बादामी कर्नाटक के उत्तर भाग में बागलकोट जिले में एक ईतिहासिक शहर है | बादामी 543 ईसवीं से लेकर 757 ईसवीं तक चालुक्या राजाओं की राजधानी रहा है | पहले चालुक्य राजाओं की राजधानी आईहोल थी जिसकों उन्होंने बादामी में शिफ्ट कर दिया था| चालुक्य राज्य गुजरात में नर्मदा नदी से लेकर दक्षिण में तमिलनाडु के कांचीपुरम तक फैला हुआ था| बादामी में आपको बहुत सारे ईतिहासिक मंदिर देखने के लिए मिलेगें| बादामी के राक कट मंदिर पूरी दुनिया में मशहूर है| मैं हंपी देखकर होसपेट से रेलगाड़ी पकड़ कर दोपहर को बादामी रेलवे स्टेशन पहुँच गया था| यहाँ आकर मैंने आटो बुक करके मैं बादामी को घूमने के लिए निकल पड़ा|
बादामी के राक कट मंदिर - बादामी में देखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण राक कट मंदिर है | लाल बलुआ पत्थर की चट्टानों को काटकर बनाए हुए राक कट गुफा मंदिर अद्भुत है| बादामी में कुल चार गुफा मंदिर है जहाँ पत्थर पर की हुई कलाकारी आपको मंत्रमुग्ध कर देगी| आटो मैं बैठ कर मैं बादामी की गुफाओं की ओर बढ़ने लगा| कुछ ही देर बाद आटो वाले ने मुझे बादामी राक कट गुफा मंदिर के गेट के सामने उतार दिया| उसने कहा मैं यहाँ पर आटो पार्क करता हूँ आप मंदिर देखकर आ जाईये| गेट के अंदर प्रवेश करके मैंने बादामी राक कट मंदिर के लिए टिकट खरीदी आनलाइन पेटीएम पर | टिकट लेकर कुछ सीढ़ियों को चढ़ते हुए मैं एक पलेटफार्म पर आ गया| मेरे दाएं तरफ अब लाल रंग की बहुत विशाल पर्वत रुपी चट्टान थी जिसके निचले भाग को काट कर राक कट गुफा मंदिर बना हुआ था| यह गुफा नंबर -1 थी | बादामी में इस तरह की चार गुफाएं है| अपने जूते उतार कर मैं तीन चार सीढ़ियों को चढ़कर गुफा नंबर -1 के बरामदे में प्रवेश कर गया| बरामदे के बाद एक छोटा सा हाल बना हुआ है| इस हाल और बरामदे को चट्टान को काटकर बनाया गया है| गुफा मंदिर -1 भगवान शिव को समर्पित है| इस गुफा मंदिर के एक कोने में भगवान शिव की नटराजन रुप में डांस करते हुए बारह भुजाओं वाली शानदार मूर्ति बनी हुई है| इस पत्थर की मूर्ति कला को देखकर मैं दंग रह गया| कुछ समय के लिए इसकी कलाकारी को निहारता रहा| इसी दीवार के दूसरे तरफ हरी हरा की मूर्ति बनी हुई है जो आधी शिव और आधी विष्णु को प्रदर्शित करती है|
गुफा मंदिर-2
पहली गुफा मंदिर के बाद मैं दुबारा सीढ़ियों पर चढ़ता हुआ गुफा मंदिर-2 के सामने पहुँच गया| यह गुफा भगवान विष्णु को समर्पित है| इस गुफा का डिजाइन सादा है और तीन चार पिलर्स के साथ बरामदा बना हुआ है | इस गुफा मंदिर की दीवार पर भगवान विष्णु के वराह अवतार की शानदार पत्थर की मूर्ति बनी हुई है जो दिखने में बहुत आकर्षिक लगती है|
गुफा मंदिर-3
दूसरी गुफा के बाद फिर सीढ़ियों को चढ़कर जाना होता है| दोनों तरफ चट्टानों के बीच बने रास्ते पर आपको बहुत सारे बंदर मिलेगें| चलते चलते आप तीसरे गुफा मंदिर के पास पहुंच जायोगे| इस गुफा का निर्माण 578 ईसवीं में हुआ है| इसकी बाएं वाली दीवार पर भगवान विष्णु की खूबसूरत मूर्ति बनी हुई है जिसमें भगवान विष्णु की चार बाजुएँ बनी हुई है और विष्णु जी शेषनाग के ऊपर विराजमान है| बादामी के गुफा मंदिर की मूर्ति कला शानदार है|
गुफा मंदिर-4
सबसे आखिर में गुफा मंदिर-4 आती है जो जैन धर्म को समर्पित है | यह गुफा मंदिर चारों गुफाओं में सबसे छोटे आकार की है| इस गुफा मंदिर का निर्माण सातवीं और आठवीं शताब्दी के बीच में हुआ है| गुफा मंदिर की दीवार पर जैन धर्म के सातवें तीर्थंकर की भव्य मूर्ति बनी हुई है जिसके दोंनो तरफ जैन धर्म के 24 तीर्थंकर दिखाए गए हैं| इस गुफा के बाहर आपको बहुत खूबसूरत दृश्य दिखाई देगा |
आप दो से तीन घंटे में इन चारों गुफा मंदिरों को देख सकते हो| यहाँ की मूर्ति कला आपको अचंभित कर देगी | चालुक्य राज्य की यह विरासत सचमुच अनमोल है|
बादामी की खूबसूरत गुफाएं देखने के बाद मैं छोटी छोटी गलियों से गुजरते हुए बादामी के पुरातत्व विभाग म्यूजियम के गेट पर पहुँच गया | शाम हो चुकी थी साढ़े चार बज चुके थे| मैं पांच बजे से पहले इस शानदार म्यूजियम को देखना चाहता था| इसलिए मैं टिकट लेकर जल्दी ही म्यूजियम में प्रवेश कर गया| यह म्यूजियम हर शुक्रवार को बंद रहता है| इस म्यूजियम में फोटोग्राफी करना मना है| लज्जा गौरी की शानदार मूर्ति देखने लायक है| इस म्यूजियम में चार गैलरी बनी हुई है| गैलरी-1 में भगवान कृष्ण से संबंधित मूर्ति कला को प्रदर्शित की हुई है| गैलरी -2 में लज्जा गौरी की मूर्ति रखी हुई है| गैलरी-3 में आदिमानव से संबंधित जानकारी दी है| गैलरी-4 में बादामी की गुफाओं संबंधित पेंटिंग रखी हुई है| म्यूजियम देखने के बाद मैं सामने ही अगस्त्य कुंड पर पहुँच गया| इस जगह की विशालता और शांति ने मेरी सारे दिन की थकान को उतार दिया| दूर दिखाई दे रही पहाड़ी पर बादामी की गुफाएं थी और सामने विशाल अगस्त्य कुंड का पानी जहाँ दूर दूर तक शांति थी | शाम का समय था अगस्त्य कुंड के एक किनारे भूतनाथ मंदिर वीरान सा खड़ा है | दृश्य बहुत आलौकिक दिखाई दे रहा था| ऐसा कहा जाता है यह मंदिर शायद सातवीं शताब्दी में बनाया गया है| मैं काफी देर तक इस जगह की खूबसूरती को निहारता रहा| जब आप सारा दिन हैरीटेज ईमारते, मंदिर और गुफाएं देख कर थक जाते हो तो अगस्त्य कुंड नामक सरोवर पर शाम को बैठोगे तो थकावट अपने आप दूर हो जाऐगी| इस तरह मैंने इस जगह पर अपनी बादामी की यात्रा पूरी की|
कैसे पहुंचे- बादामी बंगलौर से 510 किमी, बागलकोट से 30 किमी और बीजापुर से 120 किमी दूर है| बादामी में रेलवे स्टेशन भी है| सड़क मार्ग से आप कर्नाटक के अलग अलग शहरों से बस लेकर पहुंच सकते हो| रहने के लिए बादामी में आपको हर बजट के होटल मिल जाऐगे|