समाए बैठा है। जब भी राजस्थान की बात आती है, तब दिमाग में रेत के टिब्बे, किले,तीखा खान-पान, संगीत, नाच, रंगीले लिबास तथा गौरवशाली इतिहास के विचार आते है।
क्यो कि पंजाब की सीमा राजस्थान से लगती है, इसलिए हमारे लिए राजस्थान जाना आसान है। बस या रेल द्वारा आसानी से राजस्थान के बड़े शहरों तक जाया जा सकता है।
अगर राजस्थान के रंग देखने हो ,बीकानेर देखे जा सकते है। किले, रेत के टिब्बे,ऊट तीखा खान पान, मिर्ची के पकोड़े, राजस्थानी पेंटिंग्स सब मिल जाए गा।
बीकानेर जो राव बीका ने स्थापित किया था। राव बीका महाराजा जोधा के चौदह पुत्रों में से एक थे। महाराजा जोधा ने जोधपुर की स्थापना की थी।
बीकानेर में एक मंदिर है करणी माता का मंदिर को एक अनोखा मंदिर होने के कारण बहुत प्रसिद्ध है। खास बात यह है जहां चूहों को पूजते है, चूहों को अच्छा मानते है, चूहों को प्रसाद देते है।
मंदिर परसपर में दाखिल होते ही आप को चूहों की फौज देखने को मिले गी। आप के पैरों पे चूहों नाचते नजर आएंगे।
जहां पर सफेद चूहे को देखना और छूना शुभ माना जाता है।
माना जाता है जो भी बजुर्ग अपनी जीवन लीला समाप्त करता है वो चूहा बन जाता है, इस लिए बीकानेर के लोग चूहों को अपने वंश के पितृ मानते है और इनकी पूजा करते है।
करणी माता के मंदिर में करीब 25000 चूहे रहते है।करणी के मंदिर में चूहों को विभिन्न तरह के पकवानों का भोग लगावाया जाता है। बाद में चूहों द्वारा लगाए गए भोग के झूठे प्रसाद को भक्तजनों के बीच बांटा जाता है।
माना जाता है कि माता के मंदिर में जो भी आता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
माना जाता है कि ये चूहे माता करणी के वंशज हैं।
शाम को मंदिर में जब माता की संध्या आरती होती है, उस समय सभी चूहे अपने बिलों से बाहर आ जाते हैं।
इस मंदिर को मूषक मंदिर भी कहा जाता है। हैरान करने वाली बात यह है कि 25 हजार से भी ज्यादा चूहे होने के बाद भी इस मंदिर में किसी भी प्रकार की दुर्गंध नहीं आती है और न ही आज तक इस मंदिर में चूहों से कोई बीमारी फैली है।
करनी माता को चूहों की देवी के नाम से जाना जाता है। करणी माता का जन्म चारण परिवार में हुआ था।
करणी माता का बचपन का नाम-रिद्धि बाई था जो बीकानेर के राठौड़ो की ईस्ट देवी कहलाती है।करणी माता बीकानेर के राठौड़ वंश की कुल देवी मानी जाती है।करणी माता को जगत माता का अवतार माना जाता है। करणी माता का विवाह है बीकानेर के रहने वाले दैपाजी के साथ हुआ था।
मंदिर के मुख्य गेट पर संगमरमर के पथरों पर सुंदर नक्काशी की होई है जिसे देखने के लिए लोग यहां दूर दूर से आते हैं।
इस मंदिर का निर्माण बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने करवाया था।
इतने चूहों को देख कर सब आश्चर्यचकित हो गए। बीकानेर से 30 किलोमीटर दूर इस मंदिर में हम सुबह ही पहुंच गए थे सुबह का नाश्ता हम ने मंदिर के पास ही छोटे से ढाबे पर किया।
करणी माता के मंदिर कैसे जाएं:
बीकानेर देश के विभिन्न शहरों से जुड़ा हुआ है। बीकानेर से सबसे नजदीक एयरपोर्ट जोधपुर का है जो 251 किलोमीटर की दूरी पर है, जोधपुर से बीकानेर के लिए 5 घंटे लगते है।
बीकानेर रेल और सड़क के माध्यम से भी देश की अलग अलग जगहों से जुड़ा है।
बीकानेर से करणी माता का मंदिर 30 किलोमीटर की दूरी पर है। बीकानेर से ऑटो , टैक्सी से आप करणी माता के मंदिर आ सकते हो।
धन्यवाद।