ट्राइबल लद्दाखी गांव और उसका म्यूजियम।
दोस्तों इस वर्ष 2023 में हमें ऐसी यात्रा करनी चाहिए जो साहसिक हो एडवेंचरस हो, सांस्कृतिक हो और जिस जगह में जा रहे हैं वह भी खूबसूरत हो सबसे हटकर भीड़ से दूर। ..चलिए ठीक है एडवेंचरस और खूबसूरत जगह की बात तो अभी तक सभी करते थे। लेकिन अब इसके साथ ही जगह सांस्कृतिक भी होनी चाहिए जिससे हम समझ सके अपने देश की संस्कृति, और उसकी विभिन्नताओं को। चलिए यहां तक तो ठीक है। अब ऐसी जगह कौन सी है जो एडवेंचरस हो, भीड़ से दूर हो लेकिन सांस्कृतिक भी हो ऐसी कौन सी जगह है भला?
अब बात भी सीधी है जो जगह सांस्कृतिक होगी। वहां क्राउड!तो होगा और जो एडवेंचरस और प्राकृतिक जगह होगी, वहां सांस्कृतिक तो होगी नहीं।
कुल मिलाकर कहा जाए तो दो पहलू एक साथ नहीं वाले कहावत!
चलिए कहावतो और मुहावरों की शब्द जाल से बाहर निकलते हैं और वाकई ऐसी जगह आपको लेकर चलता हूं जो सांस्कृतिक है, सहासिक है और लोगों की भीड़ से दूर।..
जी हां जगह सांस्कृतिक भी और एडवेंचरस भी और भीड़ से दूर भी ! ऐसी जगह है 'ससोमा ' लद्दाख!
लेह से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर मनाली लेह हाईवे के ऊपरी भाग पर 13570 ft.की ऊंचाई पर स्थित , 'ससोमा' गांव अपनी अलग ही सांस्कृतिक छटा और खूबसूरती के लिए जाना जाता है। वैसे पूरा लद्दाख एडवेंचरस और साहसिक तो है ही।
यहां आपको एक आइडियल विलेज मिलेगा जो सभी प्रकार की अपनी संस्कृति को अभी तक अपने खुद के म्यूजियम में सजा कर रखता है। यह जगह उन लोगों की पहली पसंद हो सकती है जो साहसिक यात्रा पर आने के साथ कल्चरल जगहों को भी देखना चाहते हैं, या फिर जिससे हम कहे एडवेंचरस ट्राईबल एरिया को।
गांव में पूरी तरीके से अभी तक उसकी संस्कृति से जुड़े हुए सभी वस्तुओं को संजो कर रखा गया है। वह भी पुराने मिट्टी के म्यूजियम में आधुनिक रूप मैं.
कैसा है गांव का म्यूजियम?
इस लद्दाखी गांव के म्यूजियम को उसकी पुरानी ऐतिहासिक शैली में ही रखा गया है जो कि लद्दाख की शैली में पूरी तरह से मिट्टी का बना हुआ है।
म्यूजियम में दिलचस्प वस्तुएं!
जैसे ही आप म्यूजियम के अंदर प्रवेश करते हैं, दरवाजे पर ही आपको लद्दाखी चूहे की खाल से बना हुआ टेक्स्ट डरमी या फिर उसका पुतले से स्वागत होता है।
म्यूजियम लगभग 2 मंजिले का है जिसमें लद्दाखी जीवनशैली से जुड़ी हुई सभी चीजों को संजो कर रखा गया है। पारंपरिक लद्दाखी कपड़ों से लेकर के कृषि क्षेत्र में यूज होने वाली लद्दाखी सामान तक।
कैसे हैं गांव के लोग?
पूरी तरह बौद्ध संस्कृति और धार्मिक दृष्टि में समाहित यह गांव के लोग बेहद कम बोलते हैं और बेहद ही गर्मजोशी से मिलते हैं।
आमतौर पर कहीं आप अनजान जगह पर जाते हैं तो आसपास के लोग आपको घेर लेते हैं, लेकिन यहां ऐसा कुछ भी नहीं है। यहां आप मदमस्त होकर घूमते रहिए और कोई आपको पूछेगा भी नहीं। कहां जाए तो लोगों की अपनी भावनाओं और एकाग्रता, एकांत का समर्थन करने वाले गांव के लोग !
शब्दों में पूरी तरह से बयां करना मुश्किल है। कई सारी खूबियां हैं। इसके लिए आपको खुद ही यहां आना पड़ेगा। लेकिन यहां जाना कैसे हैं इसकी बात करते हैं!
साफ सुथरा ट्राइबल लद्दाखी गांव।
साफ सुथरा और बेहद खूबसूरत गांव और बौद्ध संस्कृति में रचे बसे सीधे -साधे कम बोलने वाले गांव के लोग। घूमते हुए ना तो आपको परेशान करते हैं और जब तक आप मदद नहीं मांगते तब तक आप से बात तक नहीं करते हैं। गांव के लोगों से संबोधन करने का बेहद प्रिय शब्द है..लद्दाख की जुले-जुले जिसका अर्थ होता है नमस्ते नमस्ते।
कैसे जाएं?
यहां पहुंचने के लिए आपको दिल्ली से लेह और लेह से मनाली वाली हाईवे पर 80 किलोमीटर की दूरी पर यह गांव स्थित है।
दिल्ली से लेह, मनाली की ओर 80 किलोमीटर!
या फिर मनाली लेह हाईवे पर स्थित लेह से 80 किलोमीटर पहले?
बेस्ट टाइम!
सबसे उपयुक्त समय आपका मई से लेकर सितंबर तक का रहता है।
इस मौसम में आप हरे-भरे लद्दाखी गांव के खेत और ऊपर ठंडे रेगिस्तानी पहाड़ और उसके भी ऊपर बर्फ से ढके हुए ऊंची ऊंची चोटिया। ऐसा नजारा आपको देखने को मिलेगा इस वाले मौसम में।
कहां रूके?
गांव के होमस्टे या फिर आप टेंट स्टे भी कर सकते हैं यहां?
खाने के लिए आपको मीडियम लेवल के बजट की आवश्यकता पड़ेगी।
तो दोस्तों मेरे लद्दाखी गांव की स्टोरी कुछ लंबी होती जा रही है। यही रुकता हूं और आप खुद ही आइए और महसूस कीजिए लद्दाख के इस बेहद खूबसूरत गांव को।
कृपया अपना अनुभव जरूर साझा कीजिए। कमेंट कीजिए। शेयर कीजिए और इससे संबंधित कुछ भी जानकारी चाहिए तो आप मुझे डायरेक्ट मैसेज कर सकते हैं।
इन शब्दों के साथ की ..सफर खूबसूरत है मंजिल से ...
आपका Pahadi guide .