राजसमन्द जिला मूल रूप से उदयपुर जिले का ही एक भाग था, जो अप्रेल 1991 में एक अलग जिला बना, और राजसमन्द झील के नाम पर इसका नामकरण किया गया। वास्तव में राजसमन्द नाम का कोई शहर नही है, ये कांकरोली और राजनगर दो कस्बों से मिलकर बना हुआ शहर है। बाहर से आने वाले अनेक लोग राजसमन्द जाने के लिए पूछताछ करते हैं, तब उन्हें समझ आता है कि वास्तव में राजसमन्द, कांकरोली और राजनगर एक ही हैं।
राजसमन्द जिला अपने निर्माण के बाद भी अभी तक उतना प्रसिद्ध नही हो पाया है जबकि इसके प्रमुख पर्यटन स्थल समूचे विश्व मे अद्वितीय हैं। प्रकृति ने अपना नैसर्गिक सौंदर्य दोनों हाथों से लुटाया है तो वीरता, त्याग और समर्पण में भी इसका कोई सानी नही है।
पर्यटन की दृष्टि से बात की जाए तो ये वही जिला है जहां विश्व प्रसिद्ध हल्दीघाटी,रक्ततालाई और कुम्भलगढ़ का किला है, जिसका परकोटा चीन की दीवार के बाद विश्व मे दूसरे नम्बर की दीवार है। साथ ही विश्व प्रसिद्ध राजसमन्द झील है, जो अपने शबाब पर होती है तब इसकी खूबसूरती हर किसी का मन मोह लेती है।गोरमघाट भी पिछले कुछ ही समय मे पर्यटन मानचित्र पर अपनी अमिट छाप छोड़ रहा है।
इनके अतिरिक्त आध्यात्मिक दृष्टि से तुलना करें तो मेवाड़ का अमरनाथ कहे जाने वाला परशुरामजी महादेव मंदिर, श्रीनाथजी मन्दिर, चारभुजाजी मन्दिर, द्वारिकाधीश जी मन्दिर है तो यहीं पर फरारा गांव में माता कुंती द्वारा स्थापित शिवलिंग(कुंतेश्वर महादेव ) है जिसकी पूजा पांडव किया करते थे।
यही वो जिला है, जहां जलदेवी माताजी नामक स्थान पर प्रातः शिरोमणि हिंदुआ सूरज महाराणा प्रताप ने अकबर की मूंछें और बाल काट लिए थे।
यही वो जिला है जिसमे संस्थापक पुरुष महाराणा राज सिंह जी के बारे में मराठों ने औरंगजेब से कहा था कि अगर राज सिंह जी जजिया कर लेकर दिखाओ तो माने की तुम औरंगजेब हो।
यही वो जिला है, जहां रकमगढ़ के छापर में 1857 की क्रांति के समय तांत्या टोपे ने शरण ली थी,और मेवाड़ के केलवा,मोही, कोठारिया आदि ठिकानों ने उनकी रक्षार्थ अंग्रेजों से लोहा लिया था।
यही वो जिला है, जहां कमेरी गांव में त्याग और बलिदान की प्रतिमूर्ति माँ पन्नाधाय ने जन्म लिया था।जिन्होंने अपने पुत्र चंदन का बलिदान कर मेवाड़ राजवंश के सूर्य कुंवर उदयसिंह की जान बचाई थी।
यही वो जिला है, जहां दिवेर में मैराथन ऑफ मेवाड़ (अकबर के सेनापति बहलोल खां और महाराणा प्रताप के बीच महान युद्ध हुआ था , और महाराणा प्रताप ने मुगलों से वापस मेवाड़ छीनने की लड़ाई का आगाज़ किया था।
यही वो जिला है, जहां विश्व प्रसिद्ध चेतक ने अपने स्वामी की रक्षा करते हुए अपने प्राण त्यागे थे और स्वामिभक्ति की एक ऐसी दास्तान लिखी जिसकी आज सारे विश्व मे मिसाल दी जाती है।
यही वो जिला है, जहां कुम्भलगढ़ वन्य अभ्यारण्य जैसी वन्यजीवों के लिए सुरक्षित जगह मौजूद है, जहां अब सर्वे हो जाने के बाद टाइगर छोड़ने की तैयारियां की जा रही है।
यही वो जिला है, जहां विश्व की सबसे बड़ी शिवमूर्ति विश्वनाथ महादेव है, जिसकी ऊंचाई विश्व की किसी भी शिवमूर्ति से अधिक 351 फ़ीट है।
यही वो ज़िला है जहां हल्दीघाटी मे चैत्री गुलाब की खेती होती है, ये गुलाब सिर्फ चैत्र के महीने में आते हैं और सिर्फ इसी क्षेत्र में उगते हैं, विश्व मे और कहीं भी चैत्री गुलाब नही उगते, इनसे बना गुलाबजल, शर्बत, गुलकंद आदि स्वास्थ् और स्वाद के लिहाज से अनुपम है।
यही वो जिला है जहां मोलेला की टेराकोटा कला विश्व प्रसिद्ध है, यहां की कला देखने बड़े बड़े नेता अभिनेता आते हैं।यहां के कलाकारों ने विश्व स्तर तक जाकर जिले जा नाम रोशन किया है।
यही वो जिला है, जहां से लाखों लोगों की प्यास बुझाने वाली और लाखों हैक्टेयर जमीन को सींचने वाली बनास, कोठारी जैसी नदियां निकलती है।
यही वो जिला है, जहां विश्व प्रसिद्ध जेके टायर फैक्टरी है जिसके टायरों की गुणवत्ता किसी पहचान की मोहताज नही है।
यहीं पर एक समय में एशिया की सबसे बड़ी मार्बल माइंस RK मार्बल है,जिसका स्थानीय क्षेत्र के विकास में भी तारीफ के काबिल योगदान रहा है।
यही वो जिला है जहां की हिंदुस्तान जिंक माइंस सबसे पुरानी और सबसे विस्तृत माइंसों में से एक है।
यही वो जिला है, जहां के सीधे साधे प्यारे लोग अपनी प्यारी बोली और वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से ओतप्रोत होकर हर किसी का मनमोह लेने में विश्वास रखते हैं। आज भी यहां के लोगों के स्वभाव के कायल दुनियां की नामी गिरामी हस्तियां हैं।
ये वही जिला है, जो मार्बल उत्पादन के क्षेत्र में सबसे ऊपर है, इसके अत्यधिक मार्बल उत्पादन की वजह से ऐसे श्वेत जिले का भी नाम मिला हुआ है।
यही वो जिला है, जहां के लगभग हर गांव के जवान भारत की विभिन्न सेनाओं में अपनी सेवा दे रहे हैं और देश की रक्षा के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ हैं।
यही वो जिला है, जहां की प्रतिभाओं ने खेलों में विश्व में अपना परचम लहराया है, श्याम लाल जी गुर्जर जैसे हॉकी के महान कोच भी यहीं से हुए हैं जिन्होंने मेजर ध्यानचंद तक को भी कोचिंग दी है।
यही वो जिला है, जहां कन्हैया लाल जी सेठिया,माधव जी दरक, सुनील जी व्यास,लोकेश जी,सम्पत जी, सोहन लाल जी जैसे कवि हुए हैं तो साथ ही फतहलाल जी अनोखा, चतुर लाल जी कोठारी,राकेश जी तैलंग जैसे साहित्यकार भी यहीं से हैं।
यही वो जिला है, जहां श्यामसुंदर जी पालीवाल जैसे शख्स हुए हैं, जिन्होंने अपने गांव के उजाड़ सूखे पहाड़ों को एक चुनौती दी और उन पहाड़ो को हरियाली की सौगात दी। आज ये गांव देखने भारत के कोने कोने से पर्यटक और राजनेता व अन्य प्रसिद्ध हस्तियां आती है।
यही वो जिला है, जहां आज भी सभी धर्मों के लोग एक दूसरे का आदर करते हुए बड़े प्रेम से रहते हैं, जहां आज तक कोई बड़ा दंगा फसाद नहीं हुआ है।
अरे यही वो जिला है, जहां इंसान तो इंसान जानवरों से भी प्रेम के अनोखे और महान उदाहरण देखने को मिलते हैं, हाल ही में इस रक्षाबंधन पर देवगढ के पास पानड़ी गांव में श्रीमती लीला कुंवर द्वारा घायल तेंदुए को राखी बांध कर और उसकी रक्षा कर अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया गया।
ये वही जिला है, जिसके बारे में अब तक मैंने जितना भी लिखा है बेहद कम लिखा है, मेरी कलम को उतने शब्द सूझ ही नही रहे हैं कि समूचे राजसमन्द के बारे में लिख सकूँ।
हां ये वही जिला है जिसे अब तक कम आंका गया है, लेकिन ये अपने आप मे अद्वितीय है, शायद ही कोई और स्थान होगा जहां पर इतनी विविधताओं और खूबियों का संगम हो।
जय मेवाड़, जय राजसमन्द।